स्व-परिचय और परम वास्तविकता: चेतना की परम यात्रा स्व-परिचय का अर्थ केवल स्वयं को जानना नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के मूल को अनुभव करना है। लेकिन वास्तव में स्वयं को "जानने" का क्या अर्थ है? यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उतना ही गहरा और रहस्यमयी है। यह एक दिव्य विरोधाभास है— हर रहस्य उजागर है, फिर भी कुछ भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं। शक्ति विद्यमान है, फिर भी वह अदृश्य और अज्ञेय बनी रहती है। परम चेतना सर्वत्र है, फिर भी वह निराकार और अनिर्वचनीय है। शून्यता और पूर्ण विश्वास, दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं। समस्त ज्ञान सुलभ है, फिर भी वास्तविक अनुभूति सीमित प्रतीत होती है। अहंकार का आभास होता है, फिर भी उसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं। "मैं संपूर्ण ब्रह्मांड हूँ," फिर भी "मैं" का कोई स्वतंत्र स्वरूप नहीं। अतः, परम सत्ता के समक्ष, मेरा व्यक्तिगत अस्तित्व केवल एक भ्रम मात्र है। परम वास्तविकता की अनुभूति सत्य स्व-परिचय संपूर्ण समर्पण और आत्म-विसर्जन में निहित है, जहाँ वास्तविकता और अस्तित्व एकाकार हो जाते हैं। जीवन की प्रत्येक घटना, प्रत्य...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.