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Showing posts with the label जीवन दर्शन

वो अनकहा जो रिश्तों को तोड़ देता है

वो अनकहा जो रिश्तों को तोड़ देता है  ~ आनंद किशोर मेहता रिश्ते कभी एक दिन में नहीं टूटते। ना ही कोई बड़ी घटना इसकी वजह होती है। यह तो छोटे-छोटे अनदेखे क्षणों की वो दरारें हैं, जब किसी ने सुना नहीं, किसी ने समझा नहीं, और किसी ने चाहकर भी कुछ कहा नहीं। हर बार जब हम अपनी भावनाएँ दबा जाते हैं, हर बार जब हम सामने वाले को 'समझ जाएगा' मान लेते हैं — हम अनजाने में एक ईंट खींच लेते हैं उस नींव से, जिस पर कभी विश्वास की दीवार खड़ी थी। हम सोचते हैं, "अभी नहीं तो बाद में कह दूँगा", पर वो 'बाद' कभी आता नहीं। और एक दिन, हम पाते हैं कि वो रिश्ता सिर्फ यादों में रह गया है — उससे जुड़ा इंसान अब हमारे पास नहीं। या अगर है भी... तो वैसा नहीं रहा, जैसा कभी हुआ करता था। ऐसे में हमें खुद से पूछना होगा — क्या हम सच में आगे बढ़े हैं? या दूसरों को पीछे छोड़ते हुए खुद को खो बैठे हैं? जीवन में सम्मान चाहिए, पर उस कीमत पर नहीं कि किसी को छोटा करके खुद बड़े दिखें। हमें हँसना है, मगर किसी की चुप्पी की कीमत पर नहीं। हमें उड़ना है, मगर किसी के सपनों को रौंदकर नहीं। रिश्ते सँजोने ...

THOUGHTS 18 MAY 2025

THOUGHTS:-   ना मुझे काना-फूसी भाती है, ना जी-हुजूरी रास आती है; मैं तो बस प्रेम का राही हूँ — जिसकी हर एक चाल, प्रेम ने सुलझाई है। — आनंद किशोर मेहता झूठ के सहारे बड़ी-बड़ी बातें की जा सकती हैं, लेकिन मानवता की ऊँचाई केवल सच से ही हासिल होती है। — आनंद किशोर मेहता मानवता कोई वेश नहीं, जिसे ज़रूरत के हिसाब से बदला जा सके — यह तो आत्मा की असली परछाई है। — आनंद किशोर मेहता जहाँ स्वार्थ बोलते हैं, वहाँ वास्तविकता खामोश हो जाती है — क्योंकि वह दिखावे की मोहताज नहीं होती। — आनंद किशोर मेहता रिश्ते बनते हैं शब्दों से, लेकिन टिकते हैं कर्तव्यों से। — आनंद किशोर मेहता जो पीठ पीछे भी वैसा ही रहे, वही सच्ची मानवता है — बाकी सब अभिनय है। — आनंद किशोर मेहता स्वयं का मूल्य न जानने वाला, दूसरों के मूल्य को क्या समझेगा? जो अपने ही अस्तित्व को न पहचान सका, वो भला औरों की अहमियत क्या जाने? — आनंद किशोर मेहता जिसने खुद की अहमियत को पहचान लिया, वही दूसरों की असल कदर करना जानता है – क्योंकि सम्मान देना, पहले स्वयं से शुरू होता है। — आनंद किशोर मेहता जो अपने ही मन की चालबाज़ियों, भ...

मीठा झूठ और कड़वा सच: रूह की एक कहानी

मीठा झूठ और कड़वा सच: रूह की एक कहानी  © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. कुछ लोग हर दिल अज़ीज़ होते हैं, क्योंकि वो सच नहीं बोलते— बल्कि मीठे झूठ से रिश्तों को सजाते हैं। हर किसी के चहेते बनते हैं, हर महफ़िल में मुस्कानें लुटाते हैं। और कुछ... जो रूह की बात करते हैं, जिनके लफ़्ज़ आईने से साफ़ होते हैं, वो हर हफ़्ते किसी अपने से दूर हो जाते हैं। कभी 'कड़वे' कहलाते हैं, तो कभी 'कठोर' या 'अहंकारी'... पर हकीकत ये है— जो झूठ से सजता है, वो जल्दी बिखर जाता है। और जो सच से बनता है, वो देर से जुड़ता है— मगर गहराई में उतर जाता है। सच की राह आसान नहीं, मगर यह वही रास्ता है जिस पर चलकर इंसान खुद से भी नहीं झिझकता। सूफ़ी कहते हैं— “सच वह इश्क़ है, जो दिल को जलाता है, मगर रूह को रोशन कर देता है।” तो चुनो वही शब्द जो प्रेम से लिपटे हों, सच कहें—पर सिर नहीं झुकाएँ। और झूठ ना कहें—बस चुप रह जाएँ। सूफ़ियाना सार: झूठ मीठा हो सकता है, पर सच मुकम्मल होता है। अगर बोलना ही है, तो सच को स्पर्श बनाकर कहो— जो लगे भी ना, मगर ...

जब कुछ नहीं रहा, तब मैं रह गया।

जब कुछ नहीं रहा, तब मैं रह गया।  (लघु लेख ~ आनंद किशोर मेहता) जीवन की यात्रा में एक समय ऐसा आता है जब सब कुछ हाथ से फिसलता-सा लगता है — अपने कहे जाने वाले रिश्ते, समाज में बनी पहचान, वर्षों से संजोए सपने, और आत्मसंतोष की झूठी धारणाएँ। उस क्षण भीतर एक शून्य-सा भर जाता है, और हम पूछ बैठते हैं: "अब क्या बचा?" परंतु इसी शून्य के भीतर एक मौन उत्तर उभरता है — "तू बचा है… तू अब भी है।" मैंने देखा — जो कुछ गया, वह मेरा नहीं था। जो मेरा था, वह कभी गया ही नहीं। वो तो भीतर ही था — शांत, सरल, और अपरिवर्तनीय। बंधनों के छूटने की पीड़ा, धीरे-धीरे एक वरदान बन गई। अब मैं किसी परिभाषा में नहीं समाता। ना किसी की स्वीकृति की आवश्यकता है, ना किसी भूमिका को निभाने की मजबूरी। मैं हूँ — बस यही मेरी सबसे गहरी पहचान है। अब कोई दौड़ नहीं, कोई साबित करने की होड़ नहीं। अब जो जीवन है, वह दिखावे का नहीं, बल्कि एक आंतरिक सत्यान्वेषण का जीवन है। जो गया, उसने रास्ता साफ किया — और जो शेष है, वो मैं हूँ… सच्चा, निर्विकार, और मुक्त। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए — सिवाय इस आत्मिक मौन में ...

भाग चौथा--- शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा --

भाग चौथा---  1. शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा  -- ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका: हमारे भीतर की भावनाएँ हमेशा हमारे साथ रहती हैं — कभी प्रेम, कभी शोक, कभी प्रसन्नता, कभी तनाव। ये भावनाएँ हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को आकार देती हैं और हमें प्रेरित करती हैं। सामान्य रूप से, हम इन भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता महसूस करते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि यह हमारी मदद करेगा या हमें दूसरों से समझ मिल जाएगी। परंतु, क्या हर भावना को बाहर लाना ज़रूरी है? क्या हमें हर स्थिति में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए? इस लेख में हम उस अदृश्य यात्रा की चर्चा करेंगे, जहाँ व्यक्ति अपनी भावनाओं को न तो शब्दों में बांधता है, न साझा करता है, फिर भी वह पूरी तरह से संतुलित और शांति से भरा होता है। यह ऐसी यात्रा है, जहाँ व्यक्ति मौन में अपने अस्तित्व को समझता है और अपनी आंतरिक शांति को बनाए रखता है। यह भावनाओं की परिपक्वता का प्रतीक है, जहाँ हमें बाहरी पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती, और भीतर का स्वर हमें हमारे अस्तित्व की गहरी समझ देता है। यह लेख उन लोगों के लिए है जो अपन...

मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि

मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि भूमिका: धरती पर चाहे जितनी भी गहरी दरारें पड़ें, समय के साथ वहाँ हरियाली लौट आती है। फटे हुए कपड़े भी कुशल हाथों से फिर से जोड़े जा सकते हैं। चोटिल तन को औषधियाँ और समय भर सकते हैं। किन्तु जब मन टूटता है — तो उसके घाव अदृश्य होते हैं, और उसका उपचार बाहर नहीं, भीतर से ही संभव होता है। मन के टूटने पर कोई शब्द काम नहीं आते। न कोई औषधि, न कोई सलाह। केवल मौन, प्रेम और धैर्य — यही वे अदृश्य औषधियाँ हैं जो धीरे-धीरे बिखरे हुए मन को फिर से संजो सकती हैं। मुख्य विचार: जब धरती फटती है, तो बादल उसे संजीवनी देते हैं। कपड़ा फटने पर डोरी उसे जोड़ देती है। तन घायल हो, तो औषधियाँ सहारा बन जाती हैं। परन्तु मन के टूटने पर — ना कोई बादल बरसता है, ना कोई डोरी उसे सिलती है, ना कोई औषधि उसे भर पाती है। मन के घाव चुपचाप भीतर रिसते रहते हैं। चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है, पर आत्मा भीतर कहीं रोती रहती है। इसलिए मन के आघात को केवल वही समझ सकता है जिसने स्वयं अपने भीतर ऐसी चुप्पी को महसूस किया हो। मौन और प्रेम की अदृश्य औषधि: मन के घावों का उपचार किस...

जिससे उम्मीद थी समझने की, उसने मुझे सुधारने की ठान ली

जिससे उम्मीद थी समझने की, उसने मुझे सुधारने की ठान ली ~ आनंद किशोर मेहता कभी-कभी जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति आता है जिससे हम न सिर्फ अपने मन की बात कहते हैं, बल्कि दिल की परतें भी खोल देते हैं। हमें लगता है कि यही तो वो है जो हमें बिना कहे समझ लेगा। जिसकी आंखों में हमारे भीतर की हलचल पढ़ने की क्षमता होगी। जिसे हम अपने टूटे टुकड़ों के साथ स्वीकार कर पाएंगे। और वह हमें वैसे ही अपना लेगा। पर जब वही व्यक्ति, जिसे हमने समझने वाला चुना, हमें 'सुधारने' लगे—तो वह सबसे बड़ी चुभन होती है। "जो हमें समझते हैं, वे हमें कभी भी सुधारने की कोशिश नहीं करते।" मैंने शब्द नहीं मांगे थे, बस थोड़ा सा समझना चाहा था। लेकिन उसने मेरे भावों को 'कमज़ोरी' समझ लिया। "हमारी कमजोरी हमारी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है, यदि उसे बिना किसी डर के अपनाया जाए।" कभी-कभी इंसान बस चाहता है कि कोई उसे सुने, उसके दर्द को महसूस करे, बिना कोई नसीहत दिए। वह बस चाहता है कि कोई उसके साथ बैठे और कहे—"हाँ, मैं समझता हूँ तुम्हें, जैसा तुम हो वैसा ही।" पर जब वह व्यक्ति आपको सुधारने की नी...

सुनो पार्थ — अपने साथ गलत करने वालों को जरूर याद रखो,

: !! श्री कृष्ण कहते हैं !! **"सुनो पार्थ — अपने साथ गलत करने वालों को जरूर याद रखो, लेकिन हिसाब उनका भी रखना जिन्होंने खड़े होकर तमाशा देखा था!"** प्रस्तावना: जीवन में जब हमें अन्याय का सामना करना पड़ता है, तो सिर्फ वही व्यक्ति हमें दुःख नहीं पहुँचाता जो हमें नुकसान पहुँचाता है। कभी-कभी, हमें उस चुप्पी से भी अधिक पीड़ा होती है, जो हमारे आस-पास के लोग रहते हुए भी किसी अन्याय के खिलाफ बोलने की बजाय तमाशा देखते हैं। श्री कृष्ण की यह वाणी, न केवल कर्म और न्याय का ज्ञान देती है, बल्कि यह यह भी समझाती है कि मौन दर्शक कभी-कभी अधर्म के बराबर होते हैं। 1. श्री कृष्ण की दृष्टि: केवल कर्म नहीं, चेतना का मार्ग महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन, जब अपने अपनों से लड़ने की स्थिति में खड़ा था, उसकी मनःस्थिति अत्यंत संघर्षमय थी। वह धर्म और अधर्म के बीच झूल रहा था। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: "न्याय के समय तटस्थ रहना भी अन्याय है। जो सत्य के पक्ष में खड़ा नहीं होता, वह अधर्म को मौन समर्थन देता है।" यह वाक्य केवल युद्ध के संदर्भ में नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक संघर्ष...

निःस्वार्थता और समर्पण: सच्ची शांति की राह

निःस्वार्थता और समर्पण: सच्ची शांति की राह ~ आनंद किशोर मेहता जीवन केवल एक संयोग नहीं, बल्कि एक साधना है—जिसका चरम लक्ष्य है आंतरिक शांति, स्थायी संतोष और व्यापक उद्देश्य में स्वयं को विलीन कर देना। यह यात्रा तब आरंभ होती है जब मनुष्य अपने ‘स्व’ की सीमाओं को पहचानता है और अहंकार, वासनाओं व निजी आकांक्षाओं की दीवारें तोड़कर व्यापक चेतना से जुड़ता है। निःस्वार्थता और समर्पण वही सेतु हैं, जो हमें स्वार्थपूर्ण अस्तित्व से उठाकर उच्चतर जीवन-दृष्टि की ओर ले जाते हैं—जहाँ न कोई आग्रह रहता है, न कोई अपेक्षा। यह मार्ग किसी धर्म, पंथ या वाद से नहीं बंधा—यह तो प्रेम की भूमि, सेवा की राह और विनम्रता की वाणी है। सेवा का सौंदर्य: जहाँ ‘मैं’ नहीं, केवल ‘तू’ होता है जब कोई मनुष्य सेवा को जीवन का उद्देश्य बना लेता है, तब वह दुनिया की प्रतिक्रिया से निर्भीक हो जाता है। न उसे प्रशंसा लुभाती है, न आलोचना विचलित करती है। उसका कर्म निष्कलुष, निस्वार्थ और निर्मल हो जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने अस्तित्व मात्र से सुकून और प्रेरणा फैलाता है। "जहाँ कर्म सेवा बन जाए, वहाँ जीवन परम सत्य से एकरूप हो जाता ह...

तू हारकर भी विजेता है

तू हारकर भी विजेता है  ~ आनंद किशोर मेहता जीवन में हार और जीत केवल बाहरी घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारी आंतरिक स्थिति को भी परिभाषित करती हैं। अक्सर लोग हार को अंत समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हर हार अपने भीतर एक नई जीत की संभावना समेटे होती है। जब तक हम प्रयास करना नहीं छोड़ते, तब तक कोई भी हार अंतिम नहीं होती। "हार कोई अंत नहीं, यह तो बस एक नया आरंभ है!" वैज्ञानिक दृष्टिकोण थॉमस एडिसन का उदाहरण लें, जिन्होंने 1000 से अधिक बार असफल होने के बाद बल्ब का आविष्कार किया। जब उनसे पूछा गया कि इतनी बार विफल होने के बावजूद उन्होंने हार क्यों नहीं मानी, तो उन्होंने उत्तर दिया, "मैं असफल नहीं हुआ, मैंने 1000 ऐसे तरीके खोजे जो काम नहीं करते थे।" यही असली जीत है—असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ना। "असली हार तब होती है जब हम प्रयास करना छोड़ देते हैं।" दार्शनिक दृष्टिकोण सुकरात, जिन्होंने तर्क और विचारशीलता से समाज को नई दिशा दी, उन्हें भी अपनी सत्यनिष्ठा के कारण विष का प्याला पीना पड़ा। उनकी मृत्यु को उनके विरोधियों ने जीत समझा, लेकिन उनके विच...

"वचन की शक्ति: एक संकल्प जो नियति बदल दे"

" वचन की शक्ति: एक संकल्प जो नियति बदल दे" ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका शब्दों में गहरी शक्ति होती है। एक सही वचन, सही समय पर, सही व्यक्ति द्वारा कहा गया, किसी के जीवन को पूरी तरह बदल सकता है। जब श्रद्धा और समर्पण के साथ कोई वचन स्वीकार किया जाता है, तो वह केवल शब्द नहीं रहता, बल्कि भाग्य की धारा को मोड़ने वाली शक्ति बन जाता है। "एक सच्चा वचन केवल शब्द नहीं, बल्कि भाग्य की रचना करता है।" इतिहास गवाह है कि जिसने भी संपूर्ण श्रद्धा से किसी एक वचन को अपनाया, उसने असंभव को भी संभव बना दिया। यही शक्ति 'एक वचन' में निहित होती है। 1. आध्यात्मिक मार्गदर्शन में वचन की शक्ति आध्यात्मिकता में गुरु, भगवान या किसी उच्च चेतना के प्रति संपूर्ण समर्पण महत्वपूर्ण होता है। जब कोई भक्त कहता है— "तेरे एक वचन की शक्ति," तो इसका अर्थ है कि वह पूर्ण रूप से उस दिव्य वाणी पर विश्वास करता है। श्रीराम और केवट की कथा इसका सुंदर उदाहरण है। केवट जानता था कि श्रीराम के चरण कमल का स्पर्श ही उसके समस्त जन्मों का उद्धार कर सकता है। इसलिए वह पहले उनके चरण धोना चा...

आस्था और परिश्रम: सफलता की कुंजी

आस्था और परिश्रम: सफलता की कुंजी  लेखक: आनंद किशोर मेहता मनुष्य के जीवन में आस्था और परिश्रम का अत्यधिक महत्व है। यह दो ऐसे स्तंभ हैं जो न केवल सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं, बल्कि असंभव को भी संभव बना देते हैं। यदि हम पौराणिक युग की ओर देखें, तो हमें कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ अटूट आस्था और कठिन परिश्रम ने चमत्कार कर दिखाए। वहीं, आधुनिक युग में भी यही सिद्धांत लागू होते हैं—जो अपने लक्ष्य पर विश्वास रखता है और निरंतर प्रयास करता है, वह निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करता है। पौराणिक युग में आस्था और परिश्रम का महत्व यदि हम रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को देखें, तो हमें स्पष्ट रूप से आस्था और परिश्रम के अनेक उदाहरण मिलते हैं। भगवान राम का वनवास केवल एक संघर्ष नहीं था, बल्कि उनकी आस्था और धैर्य की परीक्षा थी। उन्होंने हर कठिनाई को धैर्यपूर्वक स्वीकार किया और अंततः विजय प्राप्त की। इसी तरह, महाभारत में अर्जुन की दृढ़ता और कृष्ण पर उनकी अटूट आस्था ने उन्हें कौरवों के विरुद्ध विजयी बनाया। इन कथाओं में यह संदेश निहित है कि सच्ची आस्था और परिश्रम से असंभव भी संभव हो स...

विचारों का रहस्य: आत्ममंथन बनाम वाद-विवाद

कॉपीराइट © आनंद किशोर मेहता विचारों का रहस्य: आत्ममंथन बनाम वाद-विवाद भूमिका यह संसार विचारों का ही खेल है। हर उपलब्धि, हर बदलाव और हर क्रांति की जड़ में एक विचार ही होता है। हम जो कुछ भी हैं, वह हमारी सोच का ही प्रतिबिंब है। लेकिन विचारों की गहराई को समझने के लिए दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ सामने आती हैं— आत्ममंथन (Self-Reflection) और वाद-विवाद (Debate) । जब हम खुद से बहस करते हैं, तो हमें गहरे और जटिल सवालों के उत्तर मिलने लगते हैं। जब हम दूसरों से बहस करते हैं, तो नए-नए प्रश्न खड़े हो जाते हैं, जो हमारी सोच को और अधिक विस्तार देते हैं। यही विचारों का रहस्य है—एक अंतहीन यात्रा, जो हमें सत्य और वास्तविकता के करीब ले जाती है। खुद से बहस: उत्तरों की यात्रा जब कोई व्यक्ति खुद से सवाल करता है, तो वह आत्ममंथन की प्रक्रिया में प्रवेश करता है। यह वह अवस्था होती है, जब हम अपने भीतर झाँककर अपनी सोच को परखते हैं। आत्ममंथन क्यों महत्वपूर्ण है? निर्णय क्षमता को मजबूत करता है – जब हम खुद से पूछते हैं, "क्या मैं सही कर रहा हूँ?" या "इस स्थिति में सबसे सही वि...

मानव जीवन, उत्तम परवरिश और सच्चे प्रेम की अनमोल यात्रा

  मानव जीवन, उत्तम परवरिश और सच्चे प्रेम की अनमोल यात्रा भूमिका मनुष्य के जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? क्या केवल जन्म लेकर सांस लेना और फिर एक दिन इस संसार से विदा हो जाना ही जीवन है? नहीं, जीवन इससे कहीं अधिक गहरा और अर्थपूर्ण है। यह एक यात्रा है—आत्मबोध, कर्तव्य, प्रेम और परवरिश की यात्रा। मनुष्य अपने विचारों से निर्मित होता है। उसकी परवरिश उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है, और सच्चा प्रेम उसकी आत्मा को शुद्ध और सशक्त बनाता है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने जीवन को समझें, अपने कर्तव्यों का पालन करें और सच्चे प्रेम को पहचानें। यही जीवन की पूर्णता है। मानव जीवन: उद्देश्य की खोज मनुष्य का जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मबोध, सेवा, और कर्तव्यनिष्ठा से परिपूर्ण होना चाहिए। जीवन का असली उद्देश्य यह जानना है कि हम क्यों आए हैं और हमें क्या करना चाहिए। जीवन के तीन महत्वपूर्ण आयाम भौतिक पक्ष – यह हमारे रोजमर्रा के कार्यों, आजीविका, सुख-सुविधाओं और सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता है। मानसिक और बौद्धिक पक्ष – इसमें हमारे विचार,...