"नवीन सभ्यता का अभ्युदय: एक वैश्विक परिवार की ओर" लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका: संसार केवल भौतिक प्रगति से सभ्य नहीं बनता, बल्कि सच्ची सभ्यता का निर्माण मानवीय मूल्यों, आध्यात्मिक चेतना, और सह-अस्तित्व की भावना पर आधारित होता है। जब समस्त मानवजाति एक परिवार के रूप में उभरेगी, तभी एक उन्नत, समरस और दिव्य समाज की स्थापना संभव होगी। इसके लिए हमें केवल बाह्य विकास नहीं, बल्कि आंतरिक विकास की दिशा में भी अग्रसर होना होगा। 1. ईश्वर की पितृत्व भावना और मानव जाति की भ्रातृत्व भावना: सभ्य समाज की नींव तभी सशक्त होगी जब हम यह स्वीकार करेंगे कि ईश्वर संपूर्ण सृष्टि के पिता हैं और समस्त मानवता परस्पर भ्रातृत्व के अटूट बंधन में बंधी हुई है। जब प्रत्येक व्यक्ति इस भावना को अपने जीवन में आत्मसात करेगा, तब जाति, धर्म, भाषा और भौगोलिक सीमाओं के कृत्रिम बंधन स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। यह भाव हमें केवल विचारों तक सीमित नहीं रखना, बल्कि अपने आचरण में उतारना होगा। जब हर व्यक्ति दूसरों को अपने परिवार का सदस्य समझेगा, तब समाज में प्रेम, करुणा, सहयोग और सह-अस्तित्...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.