भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा इस सृष्टि की रचना केवल जन्म और मृत्यु के चक्र को दोहराने के लिए नहीं हुई है। इसका अंतिम उद्देश्य हर जीव को जागरूक करना और उसे परम आनंद के स्रोत तक पहुँचाना है। हालांकि, यह यात्रा सरल और सीधी नहीं है। यह दो मार्गों के बीच संतुलन स्थापित करने की यात्रा है: जब भक्त बेफिक्र हो जाता है और ईश्वर चिंतित हो जाते हैं सच्चा भक्त जब पूर्ण समर्पण कर लेता है, तो वह संसार की सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। उसे यह विश्वास हो जाता है कि "मेरे जीवन की हर जिम्मेदारी परमसत्ता की है, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं।" यह विश्वास अच्छा है, लेकिन यदि यह भक्ति निष्क्रियता में बदल जाए, तो यह सृष्टि के नियमों के खिलाफ हो जाता है। परमसत्ता को तब चिंता होती है। जैसे माता-पिता अपने उस बच्चे के लिए चिंतित हो जाते हैं, जो हर चीज़ उनके भरोसे छोड़कर खुद कोई प्रयास नहीं करता, वैसे ही ईश्वर भी सोचते हैं, "यह भक्त तो पूरी तरह निश्चिंत हो गया है, लेकिन इसे अब कर्मयोग का बोध कराना होगा।" इसी कारण, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल भक्...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.