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कविता- मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ

मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ । ~ आनंद किशोर मेहता मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ ~ आनंद किशोर मेहता 1. मैं कोई ध्वनि नहीं, सिर्फ एक कंपन हूँ… जो हृदय की गहराई में कभी आह बनकर उतरता है, तो कभी प्रार्थना बनकर बहता है। मैं कोई सूरज नहीं, सिर्फ दीये की लौ हूँ, जो जलती है दूसरों के लिए और खुद की बात कभी नहीं करती। मैं कोई उपदेशक नहीं, बस एक पथिक हूँ… जिसने चलकर जाना कि रास्ता बताने से बेहतर है — चुपचाप चलना। मैंने कभी किसी से नहीं कहा — "मेरी सुनो…" पर शायद मेरी चुप्पी भी कभी-कभी आग्रह बन गई। मैंने कभी सेवा की उम्मीद में कुछ नहीं किया, फिर भी मन में कहीं छिपा रहा — कि शायद कोई देखे, कोई समझे… पर आज जानता हूँ — जो देता है, वह मैं नहीं — मैं तो बस उसी की एक प्रार्थनामयी अंश हूँ… अब मैं बस मौन से सीखता हूँ, और विनम्रता से जीता हूँ, क्योंकि जो झुक जाए — वही सबसे ऊँचा हो जाता है। मैं कोई सत्य नहीं हूँ, सिर्फ उसकी खोज में हर दिन गलता हुआ प्रश्न हूँ… और यदि कभी मेरी कोई बात तुम्हें बाँधती लगे — तो उसे मेरा कहना न समझो, ...