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राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल

राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल    ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना भारत जैसे विशाल देश में जहाँ शिक्षा का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, वहीं कुछ क्षेत्र आज भी इस अधिकार से वंचित हैं। विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक उपेक्षा ने वर्षों से विकास के रास्ते को रोके रखा है। ऐसे में यदि कोई विद्यालय न केवल शिक्षा का दीपक जलाता है, बल्कि सेवा, आत्मनिर्भरता और समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है, तो वह केवल स्कूल नहीं, एक क्रांति का केंद्र बन जाता है। "राजाबरारी आदिवासी विद्यालय" , मध्य प्रदेश के हरदा जिले के सघन वन क्षेत्र में स्थित, एक ऐसा ही आदर्श उदाहरण है, जिसे दयालबाग शिक्षा संस्थान (Dayalbagh Educational Institute, Agra) की प्रेरणा, मार्गदर्शन और सेवा भावना के अंतर्गत संचालित किया जा रहा है। स्थापना की पृष्ठभूमि इस विद्यालय की शुरुआत 1936–37 में एक प्राथमिक विद्यालय के रूप में हुई थी। उस समय राजाबरारी एक घना वन क्षेत्र था, जहाँ आधुनिक सुविधाओं और शिक्षण संसाधनों की कल्पना भी नहीं की जा...

(भाग दूसरा) दयालबाग: सेवा, विज्ञान और साधना का समन्वित जीवन

(भाग दूसरा) दयालबाग : सेवा, विज्ञान और साधना का समन्वित जीवन :-  प्रस्तावना  (दयालबाग: सेवा, विज्ञान और साधना का समन्वित जीवन) दयालबाग केवल एक स्थान नहीं, एक जीवन-दर्शन है — एक ऐसा सजीव आदर्श, जहाँ सेवा, विज्ञान और साधना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह वह भूमि है, जहाँ मनुष्य केवल सांसें नहीं लेता, बल्कि हर श्वास को सार्थकता प्रदान करता है। यहाँ जीवन यापन नहीं, बल्कि जीवन का उत्कर्ष लक्ष्य होता है। दयालबाग की आत्मा सेवा में निहित है — निःस्वार्थ, निरंतर और समर्पित सेवा, जो न किसी प्रचार की आकांक्षा रखती है, न ही किसी पुरस्कार की प्रतीक्षा करती है। यहाँ का विज्ञान भी केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं, बल्कि समाजोत्थान का माध्यम है — जो शिक्षित करता है, परिष्कृत करता है और जीवन को अधिक उपयोगी बनाता है। साधना यहाँ केवल ध्यान-कक्षों की सीमा में नहीं, बल्कि हर कर्म, हर विचार और हर संबंध में समाहित है — कर्म ही भक्ति है , यही इसका मर्म है। इस खंड के लेखों में दयालबाग के उसी समग्र और संतुलित जीवन-दर्शन की झलक प्रस्तुत की गई है। यहाँ के अनुभव न केवल प्रेरणा देते हैं, बल्कि यह वि...

कविता: दयालबाग: The Garden of the Merciful

दयालबाग: The Garden of the Merciful (दयालबाग: दयाल का दिव्य उपवन) दयालबाग — एक पावन धरा, जिसे सर साहब महाराज ने स्नेह से बसाया। नाम रखा — Garden of the Merciful , जहाँ प्रेम, सेवा, भक्ति हैं जीवन के मूल तत्व। रा-धा-ध:--स्व-आ-मी — वह परम पावन नाम, जिसकी गूंज से जाग उठे हर एक कण। प्रेमीजन के हृदय में अटल विश्वास, हर दिशा में बहता चेतना का निर्मल प्रकाश। यह सेवा भूमि करती मन को पावन, जहाँ रूह को मिलती परम शांति की राह। हर कर्म में झलकती मालिक की रजा, हर पल सूर्त जुड़ी मालिक के पवित्र चरणों में। दयालबाग — सहयोग का अनुपम संकल्प, जहाँ संगठन से फूटे चेतना का दिव्य प्रकाश। प्रेम की लहरें छू लें हर एक दिशा, यही है कुल मालिक का आध्यात्मिक संदेश। यह दरबार नहीं, निज उद्धार का है रास्ता, जहाँ आत्मा पाती निज घर का उपहार। मिशन है केवल — सब जीवों का कल्याण, मालिक तक पहुँचे हर रूह का अरमान। मुबारक हो ये राह हर जीवात्मा को, जो निस्वार्थ भाव से बढ़े उनके चरणों की ओर। हम बनें निज प्यारे सेवक — यही अटल प्रण, तन-मन-धन अर्पित करें मानवता की सेवा। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All ...

दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को राष्ट्रीय विश्वकर्मा पुरस्कार – राजाबरारी के विकास में ऐतिहासिक योगदान

दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को राष्ट्रीय विश्वकर्मा पुरस्कार – राजाबरारी के विकास में ऐतिहासिक योगदान शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (DEI) ने राष्ट्रीय विश्वकर्मा पुरस्कार 2019 में देशभर के 188 संस्थानों को पीछे छोड़ते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह सम्मान अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) द्वारा प्रदान किया गया, जो संस्थान की ग्रामीण विकास और कौशल उन्नयन में उत्कृष्ट भूमिका को दर्शाता है। इस उपलब्धि की खबर दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई थी और राजाबरारी क्षेत्र के लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस सम्मान के पीछे DEI का अथक परिश्रम और समर्पण रहा है। राजाबरारी क्षेत्र में विकास की नई रोशनी हरदा जिले के राजाबरारी क्षेत्र में, जहां शिक्षा और रोजगार के सीमित साधन थे, वहां दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट ने अपने अभिनव प्रयासों से नई क्रांति लाई है। संस्थान ने न केवल शिक्षा को बढ़ावा दिया बल्कि कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से सैकड़ों ग्रामीणों के जीवन में बदलाव लाने का कार्य किया। संस्थान द्वारा निम्नलि...

चेतना का अनंत स्रोत और सामूहिक चेतना का प्रभाव

चेतना का अनंत स्रोत और सामूहिक चेतना का प्रभाव  भूमिका चेतना का रहस्य सदियों से दार्शनिकों, संतों और वैज्ञानिकों के अध्ययन का केंद्र रहा है। भारतीय दर्शन इसे ब्रह्म से जोड़ता है, जबकि आधुनिक विज्ञान इसे ऊर्जा के परिष्कृत रूप में देखता है। चेतना केवल एक व्यक्तिगत अनुभूति नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना का भी निर्माण कर सकती है, जो संपूर्ण मानवता और ब्रह्मांड को प्रभावित करती है। यदि यह सामूहिक चेतना परम स्रोत से जुड़ जाए, तो यह आत्मिक उन्नति और मुक्ति का मार्ग खोल सकती है। 1. चेतना का अनंत स्रोत – भारतीय दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में चेतना को "ब्रह्म" कहा गया है। ब्रह्मसूत्र (1.1.2) – "जन्माद्यस्य यतः", अर्थात संपूर्ण सृष्टि एक परम चेतन स्रोत से उत्पन्न हुई है। अद्वैत वेदांत – "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ) – प्रत्येक जीव उसी परम चेतना का अंश है। भगवद गीता (10.20) – "अहं आत्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः", अर्थात परमात्मा सभी जीवों के हृदय में स्थित है। बौद्ध दर्शन में यह विचार "निर्वाण" के रूप में मिलता है, जहाँ चेतना श...

आध्यात्मिकता में पाँच गुप्त रहस्यात्मक नाम (निर्गुण शब्द)

आध्यात्मिकता में पाँच गुप्त रहस्यात्मक नाम (निर्गुण शब्द) विभिन्न संत-परंपराओं, विशेष रूप से संतमत, सिखमत, राधास्वामी पंथ और निर्गुण भक्ति मार्ग में, पाँच गुप्त रहस्यात्मक नामों (निर्गुण शब्दों) का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हें साधना (ध्यान-भजन) के माध्यम से जपा जाता है, जिससे साधक की चेतना उच्च आध्यात्मिक स्तरों तक पहुँचती है। ये शब्द परम सत्य, अनहद नाद और दिव्य ज्योति से जुड़े होते हैं और आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने वाले गुप्त द्वार की कुंजी माने जाते हैं। पाँच गुप्त रहस्यात्मक नाम: जोति निरंजन (Jyoti Niranjan) – यह नाम दिव्य प्रकाश का प्रतीक है, जो आत्मा को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालकर सत्य की ओर ले जाता है। ओंकार (Omkar) – यह ब्रह्मांडीय ध्वनि (नाद) का मूल स्रोत है, जो समस्त सृष्टि में विद्यमान है और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। ररंकार (Rarangar) – यह परम सत्ता का गूढ़ नाम है, जो हर कण में व्याप्त चेतना और जीवन ऊर्जा का प्रतीक है। सोहंग (Sohang) – यह आत्म-साक्षात्कार का नाम है, जिसका अर्थ है "मैं वही हूँ" (अहं ब्रह्मास्मि), जो...