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कोई दवा नहीं है उसके रोगों की…~ जो जलता है तरक्की देखकर लोगों की!

कोई दवा नहीं है उसके रोगों की…  ~ जो जलता है तरक्की देखकर लोगों की!  ~ आनंद किशोर मेहता हर इंसान की यात्रा अलग होती है। कोई कठिनाइयों को चीरता हुआ आगे बढ़ता है, कोई अवसरों का सदुपयोग करके उन्नति करता है, तो कोई आत्मचिंतन और प्रयास से अपने जीवन को सँवारता है। लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दूसरों की तरक्की देखकर प्रेरणा लेने के बजाय, भीतर ही भीतर जलने लगते हैं। यह जलन कोई सामान्य भावना नहीं होती — यह एक मानसिक रोग बन जाती है। और दुख की बात यह है कि इस रोग की कोई दवा नहीं होती , क्योंकि यह मन से उत्पन्न होती है और वहीं पलती रहती है। ईर्ष्या: आत्मविकास का सबसे बड़ा बाधक ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने प्रयास पर ध्यान नहीं देता। वह दूसरों की उन्नति को देखकर दुखी होता है, दूसरों को गिराने की सोचता है, और धीरे-धीरे अपनी ऊर्जा , शांति और आत्मबल खो देता है। जबकि तरक्की करने वाले लोग हर आलोचना को प्रेरणा बना लेते हैं और बिना किसी से मुकाबला किए अपनी राह चलते रहते हैं। सफलता पर नहीं, संघर्ष पर गौर कीजिए जो व्यक्ति सफल हुआ है, उसकी मेहनत और संघर्ष की अनदेखी...

भाग तीसरा: सचेत सोच, सफल जीवन: आत्मविकास की दिशा में एक यात्रा ।

भाग तीसरा:  सचेत सोच, सफल जीवन: आत्मविकास की दिशा में एक यात्रा ।  Introduction: जीवन की दौड़ में अक्सर हम केवल बाहरी उपलब्धियों की ओर भागते रहते हैं, लेकिन वास्तविक शांति, संतुलन और विकास तभी संभव है जब हम अपने भीतर की यात्रा प्रारंभ करें। यह यात्रा तभी सार्थक बनती है जब हम हर दिन, हर क्षण सचेत रहें — अपने विचारों, प्रतिक्रियाओं और निर्णयों के प्रति। यह लघु लेख संग्रह उन विचारों का संकलन है जो हमें हर स्थिति में जागरूक, सकारात्मक और सशक्त रहने की प्रेरणा देते हैं। यह हमें सिखाते हैं कि — हमें अपनी मर्जी से जीना है, पर एक मार्गदर्शक के साथ , हर कार्य को एक रिसर्चर की तरह गहराई से करना है , नकारात्मक सोच और व्यवहार से स्वयं को कैसे बचाना है , और अंततः, हर पल को सुधार का अवसर मानकर आगे बढ़ना है। यह छोटे-छोटे विचार गहराई से सोचने और अपने जीवन में स्थायी सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए आमंत्रण हैं। इनमें कहीं आत्मसंयम की झलक है, कहीं आत्म-सशक्तिकरण का संदेश। यह संवेदनशील मन के लिए शक्ति और दिशा दोनों प्रदान करते हैं। 1 . तुम वही क्यों करो जो मेरी मर्ज़ी हो ?  ...

प्राचीन ज्ञान: आपकी ख़ुशी का रहस्य

प्राचीन ज्ञान: आपकी ख़ुशी का रहस्य ~ आनंद किशोर मेहता सच्ची ख़ुशी कहाँ है? क्या यह दौलत, प्रसिद्धि या भौतिक सुखों में है? प्राचीन ऋषियों, संतों और महापुरुषों ने इस प्रश्न का उत्तर हज़ारों वर्ष पहले दिया — और वह उत्तर आज भी उतना ही प्रासंगिक है। प्राचीन ज्ञान कहता है कि ख़ुशी बाहर नहीं, आपके भीतर है। जब मन शांत होता है, विचार पवित्र होते हैं, और जीवन का उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए होता है — तब आत्मा मुस्कुराने लगती है। वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है — "आत्मा की प्रसन्नता ही परम सुख है।" बुद्ध , महावीर , ईसा मसीह , और कबीर जैसे महापुरुषों ने भी यही सिखाया — “जिसने अपने भीतर झाँका, उसने अमूल्य ख़ज़ाना पाया।” प्राचीन ज्ञान की शिक्षाएँ: अहंकार छोड़ो, विनम्र बनो क्रोध पर नियंत्रण रखो, प्रेम से प्रतिक्रिया दो सत्य, करुणा और सेवा को जीवन का आधार बनाओ ध्यान और आत्मनिरीक्षण से अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो जब हम इन मूल्यों को अपनाते हैं, तो एक अद्भुत आंतरिक शांति और आनंद प्रकट होता है — जिस...

सच्चा सम्मान वहाँ नहीं, जहाँ दिखता है — वहाँ है, जहाँ कर्म बोलता है।

सच्चा सम्मान वहाँ नहीं, जहाँ दिखता है — वहाँ है, जहाँ कर्म बोलता है ~ आनंद किशोर मेहता 1. दिखावे का भ्रम और खोखला सम्मान कई लोग समाज में ऊँचा दिखने की लालसा में दूसरों की बेवजह सेवा करते हैं — बस इसलिए कि कोई उन्हें "महान" कह दे। वे खुद के आत्मसम्मान को गिरवी रखकर झूठी तारीफों का पीछा करते हैं। पर क्या कभी सोचा है? जो सम्मान दूसरे की कृपा से मिलता है, वो आपकी आत्मा को कभी तृप्त नहीं करता। "दूसरों की नजरों में ऊँचा बनने से पहले, अपने मन में ऊँचाई पैदा करो।" "Before trying to rise in others' eyes, elevate yourself in your own mind." 2. अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ना – आत्मघात है जब हम अपने घर, परिवार, और सेंटर की जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, तो हम सिर्फ अपने ही नहीं, अपनों के भविष्य से भी खेल रहे होते हैं। सेवा वहीं करें, जहाँ उससे किसी जीवन में वास्तविक बदलाव आए। "जहाँ दिल से सेवा होती है, वहीं से दुनिया बदलती है।" "Where service flows from the heart, true change begins." 3. अपना सतसंग सेंटर: सेवा का...

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन   ~ आनंद किशोर मेहता परिचय विचारों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जो सोचते हैं, वही हमारी वास्तविकता बनता है। श्रेष्ठ और सकारात्मक विचारों को अपनाकर हम अपने व्यक्तित्व, मानसिकता और जीवन की दिशा में परिवर्तन ला सकते हैं। यह परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज में भी समृद्धि और प्रगति का कारण बन सकता है। श्रेष्ठ विचारों को अपनाने की आवश्यकता क्यों? ज्ञान और समझ का विस्तार – श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से हम नए दृष्टिकोण और विचारों को समझते हैं, जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता का विस्तार होता है। सुकरात ने कहा था, "सही ज्ञान वही है जो हमें अपने अज्ञान को पहचानने में मदद करे।" नवाचार और विकास – वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति नए विचारों को अपनाने के कारण ही संभव हुई है। यदि आइज़ैक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया होता, तो भौतिकी के वर्तमान रूप की कल्पना नहीं की जा सकती थी। समाज में समरसता और सहिष्णुता – महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का विचार सभी दृष्टिकोणों को अपनाने और सहिष्णुता रखने पर आ...

तू हारकर भी विजेता है

तू हारकर भी विजेता है  ~ आनंद किशोर मेहता जीवन में हार और जीत केवल बाहरी घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारी आंतरिक स्थिति को भी परिभाषित करती हैं। अक्सर लोग हार को अंत समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हर हार अपने भीतर एक नई जीत की संभावना समेटे होती है। जब तक हम प्रयास करना नहीं छोड़ते, तब तक कोई भी हार अंतिम नहीं होती। "हार कोई अंत नहीं, यह तो बस एक नया आरंभ है!" वैज्ञानिक दृष्टिकोण थॉमस एडिसन का उदाहरण लें, जिन्होंने 1000 से अधिक बार असफल होने के बाद बल्ब का आविष्कार किया। जब उनसे पूछा गया कि इतनी बार विफल होने के बावजूद उन्होंने हार क्यों नहीं मानी, तो उन्होंने उत्तर दिया, "मैं असफल नहीं हुआ, मैंने 1000 ऐसे तरीके खोजे जो काम नहीं करते थे।" यही असली जीत है—असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ना। "असली हार तब होती है जब हम प्रयास करना छोड़ देते हैं।" दार्शनिक दृष्टिकोण सुकरात, जिन्होंने तर्क और विचारशीलता से समाज को नई दिशा दी, उन्हें भी अपनी सत्यनिष्ठा के कारण विष का प्याला पीना पड़ा। उनकी मृत्यु को उनके विरोधियों ने जीत समझा, लेकिन उनके विच...

साधना की शक्ति: सफलता और आत्मविकास का मार्ग

साधना की शक्ति: सफलता और आत्मविकास का मार्ग ~ आनंद किशोर मेहता "साधना वह प्रक्रिया है, जो साधारण को असाधारण बना देती है।" साधना केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। शिक्षा, खेल, कला, विज्ञान या व्यवसाय—हर क्षेत्र में साधना की शक्ति व्यक्ति को ऊँचाइयों तक पहुँचाती है। यह केवल एक कार्य नहीं, बल्कि अनुशासन, निरंतर अभ्यास और स्वयं को लगातार बेहतर बनाने की प्रक्रिया है। साधना का वास्तविक अर्थ साधना का अर्थ है—किसी लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर अभ्यास करना और उसमें पूर्णता हासिल करना। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि नियमित प्रयास, धैर्य और आत्मसंयम का परिणाम है। प्रेरणादायक उदाहरण: सचिन तेंदुलकर बचपन में दिन में 12-14 घंटे अभ्यास करते थे, जिससे वे क्रिकेट के दिग्गज बने। लता मंगेशकर ने हजारों बार रियाज़ किया, जिससे उनकी आवाज़ विश्वभर में गूँजने लगी। एपीजे अब्दुल कलाम ने असफलताओं के बावजूद अपने शोध और मेहनत को जारी रखा, जिससे वे भारत के मिसाइल मैन कहलाए। अल्बर्ट आइंस्टीन गणित और भौ...

जब लोग पछताते हैं: समय, कर्म और इंसानी स्वभाव की गहरी सच्चाई

जब लोग पछताते हैं: समय, कर्म और इंसानी स्वभाव की गहरी सच्चाई ( यह लेख मेरे विचारों, अनुभवों और विभिन्न प्रेरक स्रोतों से प्रेरित है। इसका उद्देश्य पाठकों को प्रेरित करना और सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना है।) परिचय जीवन में कई बार ऐसा होता है कि कुछ लोग, जिन्होंने हमारे साथ गलत किया होता है, समय के साथ पछताते हैं। वे सोचते हैं, "काश, हमने ऐसा न किया होता!" यह सिर्फ भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक सच्चाइयाँ छिपी होती हैं। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं। 1. कर्म का सिद्धांत: जो बोया है, वही काटना पड़ेगा "आपके कर्म आपके साथ परछाईं की तरह चलते हैं।" अगर कोई आपके साथ बुरा करता है—आपको नीचा दिखाता है, धोखा देता है, या आपकी भावनाओं को ठेस पहुँचाता है—तो वह एक नकारात्मक ऊर्जा को जन्म देता है। यह ऊर्जा ब्रह्मांड में घूमती रहती है और किसी न किसी रूप में उसे वापस मिलती है। इसे ही कर्म का सिद्धांत कहते हैं। कैसे काम करता है? ✔ जिसने आपको धोखा दिया, उसे एक दिन कोई और धोखा देगा। ✔ जिसने आपकी मेहनत का मजाक उड़ाया, व...