गुरु-शिष्य संबंध: ज्ञान से जीवन के प्रकाश तक भूमिका गुरु-शिष्य का संबंध केवल शिक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन का आधार और आत्मिक विकास की नींव है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि वह दीपक है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर शिष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है। यह संबंध केवल शब्दों का नहीं, बल्कि अनुभव, अनुशासन और आंतरिक चेतना का सेतु है। प्राचीन से आधुनिक तक: बदलता स्वरूप गुरुकुल युग: तप और समर्पण शिष्य अपने अहंकार, स्वार्थ और अज्ञान को त्यागकर गुरु की शरण में जाता था। शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मबोध और कर्तव्यबोध का माध्यम थी। गुरु, शिष्य के जीवन का वह शिल्पकार था, जो उसे हीरे की तरह तराशता था। "गुरु की छाया में बैठा शिष्य, तपस्वी की तरह ज्ञान की अग्नि में जलता था और एक दैदीप्यमान रत्न बनकर निकलता था।" आधुनिक युग: तकनीक और नई सोच के साथ संबंध कक्षाएँ डिजिटल हो गईं, लेकिन गुरु की भूमिका आज भी अमूल्य बनी हुई है। शिक्षक अब केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि कोच, मार्गदर्शक और मनोवैज्ञानिक भी हैं। शिक्षा अब केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं, बल्कि इनोवेशन, क्रि...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.