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बचपन की तलाश: घर से स्कूल तक

बचपन की तलाश: घर से स्कूल तक ~ अनुभव, संवेदना और शिक्षा जगत का मौन प्रश्न प्रस्तावना कभी-कभी जब बच्चों को देखकर उनके हावभाव और चुप्पी को समझा जाता है, तो एक प्रश्न बार-बार दिल को छू जाता है:  "जो ये बच्चे शिक्षक से प्राप्त करते हैं, वो उनके पेरेंट्स क्यों नहीं दे पाते?"  क्या एक शिक्षक, एक पिता से अधिक संवेदनशील हो सकता है? क्या एक बाहरी व्यक्ति, उस अंतरंगता और स्नेह को दे सकता है, जो माता-पिता का अधिकार माना जाता है? यह प्रश्न केवल किसी एक व्यक्ति का नहीं है, यह हर उस संवेदनशील मन का है जो बच्चों को जीने की प्रेरणा देता है। "बच्चा वही नहीं होता जो बोलता है, वह होता है जो चुप रहकर सब सहता है। उसे समझने के लिए शब्द नहीं, संवेदना चाहिए।" 1. जिम्मेदारी: माता-पिता अक्सर बच्चे के पालन-पोषण को एक कर्तव्य की तरह निभाते हैं, जबकि शिक्षक—विशेषकर जो सेवा-भाव से जुड़े होते हैं—उसे समर्पण की तरह जीते हैं। जहाँ एक ओर कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे से अधिक उसकी पढ़ाई या "परफॉर्मेंस" पर ध्यान देते हैं, वहीं एक संवेदनशील शिक्षक बच्चे की भीतर की पीड़ा, मौन की पु...