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राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल

राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल    ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना भारत जैसे विशाल देश में जहाँ शिक्षा का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, वहीं कुछ क्षेत्र आज भी इस अधिकार से वंचित हैं। विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक उपेक्षा ने वर्षों से विकास के रास्ते को रोके रखा है। ऐसे में यदि कोई विद्यालय न केवल शिक्षा का दीपक जलाता है, बल्कि सेवा, आत्मनिर्भरता और समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है, तो वह केवल स्कूल नहीं, एक क्रांति का केंद्र बन जाता है। "राजाबरारी आदिवासी विद्यालय" , मध्य प्रदेश के हरदा जिले के सघन वन क्षेत्र में स्थित, एक ऐसा ही आदर्श उदाहरण है, जिसे दयालबाग शिक्षा संस्थान (Dayalbagh Educational Institute, Agra) की प्रेरणा, मार्गदर्शन और सेवा भावना के अंतर्गत संचालित किया जा रहा है। स्थापना की पृष्ठभूमि इस विद्यालय की शुरुआत 1936–37 में एक प्राथमिक विद्यालय के रूप में हुई थी। उस समय राजाबरारी एक घना वन क्षेत्र था, जहाँ आधुनिक सुविधाओं और शिक्षण संसाधनों की कल्पना भी नहीं की जा...

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शिक्षा: भविष्य का ज्योत  शिक्षा केवल किताबी ज्ञान का नाम नहीं है; यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाती है। यह हमारे अंदर सोचने, समझने, और सही-गलत का भेद करने की शक्ति पैदा करती है। शिक्षा एक दीपक है, जो अज्ञान के अंधेरे को मिटाकर भविष्य को उजाले से भर देती है। एक शिक्षित व्यक्ति अपने जीवन को ही नहीं, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश को भी रोशन करता है। शिक्षा का उद्देश्य वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना या नौकरी पाना नहीं होना चाहिए। शिक्षा हमें चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्यों को समझने, सहानुभूति और सहिष्णुता जैसे गुणों को विकसित करने का अवसर देती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपनी क्षमताओं का सही उपयोग करके अपने और समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं। वर्तमान चुनौतियाँ आज के समय में शिक्षा में कई चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। व्यावसायीकरण:  शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। समान अवसर की कमी:  ग्रामीण और शहरी शिक्षा के बीच गहरी खाई है, जिससे समाज में असमानता बढ़ रही है। सार्वजनिक मूल्य और नैतिकता क...

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय  ~ आनंद किशोर मेहता 1. पढ़ने की आदत को आनंदमय बनाएं पढ़ना केवल सूचनाएँ लेने के लिए नहीं, बल्कि सोचने और समझने की एक सुंदर प्रक्रिया है। जब हम भावपूर्वक और रुचि से पढ़ते हैं, तो न केवल जानकारी बढ़ती है, बल्कि मन की स्पष्टता और भाषा की सुंदरता भी निखरती है। 2. ऐसे लोगों का संग चुनें जो सोच को विस्तार दें हमेशा समान सोच वाले नहीं, बल्कि सकारात्मक और विवेकी लोगों के बीच समय बिताएं। उनकी बातें और दृष्टिकोण आपकी सोच में संतुलन और परिपक्वता ला सकते हैं। 3. सीखने को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बनाएं चाहे उम्र कोई भी हो, नई चीज़ें सीखने का उत्साह कभी कम न करें। रोज़मर्रा के जीवन में भी छोटे-छोटे अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, बशर्ते दृष्टि जागरूक हो। 4. कल्पना को दिशा दें, सीमा नहीं कल्पना केवल उड़ान नहीं है, यह सोच की गहराई है। कल्पनाशक्ति का उपयोग करें समस्याओं के समाधान खोजने, नई संभावनाएँ देखने और भीतर की रचनात्मकता को जाग्रत करने के लिए। 5. आत्मचिंतन करें, लेकिन आलोचना नहीं जो सीखा है उस पर शांत होकर विचार करें — वह आ...

संस्कार, सहयोग और एकता की शक्ति: एक उज्जवल भविष्य की ओर

संस्कार, सहयोग और एकता की शक्ति: एक उज्जवल भविष्य की ओर आज का समय केवल शिक्षा अर्जित करने का नहीं, बल्कि जागरूकता, मूल्य और व्यवहार में शिक्षित बनने का है। शिक्षा का असली उद्देश्य तब पूर्ण होता है, जब वह जीवन में संस्कार, विवेक और एकता का भाव भी पैदा करे। हम सभी जानते हैं कि एक व्यक्ति का वास्तविक विकास केवल अकादमिक ज्ञान से नहीं, बल्कि उसकी सोच, संस्कार और सामाजिक उत्तरदायित्व से होता है। हमारे समाज में जितनी विविधताएँ हैं, उतनी ही ताकत और संभावनाएँ भी। हर व्यक्ति का अपना अनुभव, संस्कार और सोच होती है, परंतु यह सच्चाई है कि हम सभी का उद्देश्य एक ही है — एक उज्जवल, समृद्ध और नैतिक समाज का निर्माण। यह तभी संभव है जब हम अपने बीच की विविधताओं को समझे, एक दूसरे का सम्मान करें और एकजुट होकर अपने बच्चों का भविष्य संवारे। हमारे बच्चों की तरह, हमारा समाज भी धीरे-धीरे आकार लेता है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज प्रगति की ओर बढ़े, तो हमें पहले खुद को सजग और जागरूक बनाना होगा। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं हो सकती। यह जीवन की सच्चाइयों को, संस्कारों को और रिश्...

डर नहीं, दिशा दें — पढ़ाई को बोझ नहीं, प्रेरणा बनाएं

डर नहीं, दिशा दें — पढ़ाई को बोझ नहीं, प्रेरणा बनाएं ~ आनंद किशोर मेहता आजकल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में माँ-बाप खुद भी परेशान हैं, और अनजाने में अपने इस तनाव को बच्चों के दिलों में एक खतरनाक ज़हर की तरह उतार रहे हैं। यह ज़हर पढ़ाई के नाम पर डर पैदा करता है — इतना गहरा डर, जो बच्चों के जीवन को ही निगल जाता है। "बच्चा हो या फूल — दोनों को खिलने के लिए स्नेह और समय चाहिए, सज़ा नहीं।" पढ़ाई के नाम पर अपनी अधूरी इच्छाओं को बच्चों के भविष्य पर थोप देना और फिर उनसे वही पूरा करवाने की ज़िद में बच्चों पर अत्यधिक दबाव बनाना — यह उनके मासूम मन पर अत्याचार के समान है। नतीजा? आत्म-हत्या जैसे भयावह रास्ते। "जो शिक्षा डर से शुरू होती है, वह सिर्फ डर को बढ़ाती है — ज्ञान को नहीं।" बचपन में ही बच्चों से खेलने की आज़ादी छीन ली जाती है। मोबाइल हाथ में देकर हम उन्हें शारीरिक और मानसिक विकास से वंचित कर देते हैं। जब बच्चा होमवर्क नहीं करता, तो उसे डांटते हैं, डराते हैं, सज़ा देते हैं — चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक। और यह सब एक ऐसी उम्र में जब उसका मन हर चोट को गहराई से ...

पढ़ाई से दोस्ती: डर नहीं, आनंद

: पढ़ाई से दोस्ती: डर नहीं, आनंद  ~ आनंद किशोर मेहता कभी सोचा है, जब हम किसी खेल में मग्न होते हैं, तो समय कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है? लेकिन जब किताबें सामने रखी होती हैं, तो वही समय भारी क्यों लगने लगता है? इसका उत्तर है – दृष्टिकोण । पढ़ाई को अगर हम बोझ समझें, तो वह सचमुच भारी लगती है। लेकिन जब हम उससे दोस्ती कर लें, तो वह एक सुंदर यात्रा बन जाती है – ज्ञान की, समझ की और आत्म-निर्माण की। पढ़ाई क्या है? पढ़ाई केवल पाठ्यपुस्तकों को रट लेना नहीं है। यह तो एक अद्भुत खोज है – अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पहचानने की, दुनिया को समझने की, और सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने की। पढ़ाई से डर क्यों लगता है? अक्सर बच्चे परीक्षा, नंबर या डाँट की चिंता में पढ़ाई से घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि गलती करने पर उन्हें असफल मान लिया जाएगा। लेकिन सच तो यह है कि गलती करना सीखने का पहला कदम है । जैसे साइकिल चलाना सीखने में गिरना स्वाभाविक है, वैसे ही पढ़ाई में गलतियाँ सीखने का हिस्सा हैं। पढ़ाई से दोस्ती कैसे करें? जिज्ञासा जगाएं: हर विषय को प्रश्नों के रूप में देख...

आज की बात: चलो बच्चों, सपनों की ओर!

आज की बात: चलो बच्चों, सपनों की ओर! ~ आनंद किशोर मेहता सोचो, एक बच्चा खिड़की के पास बैठा है। किताब उसके सामने खुली है, लेकिन उसका मन कहीं और भटक रहा है। आँखों में एक सवाल है — "क्या मैं सच में कुछ कर सकता हूँ?" तभी एक आत्मीय आवाज आती है — बेटा, अब उठो… तुम्हारा समय आ गया है। यह आवाज किसी और की नहीं, बल्कि उस उम्मीद की किरण की है, जो हर बच्चे के भीतर बसती है। आज की हमारी यही बात थी — बच्चों को वह आवाज सुनाना, उन्हें उनके भीतर छिपे सपनों से मिलवाना। हर बच्चा कुछ बनना चाहता है — कोई डॉक्टर, कोई वैज्ञानिक, कोई खिलाड़ी या कलाकार। पर सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होता। सपनों को हकीकत बनाने के लिए रोज़ थोड़ा-थोड़ा चलना पड़ता है। हमने बच्चों से एक सीधी और सच्ची बात कही: धीरे-धीरे चलो, लेकिन रुकना मत। हर दिन थोड़ा पढ़ो, थोड़ा समझो, थोड़ा आगे बढ़ो। और अगर मन में कोई डर आए, तो खुद से कहो — बेटा: लेकिन मुझसे नहीं हो पाएगा। शिक्षक (मुस्कुराते हुए): अगर चलोगे नहीं तो कैसे जानोगे? पहला कदम भरोसे से भरोसा दिलाता है। हमने बच्चों को एक कविता सुनाई — जो जैसे उनके मन की आवाज बन ग...

एक शिक्षक की नज़र से: वो जो हर बच्चे में भविष्य देखता है

एक शिक्षक की नज़र से: वो जो हर बच्चे में भविष्य देखता है  लेखक ~ आनंद किशोर मेहता © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. क्या आपने कभी… शिक्षक की आँखों में झाँक कर देखा है? शायद नहीं। क्योंकि वहाँ कोई माँग नहीं होती। कोई शिकायत नहीं। सिर्फ एक उम्मीद होती है — कि यह बच्चा एक दिन उड़ान भरेगा। यह लेख एक शिक्षक की उस चुप सेवा की कहानी है, जो न दिखती है, न कही जाती है। यह उनके लिए नहीं है जो सिर्फ परीक्षा परिणाम देखते हैं, यह उनके लिए है जो यह समझते हैं कि एक अच्छा इंसान बनाना, सबसे बड़ी शिक्षा है। तो पढ़िए... अपने बच्चे की उन भावनाओं को समझने के लिए जो वह शब्दों में नहीं कह पाता, पर जो उसके शिक्षक हर रोज़ पढ़ लेते हैं। "बच्चा सिर्फ एक रोल नंबर नहीं होता, वो एक दुनिया होता है – मासूम, उम्मीदों से भरी, और हमारे हर व्यवहार से आकार लेती हुई।" "जो बच्चे घर में उपेक्षित हैं, वे स्कूल में किसी टीचर की मुस्कान में माँ-बाप ढूँढ़ते हैं।" हर सुबह एक शिक्षक जब स्कूल पहुँचता है... ...तो वह केवल पाठ्यक्रम का भार नहीं उठाता, वह अपने कंधों पर आने...

ज्ञान की किरने: शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व

ज्ञान की किरने: शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व (A Ray of Hope for Humanity)  हर सुबह एक नई उम्मीद लेकर आती है, लेकिन उस उम्मीद को आकार देती है — एक सच्ची शिक्षा। बचपन कोई कच्ची मिट्टी नहीं, बल्कि वह जड़ है जिससे पूरा जीवन पनपता है। और यदि जड़ ही उपेक्षित रह जाए, तो फिर कितना भी पानी दो, पेड़ कभी फल नहीं देगा। भारत का भविष्य उसके बच्चों में छिपा है, और बच्चों का भविष्य — एक ऐसी शिक्षा में, जो केवल सिखाए नहीं, जीना सिखाए। सही शिक्षा: जो मन छुए, मस्तिष्क बदले और हृदय को दिशा दे शिक्षा कोई बोझ नहीं, वह तो एक आनंद यात्रा है — जहाँ हर बच्चा अपने भीतर की ज्योति को पहचानता है। किताबी ज्ञान महत्वपूर्ण है, पर जब तक उसमें संवेदना और जीवन के मूल्यों का स्पर्श न हो, वह अधूरा ही रहता है। बच्चे को "अच्छा विद्यार्थी" बनाना सरल है, पर उसे "अच्छा इंसान" बनाना ही असली शिक्षा है।  बचपन की दुनिया: भय नहीं, विश्वास चाहिए हर बच्चा चाहता है कि कोई उसे सुने, कोई उसे समझे, कोई बिना डाँटे, बस मुस्कराकर उसकी पीड़ा को बाँट ले। स्कूल ऐसा...

बचपन की लौ: शिक्षा से संवरता जीवन, जगता भविष्य

बचपन की लौ: शिक्षा से संवरता जीवन, जगता भविष्य (संवेदनशील, प्रेरणादायक और परिवर्तनकारी लेख) प्रस्तावना: कुछ विचार किसी पुस्तक में नहीं मिलते—वे जीवन की गोद में पलते हैं, अनुभवों की आँच में तपते हैं और संवेदना के जल में शुद्ध होते हैं। ऐसा ही एक विचार है— बचपन । बचपन वह भूमि है जहाँ भविष्य की नींव रखी जाती है, और शिक्षा वह जल है जो उस नींव को सींचता है। यदि हम इसे समझ पाएँ, तो जीवन सचमुच Evergreen हो सकता है। बचपन की मुस्कान में ही सच्चा कल बसता है—उसे मत खोने दो। 1. शिक्षा: केवल पढ़ाई नहीं, एक जीवंत यात्रा आज शिक्षा को अक्सर एक ‘सिस्टम’ समझा जाता है—पढ़ो, परीक्षा दो, अंक लाओ। लेकिन बच्चों के लिए शिक्षा सिर्फ किताबों की दुनिया नहीं है। वह एक अनुभव है—जहाँ वे सवाल पूछते हैं, गिरते हैं, उठते हैं, और खुद को पहचानते हैं। जब शिक्षा में प्रेम, संवाद और आत्म-स्पर्श जुड़ जाता है, तब वह केवल भविष्य नहीं, पूरी ज़िंदगी बदल देती है। जहाँ पाठ्यक्रम खत्म होता है, वहीं से असली शिक्षा शुरू होती है। 2. बचपन की चुप्पी और सन्नाटा हर दिन कुछ मासूम चेहरे खामोशी में डूबे होते ह...

अनुभवों की आँच में पका हुआ सत्य

अनुभवों की आँच में पका हुआ सत्य  ~ आनंद किशोर मेहता हम अक्सर सोचते हैं कि सत्य केवल किताबों, शोधों या बड़े-बड़े मंचों पर बोला जाता है — पर मेरे अनुभव ने सिखाया है कि सत्य वहाँ भी होता है जहाँ आँसू चुपचाप बहते हैं , जहाँ एक मासूम बच्चा स्कूल की ओर निहारता है, और जहाँ एक शिक्षक अपने भीतर की सारी थकावट भूलकर बच्चों की आँखों में भविष्य देखता है। मेरे जीवन का विज्ञान कुछ और है — यह हृदय की गणना करता है, आत्मा की गति नापता है, और संवेदना के परमाणुओं को जोड़कर एक जीवनद्रव्य बनाता है। यहाँ नियम कोई सूत्र नहीं, बल्कि प्रेम, धैर्य और सेवा हैं। सत्य की खोज कहाँ से शुरू होती है? न किसी प्रयोगशाला से, न किसी पुरस्कार से। बल्कि तब, जब एक बच्चा पूछता है – "सर, अगर आप नहीं होते तो हमें कोई नहीं पढ़ाता। घर पर तो कोई पूछता ही नहीं..." उस एक वाक्य ने मुझे झकझोर दिया था। किसी को विज्ञान में अनिश्चितता दिखती है, पर मुझे बच्चों के भविष्य में विश्वास की तलाश दिखती है। मेरे छोटे से स्कूल का बड़ा सच यह स्कूल लक्जरी से भरा नहीं है – पर इसकी दीवारों पर जो प्रेम की ध्...

धीरे-धीरे ही सही, पर थमो मत: सफलता का असली मंत्र

धीरे-धीरे ही सही, पर थमो मत: सफलता का असली मंत्र © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता All Rights Reserved. हर इंसान के भीतर कुछ कर दिखाने की जिज्ञासा होती है। कोई तेज़ दौड़ना चाहता है, कोई ऊँचाई छूना चाहता है, और कोई सबसे आगे निकल जाना चाहता है। लेकिन ज़िंदगी की असली दौड़ में जीत केवल उसी की होती है — जो बिना रुके, बिना थके, लगातार सही दिशा में आगे बढ़ता रहता है। कभी-कभी धीमी चाल भी मंज़िल तक पहुँचती है, अगर नीयत साफ़ हो, हौसला मजबूत हो, और पग निरंतर बढ़ते रहें। यही वह जीवन सूत्र है जो एक साधारण कछुए को भी असाधारण बना देता है। बच्चों के लिए सच्चा सबक हमारे स्कूल के प्यारे बच्चे जब रोज़ थोड़ा-थोड़ा सीखते हैं, प्रयास करते हैं, तो वे हर दिन एक नये रूप में खिलते हैं। हर अक्षर, हर संख्या, हर मुस्कान — उनके भीतर एक उज्ज्वल भविष्य के बीज बोती है। उन्हें तेज़ दौड़ने की ज़रूरत नहीं — उन्हें तो बस ये समझने की ज़रूरत है कि अगर वे हर दिन थोड़ी मेहनत करें, मन लगाकर सीखें , तो एक दिन वे वह बन सकते हैं, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। युवाओं के लिए एक यादगार संदेश आज की पीढ़ी जल्दी सफलता चाहत...

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई The Cultivation of Flowers and Thorns: The Truth of Karma and Consequence कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ बेहद साधारण प्रतीकों में छिपी होती हैं। एक गाँव में दो किसान थे। दोनों मेहनती, दोनों ईमानदार और दोनों ने अपने-अपने खेतों में खूब परिश्रम किया। एक ने फूलों की खेती की और दूसरे ने कांटों की। दोनों ने समय दिया, बीज बोए, खाद डाली, सिंचाई की — हर आवश्यक प्रयास किए, जैसे कोई भी सजग इंसान अपने कर्मों और जीवन में करता है। मौसम बदला, समय गुज़रा और अब फसल सामने थी। एक ओर रंग-बिरंगे, सुगंधित फूलों से लहलहाता खेत और दूसरी ओर तीखे, रुखे और चुभने वाले कांटों से भरा मैदान। तभी कांटे उगाने वाले किसान ने फूलों वाले किसान से पूछा — "भाई, ये बता, तेरे खेत में इतने सुंदर फूल कैसे उग आए? हम दोनों ने तो साथ-साथ मेहनत की थी! फिर मेरे खेत में तो सिर्फ कांटे ही क्यों आए?" इस पर फूलों वाला किसान मुस्कराया और बोला — "भाई, बात मेहनत की नहीं, बीज की है। तूने कांटों के बीज बोए थे, तो अब फूलों की उम्मीद क्यों रखता है?" ये बात उस किसान...

स्कूल से गैरहाजिरी: बचपन से छिनता भविष्य

स्कूल से गैरहाजिरी: बचपन से छिनता भविष्य (Absence from School: A Lost Future of Childhood) प्रस्तावना बचपन का हर दिन अनमोल होता है। स्कूल वह स्थान है, जहाँ बच्चे खेलते हुए सीखते हैं, गिरते हुए सँभलते हैं और धीरे-धीरे अपने भविष्य की ओर बढ़ते हैं। लेकिन जब कोई बच्चा बार-बार स्कूल से अनुपस्थित रहता है, तो यह केवल एक छुट्टी नहीं होती — बल्कि एक नई सीख, एक नया अनुभव और एक सुनहरा अवसर खो देने जैसा होता है। "हर अनुपस्थिति केवल एक दिन नहीं ले जाती, वह भविष्य की एक संभावना भी छीन लेती है।" "Every absence doesn’t just take away a day; it snatches away a possibility from the future." 1. पढ़ाई का छूटना, समझ का रुक जाना हर दिन स्कूल में कुछ नया सिखाया जाता है। जब बच्चा स्कूल नहीं आता, तो वह उस दिन की कक्षा (Class) , अभ्यास (Practice) और शिक्षक के मार्गदर्शन (Teacher's Guidance) से वंचित रह जाता है। "हर दिन की सीख, जीवन की सीढ़ी का एक मजबूत पायदान बनती है।" "Every day’s learning builds a stronger step on the ladder of life." बा...

एक मासूम की चुप्पी और भविष्य की पुकार

एक मासूम की चुप्पी और भविष्य की पुकार ~ आनंद किशोर मेहता 1. चुप्पी में छिपी पुकार कभी-कभी कुछ घटनाएँ दिल को भीतर तक झकझोर देती हैं। ऐसा ही अनुभव हाल ही में मेरे साथ हुआ, जब एक मासूम बच्चा—जो प्यारा, सरल और निश्छल था—मेरे स्कूल में पढ़ता था। उसके माता-पिता अत्यंत व्यस्त जीवन जीते हैं। पिता देर रात तक शराब और मौज-मस्ती में डूबे रहते, माँ खेत और रसोई के कामों में दिन-रात लगी रहती। ऐसे माहौल में वह बच्चा पढ़ाई में कमजोर था, लेकिन उसका दिल कोमल और भावनाएँ गहरी थीं। 2. आत्मिक परिवर्तन की शुरुआत (Inner Transformation) नर्सरी से कक्षा एक तक उसका प्रदर्शन साधारण रहा, लेकिन कक्षा दो में आते-आते उसमें एक चमत्कारी परिवर्तन दिखा। वह पढ़ाई (Study) के प्रति उत्साहित हो गया। उसकी समझ (Understanding) बढ़ने लगी, आत्मविश्वास (Self-confidence) झलकने लगा। "यह देखकर मुझे गहरा संतोष हुआ—मानो वर्षों से बोया गया एक बीज अब अंकुरित होकर सूरज की ओर मुस्कुरा रहा हो।” 3. निर्णय का मोड़ (The Turning Point) लेकिन तभी एक मोड़ आया—उसके पिता के हाथ कुछ पैसे आए, उन्होंने बड़ा बेटा को किसी ‘हॉस्टल’ (Host...