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क्या यह इंसानों की बस्ती है?

क्या यह इंसानों की बस्ती है?  ~ ANAND KISHOR MEHTA सुबह के साथ उम्मीद जगती है। हर मोहल्ला, हर गली, हर घर – एक नई शुरुआत की संभावना लेकर उठता है। लेकिन कुछ जगहों पर सुबह की यह संभावना शोर में दब जाती है। जैसे ही सूरज निकलता है, किसी के घर में गालियाँ गूंजती हैं, तो कहीं दरवाज़े पटके जाते हैं। मोहल्ला जैसे झगड़ों का अखाड़ा बन चुका हो – न किसी को सुनना है, न समझना है – सिर्फ बोलना है, चिल्लाना है, थोपना है। ऐसा लगता है मानो लोग अपनी-अपनी जिंदगी की हताशा, कुंठा और अधूरी इच्छाओं का बोझ एक-दूसरे पर फेंककर हल्का होना चाहते हैं। कोई अपनी बात न माने जाने पर खुद को चोट पहुँचा देता है – जैसे स्वयं से ही बदला ले रहा हो। कोई दूसरों की आवाज दबाकर खुद को सही सिद्ध करता है – मानो बहस जीतना ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हो। कोई चुप रहता है, पर भीतर ही भीतर घुटता है, अपनी चुप्पी से नफरत करने लगता है। और कोई, नशे में डूबकर खुद को ‘शांत’ करने की कोशिश करता है – लेकिन वह नशा केवल थोड़ी देर के लिए चीखों की आवाज धीमी करता है, हालात नहीं बदलता। क्या यही मानवता है? क्या यही सभ्यता है? क्या इस झगड़े...

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई The Cultivation of Flowers and Thorns: The Truth of Karma and Consequence कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ बेहद साधारण प्रतीकों में छिपी होती हैं। एक गाँव में दो किसान थे। दोनों मेहनती, दोनों ईमानदार और दोनों ने अपने-अपने खेतों में खूब परिश्रम किया। एक ने फूलों की खेती की और दूसरे ने कांटों की। दोनों ने समय दिया, बीज बोए, खाद डाली, सिंचाई की — हर आवश्यक प्रयास किए, जैसे कोई भी सजग इंसान अपने कर्मों और जीवन में करता है। मौसम बदला, समय गुज़रा और अब फसल सामने थी। एक ओर रंग-बिरंगे, सुगंधित फूलों से लहलहाता खेत और दूसरी ओर तीखे, रुखे और चुभने वाले कांटों से भरा मैदान। तभी कांटे उगाने वाले किसान ने फूलों वाले किसान से पूछा — "भाई, ये बता, तेरे खेत में इतने सुंदर फूल कैसे उग आए? हम दोनों ने तो साथ-साथ मेहनत की थी! फिर मेरे खेत में तो सिर्फ कांटे ही क्यों आए?" इस पर फूलों वाला किसान मुस्कराया और बोला — "भाई, बात मेहनत की नहीं, बीज की है। तूने कांटों के बीज बोए थे, तो अब फूलों की उम्मीद क्यों रखता है?" ये बात उस किसान...

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन

श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से खुद में परिवर्तन   ~ आनंद किशोर मेहता परिचय विचारों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जो सोचते हैं, वही हमारी वास्तविकता बनता है। श्रेष्ठ और सकारात्मक विचारों को अपनाकर हम अपने व्यक्तित्व, मानसिकता और जीवन की दिशा में परिवर्तन ला सकते हैं। यह परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज में भी समृद्धि और प्रगति का कारण बन सकता है। श्रेष्ठ विचारों को अपनाने की आवश्यकता क्यों? ज्ञान और समझ का विस्तार – श्रेष्ठ विचारों को अपनाने से हम नए दृष्टिकोण और विचारों को समझते हैं, जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता का विस्तार होता है। सुकरात ने कहा था, "सही ज्ञान वही है जो हमें अपने अज्ञान को पहचानने में मदद करे।" नवाचार और विकास – वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति नए विचारों को अपनाने के कारण ही संभव हुई है। यदि आइज़ैक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया होता, तो भौतिकी के वर्तमान रूप की कल्पना नहीं की जा सकती थी। समाज में समरसता और सहिष्णुता – महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का विचार सभी दृष्टिकोणों को अपनाने और सहिष्णुता रखने पर आ...

MIND AND CONSCIOUSNESS: (The Journey from Ordinary to Ultimate Greatness)

मन का त्रिस्तरीय विकास: साधारण से परम श्रेष्ठता तक की यात्रा   AUTHOR: ANAND KISHOR MEHTA  (The Threefold Evolution of Mind: From Ordinary to Ultimate Greatness) मानव मन की गहराइयों को समझने के लिए हमें न्यूरोसाइंस, दर्शन, समाजशास्त्र और आध्यात्मिकता के विभिन्न दृष्टिकोणों को खंगालना होगा। यह लेख आपको अपनी मानसिक अवस्थाओं को पहचानने, सुधारने और उन्हें श्रेष्ठता की ओर ले जाने में सहायता करेगा। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: न्यूरोसाइंस के अनुसार मन की अवस्थाएँ (1) साधारण मन (Ordinary Mind) इस अवस्था में व्यक्ति तर्क-वितर्क, प्रतिस्पर्धा और बाहरी उपलब्धियों में उलझा रहता है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की कोशिश करता है, तो उसका प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का निर्णय-निर्माण केंद्र) सक्रिय हो जाता है। इस अवस्था में बीटा तरंगें हावी रहती हैं, जो अत्यधिक सोच, मानसिक तनाव और चिंता को जन्म देती हैं। यह अवस्था समाज में सत्ता, प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाने की प्रवृत्ति से जुड़ी होती है। (2) महान मन (Great Mind) जब कोई व्यक्ति मौन धारण करता...

विचारों का रहस्य: आत्ममंथन बनाम वाद-विवाद

कॉपीराइट © आनंद किशोर मेहता विचारों का रहस्य: आत्ममंथन बनाम वाद-विवाद भूमिका यह संसार विचारों का ही खेल है। हर उपलब्धि, हर बदलाव और हर क्रांति की जड़ में एक विचार ही होता है। हम जो कुछ भी हैं, वह हमारी सोच का ही प्रतिबिंब है। लेकिन विचारों की गहराई को समझने के लिए दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ सामने आती हैं— आत्ममंथन (Self-Reflection) और वाद-विवाद (Debate) । जब हम खुद से बहस करते हैं, तो हमें गहरे और जटिल सवालों के उत्तर मिलने लगते हैं। जब हम दूसरों से बहस करते हैं, तो नए-नए प्रश्न खड़े हो जाते हैं, जो हमारी सोच को और अधिक विस्तार देते हैं। यही विचारों का रहस्य है—एक अंतहीन यात्रा, जो हमें सत्य और वास्तविकता के करीब ले जाती है। खुद से बहस: उत्तरों की यात्रा जब कोई व्यक्ति खुद से सवाल करता है, तो वह आत्ममंथन की प्रक्रिया में प्रवेश करता है। यह वह अवस्था होती है, जब हम अपने भीतर झाँककर अपनी सोच को परखते हैं। आत्ममंथन क्यों महत्वपूर्ण है? निर्णय क्षमता को मजबूत करता है – जब हम खुद से पूछते हैं, "क्या मैं सही कर रहा हूँ?" या "इस स्थिति में सबसे सही वि...