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मौन सेवा

मौन सेवा                                                        आनंद किशोर मेहता सेवा वो — जो चुपचाप हो जाए, बिन बोले भी, कुछ बात हो जाए। न माँग हो, न कोई दिखावा, दिल से निकले — बस दुआ का साया। जहाँ न हाथ जुड़ें, न शब्द बहें, फिर भी दिल के दीप जलें। कोई थक कर जब चुप हो जाए, तो बस साथ चलो — वही साथ निभाए। न कर सको कुछ — तो ग़म न दो, अपनी वजह से कोई जख़्म न दो। हर पल किसी का सहारा बनो, कभी साया, कभी किनारा बनो। जो मौन में भी सुकून दे जाए, वही सेवा मालिक को भाए। जहाँ होने भर से शांति जगे, वहीं रूह को राहत लगे। न कुछ पाओ, न कुछ जताओ, बस चुपचाप किसी का बोझ उठाओ। जहाँ न दिखावा, न नाम रहे, बस करुणा ही हर काम रहे। इसी में इबादत का रंग खिले, इसी में बंदा रब से मिले। संक्षिप्त भावार्थ यह कविता बताती है कि सच्ची सेवा दिखावे या शब्दों से नहीं, मौन, करुणा और निस्वार्थ भाव से होती है। जब हम कुछ न कर सकें, तब भी किसी को दुख न देना ही सेवा का...

THOUGHTS 18 MAY 2025

THOUGHTS:-   ना मुझे काना-फूसी भाती है, ना जी-हुजूरी रास आती है; मैं तो बस प्रेम का राही हूँ — जिसकी हर एक चाल, प्रेम ने सुलझाई है। — आनंद किशोर मेहता झूठ के सहारे बड़ी-बड़ी बातें की जा सकती हैं, लेकिन मानवता की ऊँचाई केवल सच से ही हासिल होती है। — आनंद किशोर मेहता मानवता कोई वेश नहीं, जिसे ज़रूरत के हिसाब से बदला जा सके — यह तो आत्मा की असली परछाई है। — आनंद किशोर मेहता जहाँ स्वार्थ बोलते हैं, वहाँ वास्तविकता खामोश हो जाती है — क्योंकि वह दिखावे की मोहताज नहीं होती। — आनंद किशोर मेहता रिश्ते बनते हैं शब्दों से, लेकिन टिकते हैं कर्तव्यों से। — आनंद किशोर मेहता जो पीठ पीछे भी वैसा ही रहे, वही सच्ची मानवता है — बाकी सब अभिनय है। — आनंद किशोर मेहता स्वयं का मूल्य न जानने वाला, दूसरों के मूल्य को क्या समझेगा? जो अपने ही अस्तित्व को न पहचान सका, वो भला औरों की अहमियत क्या जाने? — आनंद किशोर मेहता जिसने खुद की अहमियत को पहचान लिया, वही दूसरों की असल कदर करना जानता है – क्योंकि सम्मान देना, पहले स्वयं से शुरू होता है। — आनंद किशोर मेहता जो अपने ही मन की चालबाज़ियों, भ...

क्या आपने कभी…?

क्या आपने कभी…?  -- आनन्द किशोर मेहता  कुछ सवाल शब्दों में नहीं, आत्मा में जन्म लेते हैं। वे जीवन से नहीं, संवेदनाओं से जुड़े होते हैं। आज मैं ऐसे ही कुछ सवाल आपके सामने रखना चाहता हूँ — न किसी आरोप के रूप में, न किसी ज्ञान के रूप में — बल्कि एक इंसान की पुकार के रूप में। क्या आपने कभी किसी और के दर्द में खुद को टूटते देखा है? न वह आपका रिश्तेदार था, न आपका कोई अपना। फिर भी उसकी आँखों में आँसू देखकर आपके भीतर कुछ पिघल गया। एक मासूम बच्चे की भूख, एक वृद्ध की खामोश आंखें, या किसी मां की बेबस पुकार — क्या कभी कुछ ऐसा था, जिसने आपके दिल को भीतर से हिला दिया? क्या आपने कभी किसी की ख़ुशी के लिए रातों को जागकर दुआ की है? आपको उससे कुछ नहीं चाहिए था। सिर्फ़ इतना चाहिए था कि उसका जीवन थोड़ा मुस्कुरा ले, उसके जीवन में उजाला आ जाए। आपने अपने आंसुओं में उसके सुख की प्रार्थना की — और वह जान भी न सका कि कोई, कहीं, उसकी ख़ुशी के लिए रोया था। क्या आपने कभी किसी को आगे बढ़ाने के लिए खुद पीछे हटने का निर्णय लिया है? कभी किसी को उड़ान देने के लिए अपने पंख काट लिए हों? आपने उसकी क्षमताओं...

ज्ञान की किरने: शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व

ज्ञान की किरने: शिक्षा से चमकता भारत, मुस्कुराता विश्व (A Ray of Hope for Humanity)  हर सुबह एक नई उम्मीद लेकर आती है, लेकिन उस उम्मीद को आकार देती है — एक सच्ची शिक्षा। बचपन कोई कच्ची मिट्टी नहीं, बल्कि वह जड़ है जिससे पूरा जीवन पनपता है। और यदि जड़ ही उपेक्षित रह जाए, तो फिर कितना भी पानी दो, पेड़ कभी फल नहीं देगा। भारत का भविष्य उसके बच्चों में छिपा है, और बच्चों का भविष्य — एक ऐसी शिक्षा में, जो केवल सिखाए नहीं, जीना सिखाए। सही शिक्षा: जो मन छुए, मस्तिष्क बदले और हृदय को दिशा दे शिक्षा कोई बोझ नहीं, वह तो एक आनंद यात्रा है — जहाँ हर बच्चा अपने भीतर की ज्योति को पहचानता है। किताबी ज्ञान महत्वपूर्ण है, पर जब तक उसमें संवेदना और जीवन के मूल्यों का स्पर्श न हो, वह अधूरा ही रहता है। बच्चे को "अच्छा विद्यार्थी" बनाना सरल है, पर उसे "अच्छा इंसान" बनाना ही असली शिक्षा है।  बचपन की दुनिया: भय नहीं, विश्वास चाहिए हर बच्चा चाहता है कि कोई उसे सुने, कोई उसे समझे, कोई बिना डाँटे, बस मुस्कराकर उसकी पीड़ा को बाँट ले। स्कूल ऐसा...

बचपन की लौ: शिक्षा से संवरता जीवन, जगता भविष्य

बचपन की लौ: शिक्षा से संवरता जीवन, जगता भविष्य (संवेदनशील, प्रेरणादायक और परिवर्तनकारी लेख) प्रस्तावना: कुछ विचार किसी पुस्तक में नहीं मिलते—वे जीवन की गोद में पलते हैं, अनुभवों की आँच में तपते हैं और संवेदना के जल में शुद्ध होते हैं। ऐसा ही एक विचार है— बचपन । बचपन वह भूमि है जहाँ भविष्य की नींव रखी जाती है, और शिक्षा वह जल है जो उस नींव को सींचता है। यदि हम इसे समझ पाएँ, तो जीवन सचमुच Evergreen हो सकता है। बचपन की मुस्कान में ही सच्चा कल बसता है—उसे मत खोने दो। 1. शिक्षा: केवल पढ़ाई नहीं, एक जीवंत यात्रा आज शिक्षा को अक्सर एक ‘सिस्टम’ समझा जाता है—पढ़ो, परीक्षा दो, अंक लाओ। लेकिन बच्चों के लिए शिक्षा सिर्फ किताबों की दुनिया नहीं है। वह एक अनुभव है—जहाँ वे सवाल पूछते हैं, गिरते हैं, उठते हैं, और खुद को पहचानते हैं। जब शिक्षा में प्रेम, संवाद और आत्म-स्पर्श जुड़ जाता है, तब वह केवल भविष्य नहीं, पूरी ज़िंदगी बदल देती है। जहाँ पाठ्यक्रम खत्म होता है, वहीं से असली शिक्षा शुरू होती है। 2. बचपन की चुप्पी और सन्नाटा हर दिन कुछ मासूम चेहरे खामोशी में डूबे होते ह...

विज्ञान + आध्यात्म = संतुलित और सुरक्षित भविष्य

विज्ञान + आध्यात्म = संतुलित और सुरक्षित भविष्य  ~ आनंद किशोर मेहता परिचय आज की दुनिया विज्ञान की चमत्कारी उपलब्धियों से परिपूर्ण है। मानव जाति ने तकनीकी उन्नति के माध्यम से जीवन को आसान बनाया है, परंतु इस प्रगति के साथ मानसिक अशांति, तनाव और आध्यात्मिक शून्यता भी बढ़ी है। क्या विज्ञान और आध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं, या इनका समन्वय ही मानवता के उज्जवल भविष्य की कुंजी है? यदि हमें एक संतुलित और सुरक्षित समाज बनाना है, तो इन दोनों का एकीकरण आवश्यक है। विज्ञान और आध्यात्म: परस्पर विरोधी या पूरक? विज्ञान और आध्यात्म को अक्सर दो अलग दिशाओं में चलता हुआ समझा जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ये दोनों एक ही सत्य के विभिन्न पहलू हैं। विज्ञान भौतिक जगत के रहस्यों को खोजता है, जबकि आध्यात्म हमारे आंतरिक जीवन और चेतना के रहस्यों को उजागर करता है। जब ये दोनों एक साथ चलते हैं, तो मानव जीवन संतुलित और समृद्ध बनता है। "तकनीक और संवेदनशीलता साथ चलें, तभी दुनिया सुरक्षित होगी।" विज्ञान की भूमिका विज्ञान ने हमें चिकित्सा, संचार, अंतरिक्ष अन्वेषण और आधुनिक जीवनशैली जै...

MIND AND CONSCIOUSNESS: (The Journey from Ordinary to Ultimate Greatness)

मन का त्रिस्तरीय विकास: साधारण से परम श्रेष्ठता तक की यात्रा   AUTHOR: ANAND KISHOR MEHTA  (The Threefold Evolution of Mind: From Ordinary to Ultimate Greatness) मानव मन की गहराइयों को समझने के लिए हमें न्यूरोसाइंस, दर्शन, समाजशास्त्र और आध्यात्मिकता के विभिन्न दृष्टिकोणों को खंगालना होगा। यह लेख आपको अपनी मानसिक अवस्थाओं को पहचानने, सुधारने और उन्हें श्रेष्ठता की ओर ले जाने में सहायता करेगा। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: न्यूरोसाइंस के अनुसार मन की अवस्थाएँ (1) साधारण मन (Ordinary Mind) इस अवस्था में व्यक्ति तर्क-वितर्क, प्रतिस्पर्धा और बाहरी उपलब्धियों में उलझा रहता है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की कोशिश करता है, तो उसका प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का निर्णय-निर्माण केंद्र) सक्रिय हो जाता है। इस अवस्था में बीटा तरंगें हावी रहती हैं, जो अत्यधिक सोच, मानसिक तनाव और चिंता को जन्म देती हैं। यह अवस्था समाज में सत्ता, प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाने की प्रवृत्ति से जुड़ी होती है। (2) महान मन (Great Mind) जब कोई व्यक्ति मौन धारण करता...

मानवता: एक दिव्य प्रेरणा 2025

मानवता: एक दिव्य प्रेरणा लेखक: आनंद किशोर मेहता परिचय: मानवता केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। यह प्रेम, करुणा, दया और सहानुभूति का वह अद्भुत संगम है, जो व्यक्ति को न केवल समाज, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण की ओर प्रेरित करता है। मानवता का वास्तविक अर्थ अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करना है। मानवता के प्रमुख गुण: दयालुता – सभी प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता और करुणा रखना। सहानुभूति – दूसरों के दुख और कष्ट को समझकर उनकी सहायता करना। ईमानदारी – सच्चाई का पालन करना और सत्य को महत्व देना। विनम्रता – अहंकार से दूर रहकर दूसरों का सम्मान करना। परोपकारिता – बिना किसी स्वार्थ के समाज की भलाई के लिए कार्य करना। सत्य का समर्थन – सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलना। निर्भयता – सत्य और धर्म के मार्ग पर बिना भय के आगे बढ़ना। आंतरिक शुद्धि – अपने मन और हृदय को निर्मल रखना। दानशीलता – योग्य और जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करना। सद्भावना – विश्व में प्रेम, भाईचारा और शांति फैलाना। मानवता के प्रति उत्तरदायित्व: सभी के प्रति समा...