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शब्दों की गूँज: जहाँ प्रेम मौन में भी बोलता है

शब्दों की गूँज: जहाँ प्रेम मौन में भी बोलता है   क्या शब्दों की कोई सीमा होती है? क्या प्रेम केवल व्यक्त करने से ही समझा जाता है? या फिर मौन में भी इसकी अनुगूँज सुनाई देती है? शब्द, केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवंत ऊर्जा हैं। विज्ञान कहता है कि प्रत्येक ध्वनि एक तरंग उत्पन्न करती है, जो ब्रह्मांड में अनंत काल तक प्रवाहित होती रहती है। साहित्य यह सिद्ध करता है कि प्रेम से रचे गए शब्द अमर हो जाते हैं। और समाजशास्त्र यह बताता है कि प्रेमपूर्ण शब्द न केवल संबंधों को संवारते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और समग्र जीवन को भी संतुलित करते हैं। तो फिर, क्या प्रेम मौन में भी बोल सकता है? आइए, इस विचार को विज्ञान, साहित्य और समाज के तर्कों के साथ समझते हैं। शब्दों की वैज्ञानिक ऊर्जा भौतिकी कहती है कि हर ध्वनि की अपनी एक शक्ति होती है। जापानी वैज्ञानिक मासारू इमोटो के शोध में पाया गया कि जब जल को सकारात्मक और प्रेमपूर्ण शब्द सुनाए गए, तो उसकी संरचना सुंदर हो गई, जबकि नकारात्मक शब्दों से उसमें विकृति आ गई। अब चूँकि हमारा शरीर 70% जल से बना है, तो यह स्पष्ट है कि प्रेम से भरे ...