कर्ता रोग छोड़ दो ।
लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता
कभी सोचा है — हम जो कुछ भी करते हैं, क्या वास्तव में वही हमारे नियंत्रण में होता है? हम कहते हैं — "मैंने किया", "मेरे कारण हुआ", "मेरी मेहनत है"। पर यही "मैं" का अभिमान धीरे-धीरे एक रोग बन जाता है — कर्ता रोग।
यह ऐसा सूक्ष्म अहंकार है, जो न दिखता है, न पकड़ा जाता है, लेकिन अंदर ही अंदर आत्मा की पवित्रता को छीन लेता है।
कर्ता का बोध: प्रारंभिक भ्रम
बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि मेहनत करो, कुछ बनो, सफलता तुम्हारे हाथ में है। यह प्रेरणा देने के लिए उपयोगी है, लेकिन धीरे-धीरे यह सोच भीतर बैठ जाती है कि "सब कुछ मैं ही कर रहा हूँ।"
हम भूल जाते हैं कि जीवन की साँसें तक हमारे वश में नहीं हैं।
जो व्यक्ति खुद को ही सबका कर्ता मान बैठता है, वह जब किसी असफलता या हानि का सामना करता है, तो टूट जाता है। क्योंकि उसका विश्वास "स्वयं" पर था — परम तत्व पर नहीं।
कर्तापन और कर्मफल का बंधन
जब हम स्वयं को कर्ता मानते हैं, तो हर कार्य से जुड़ाव हो जाता है — फल की अपेक्षा जन्म लेती है। यह अपेक्षा दुख का कारण बनती है।
भगवद गीता कहती है:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" —
तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।
यह तभी संभव है जब हम यह मान लें कि हम केवल एक उपकरण हैं — वास्तविक कर्ता वह परम चेतना है, जो सब कुछ संचालित कर रही है।
कर्ता भाव का त्याग: एकांत में मिलने वाला प्रकाश
कर्तापन छोड़ने का अर्थ यह नहीं कि हम निष्क्रिय हो जाएँ।
बल्कि यह समझें कि हमारे माध्यम से कार्य हो रहा है।
जैसे बाँसुरी बजती है, लेकिन सुर उस में से नहीं निकलते — वे तो वादक के हैं।
वैसे ही, हमारे कर्मों के पीछे भी कोई दिव्य शक्ति कार्यरत है।
जब हम इस भाव को आत्मसात करते हैं, तो एक नया प्रकाश फैलता है —
- अहंकार का अंत होता है
- परिणाम की चिंता मिटती है
- कर्म सेवा बन जाता है
- मन शांत होता है
- आत्मा मुक्त होने लगती है
कर्तापन से मुक्ति: अंतिम लक्ष्य
जो यह समझ लेता है कि "मैं कुछ नहीं हूँ, सब वही है" — वह स्वयं को खोकर परमात्मा को पा लेता है।
यह विनम्रता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति बन जाती है।
एक संत ने कहा था —
"कर्ता भाव का त्याग ही मुक्त भाव की शुरुआत है।"
निष्कर्ष
कर्ता रोग छोड़ दो — यह मात्र एक उपदेश नहीं, बल्कि आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है।
जो इसे समझ लेता है, वह जीवन के हर कर्म में ईश्वर की उपस्थिति देखता है।
उसका जीवन एक सहज, शांत, सेवामय यात्रा बन जाता है।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
कर्ता तू, मैं खाली हाथ
~ आनंद किशोर मेहता
ना मैंने बोया, ना मैंने काटा,
जो कुछ भी हुआ, बस तूने ही बाँटा।
मैं तो था राही, बस राह से गुज़रा,
साया भी तेरा, ये तन भी तेरा।
मैं कहता रहा — "मैंने किया",
पर दिल ने कहा — "ये भ्रम है पिया।"
जो साँसें भी तेरी कृपा से चलती,
क्यों सोचे ये बुद्धि कि मैं ही सब चलता?
मैंने जब खुद को कर्ता जाना,
हर हार-जीत ने भीतर से हिलाना।
जब तुझको कर्ता मान लिया दिल से,
तब चैन मिला उस अनंत सिलसिले से।
अब कर्म करूँ, तो तेरे नाम से,
ना माया बँधे, ना फल की जाम से।
बस सेवा बन जाए मेरा हर दिन,
ना "मैं" बचे, ना "मेरा" का तिनका किन।
तू बहता रहे मेरी नस-नस में,
मैं मिटता रहूँ तेरे रस-रस में।
कर्ता तू, मैं खाली हाथ,
यही है सुख, यही है साथ।
© 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.
"अहंकार कहता है — मैं करूँगा, प्रेम कहता है — तू कर, मैं देखता हूँ।"
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