कर्ता रोग छोड़ दो । लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता कभी सोचा है — हम जो कुछ भी करते हैं, क्या वास्तव में वही हमारे नियंत्रण में होता है? हम कहते हैं — "मैंने किया", "मेरे कारण हुआ", "मेरी मेहनत है" । पर यही "मैं" का अभिमान धीरे-धीरे एक रोग बन जाता है — कर्ता रोग । यह ऐसा सूक्ष्म अहंकार है, जो न दिखता है, न पकड़ा जाता है, लेकिन अंदर ही अंदर आत्मा की पवित्रता को छीन लेता है। कर्ता का बोध: प्रारंभिक भ्रम बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि मेहनत करो, कुछ बनो, सफलता तुम्हारे हाथ में है। यह प्रेरणा देने के लिए उपयोगी है, लेकिन धीरे-धीरे यह सोच भीतर बैठ जाती है कि "सब कुछ मैं ही कर रहा हूँ।" हम भूल जाते हैं कि जीवन की साँसें तक हमारे वश में नहीं हैं। जो व्यक्ति खुद को ही सबका कर्ता मान बैठता है, वह जब किसी असफलता या हानि का सामना करता है, तो टूट जाता है। क्योंकि उसका विश्वास "स्वयं" पर था — परम तत्व पर नहीं। कर्तापन और कर्मफल का बंधन जब हम स्वयं को कर्ता मानते हैं, तो हर कार्य से जुड़ाव हो जाता है — फल की अपेक्षा जन्म लेती है। ...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.