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भाग पहला: जीवन का सच्चा स्वर — भावनाएँ, ज़िम्मेदारियाँ और आत्मिक रिश्तों के रंग

भाग पहला :  जीवन का सच्चा स्वर — भावनाएँ, ज़िम्मेदारियाँ और आत्मिक रिश्तों के रंग ~ आनंद किशोर मेहता "जो दिल से जीते हैं, वे दर्द में भी मुस्कुराते हैं — क्योंकि उनका जीवन दूसरों के लिए एक संदेश होता है, और मौन में भी एक प्रेरणा।" 1. स्वतंत्रता और जिम्मेदारी: एक सच्चा संतुलन Freedom and Responsibility: A True Balance "स्वतंत्रता का अर्थ केवल चुनाव का अधिकार नहीं, बल्कि उसके परिणामों की जिम्मेदारी भी है।" "Freedom doesn't just mean the right to choose, but also the responsibility to face the consequences." मनुष्य जीवन की सबसे सुंदर विशेषता है — स्वतंत्रता। यह हमें यह अधिकार देती है कि हम अपने रास्ते, अपने विचार और अपने निर्णय स्वयं चुन सकें। लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हर स्वतंत्रता के साथ एक गहरी जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है। जब हम किसी राह को चुनते हैं — चाहे वह करियर की हो, जीवनसाथी की हो, या किसी आदर्श की — तो उस चुनाव से जुड़ी हर परिस्थिति को भी हमें स्वीकार करना होता है। केवल अच्छे परिणामों का हिस्सा बनना ही नहीं, बल्कि कठिनाइयों, संघर...

आज की बात: चलो बच्चों, सपनों की ओर!

आज की बात: चलो बच्चों, सपनों की ओर! ~ आनंद किशोर मेहता सोचो, एक बच्चा खिड़की के पास बैठा है। किताब उसके सामने खुली है, लेकिन उसका मन कहीं और भटक रहा है। आँखों में एक सवाल है — "क्या मैं सच में कुछ कर सकता हूँ?" तभी एक आत्मीय आवाज आती है — बेटा, अब उठो… तुम्हारा समय आ गया है। यह आवाज किसी और की नहीं, बल्कि उस उम्मीद की किरण की है, जो हर बच्चे के भीतर बसती है। आज की हमारी यही बात थी — बच्चों को वह आवाज सुनाना, उन्हें उनके भीतर छिपे सपनों से मिलवाना। हर बच्चा कुछ बनना चाहता है — कोई डॉक्टर, कोई वैज्ञानिक, कोई खिलाड़ी या कलाकार। पर सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होता। सपनों को हकीकत बनाने के लिए रोज़ थोड़ा-थोड़ा चलना पड़ता है। हमने बच्चों से एक सीधी और सच्ची बात कही: धीरे-धीरे चलो, लेकिन रुकना मत। हर दिन थोड़ा पढ़ो, थोड़ा समझो, थोड़ा आगे बढ़ो। और अगर मन में कोई डर आए, तो खुद से कहो — बेटा: लेकिन मुझसे नहीं हो पाएगा। शिक्षक (मुस्कुराते हुए): अगर चलोगे नहीं तो कैसे जानोगे? पहला कदम भरोसे से भरोसा दिलाता है। हमने बच्चों को एक कविता सुनाई — जो जैसे उनके मन की आवाज बन ग...

साँवले रंग की कीमत

साँवले रंग की कीमत ~ आनंद किशोर मेहता परिचय सौंदर्य की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है। कभी गोरा रंग श्रेष्ठता और आकर्षण का प्रतीक माना गया, तो कभी साँवला और गहरा रंग गरिमा, शक्ति और रहस्य का। लेकिन क्या सुंदरता केवल त्वचा के रंग तक सीमित है? क्या किसी व्यक्ति का मूल्य उसकी सोच, चरित्र और कर्म से अधिक उसके बाहरी रूप पर निर्भर करता है? यह लेख समाज में व्याप्त इस मानसिकता की पड़ताल करता है और साँवले रंग की वास्तविक कीमत को उजागर करता है। सौंदर्य का वास्तविक पैमाना सौंदर्य केवल बाहरी रंग-रूप से परिभाषित नहीं होता, बल्कि यह आत्मविश्वास, आचरण और व्यक्तित्व की आभा में प्रकट होता है। साँवले रंग वाले लोग भी उतने ही सम्मान और गरिमा के अधिकारी हैं, जितने किसी अन्य रंग के व्यक्ति। इतिहास साक्षी है कि महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, बाबा साहेब अंबेडकर और ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तित्वों का रंग गोरा नहीं था, लेकिन उनके विचारों और कार्यों की रोशनी ने पूरे विश्व को आलोकित किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि असली पहचान रंग में नहीं, बल्कि ज्ञान, संघर्ष और कर्म में होती है। स...

आस्था और परिश्रम: सफलता की कुंजी

आस्था और परिश्रम: सफलता की कुंजी  लेखक: आनंद किशोर मेहता मनुष्य के जीवन में आस्था और परिश्रम का अत्यधिक महत्व है। यह दो ऐसे स्तंभ हैं जो न केवल सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं, बल्कि असंभव को भी संभव बना देते हैं। यदि हम पौराणिक युग की ओर देखें, तो हमें कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ अटूट आस्था और कठिन परिश्रम ने चमत्कार कर दिखाए। वहीं, आधुनिक युग में भी यही सिद्धांत लागू होते हैं—जो अपने लक्ष्य पर विश्वास रखता है और निरंतर प्रयास करता है, वह निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करता है। पौराणिक युग में आस्था और परिश्रम का महत्व यदि हम रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को देखें, तो हमें स्पष्ट रूप से आस्था और परिश्रम के अनेक उदाहरण मिलते हैं। भगवान राम का वनवास केवल एक संघर्ष नहीं था, बल्कि उनकी आस्था और धैर्य की परीक्षा थी। उन्होंने हर कठिनाई को धैर्यपूर्वक स्वीकार किया और अंततः विजय प्राप्त की। इसी तरह, महाभारत में अर्जुन की दृढ़ता और कृष्ण पर उनकी अटूट आस्था ने उन्हें कौरवों के विरुद्ध विजयी बनाया। इन कथाओं में यह संदेश निहित है कि सच्ची आस्था और परिश्रम से असंभव भी संभव हो स...