सोचने लायक बना दिया है… ~ आनंद किशोर मेहता जब लोग मेरी कमियाँ गिनाने में व्यस्त होते हैं, तब मैं मुस्कुरा कर यह समझ जाता हूँ — मैंने उन्हें सोचने लायक कुछ तो दिया है। किसी को चुभी है मेरी बात, किसी को खटक गया मेरा बदलाव, और किसी को झुकना पड़ा अपने अहम के सामने। क्योंकि, जो कुछ भी हमें भीतर से हिला दे — वो साधारण नहीं होता। रिश्ते कभी कुदरती मौत नहीं मरते। इन्हें मारता है इंसान खुद — नफरत से, नजरअंदाज़ से, और कभी-कभी, सिर्फ एक गलतफहमी से। कभी-कभी सोचता हूँ — मुझे क्या हक है कि किसी को मतलबी कहूं? मैं खुद रब को सिर्फ मुसीबत में याद करता हूँ! तो फिर दूसरों के स्वार्थ पर क्यों उंगली उठाऊँ? हम जब किसी की सफलता को स्वीकार नहीं कर पाते, तो वह हमारे भीतर ईर्ष्या बनकर जलती है। और जब उसे अपनाकर देखें — तो वही सफलता प्रेरणा बन जाती है। मैं अक्सर जिनके झूठ का मान रख लेता हूँ, वो सोचते हैं, उन्होंने मुझे बेवकूफ़ बना दिया। पर उन्हें यह कौन समझाए — मैंने रिश्ते की मर्यादा बचाई, ना कि अपनी मूर्खता दिखाई। कोई दवा नहीं है उन रोगों की, जो तरक्की देखकर जलने लगते ह...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.