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Where There is Love, There is Nothing Else.

जहाँ प्रेम है, वहाँ कुछ और नहीं - आनंद किशोर मेहता INTRODUCTION   "प्रेम केवल एक भावना नहीं, यह चेतना की वह दिव्य ऊर्जा है, जो हर बंधन को तोड़ती है, हर सीमा से परे जाती है और आत्मा को मुक्त करती है। जहाँ प्रेम है, वहाँ अहंकार नहीं, स्वार्थ नहीं—बस अनंत प्रकाश है।" प्रेम—एक ऐसा शब्द, जो सुनते ही हृदय में एक मधुर स्पंदन उत्पन्न करता है। लेकिन क्या प्रेम केवल आकर्षण, लगाव या संबंधों तक सीमित है? नहीं, प्रेम इससे कहीं अधिक गहरा, शक्तिशाली और अनंत है। यह मात्र एक अनुभूति नहीं, बल्कि एक ऊर्जा शक्ति है, जो हमें स्वार्थ, मोह और सांसारिक सीमाओं से मुक्त कर वास्तविक स्वतंत्रता की ओर ले जाती है। जब प्रेम अपने शुद्धतम स्वरूप में होता है, तब वहाँ कोई अपेक्षा नहीं, कोई स्वामित्व नहीं—बस प्रेम ही प्रेम होता है। जब प्रेम सीमाओं को लांघता है, तब यह केवल किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व से एक हो जाता है। तब प्रेम केवल एक अनुभूति नहीं, बल्कि स्वयं चेतना का स्वरूप बन जाता है। प्रेम: स्वतंत्रता है, बंधन नहीं खलील जिब्रान कहते हैं— "यदि तुम प्रेम करते हो, ...

कॉस्मिक वाइब्रेशन: चेतना के अनसुने रहस्य

कॉस्मिक वाइब्रेशन: चेतना के अनसुने रहस्य।  भूमिका हमारे चारों ओर जो कुछ भी है, वह ऊर्जा और तरंगों का खेल है। विज्ञान इसे फ्रीक्वेंसी और वाइब्रेशन के रूप में देखता है, और आध्यात्मिक परंपराएँ इसे नाद (ध्वनि) और ज्योति (प्रकाश) के रूप में अनुभव करती हैं। जब कोई साधक अपनी आंतरिक यात्रा में गहराई से उतरता है, तो उसे एक रहस्यमयी ध्वनि और दिव्य प्रकाश का अनुभव होता है, जिसे बाहरी इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता। यह अनुभव जीवन को पूरी तरह से बदल देता है और चेतना के एक नए आयाम में प्रवेश कराता है। प्राचीन और आधुनिक दृष्टिकोण प्राचीन ग्रंथों में इसे "अनहद नाद" और "अखंड ज्योति" कहा गया है। संत कबीर, गुरु नानक, और योगियों ने इसे ध्यान की परम अवस्था माना है। वेदों में इसे शब्द ब्रह्म कहा गया, जिसका अर्थ है—एक दिव्य ध्वनि जो समस्त ब्रह्मांड में अनंत रूप से गूंज रही है। आधुनिक विज्ञान भी इस ओर संकेत कर रहा है। क्वांटम फिजिक्स बताती है कि पूरा ब्रह्मांड कंपन (Vibration) और ऊर्जा से बना है। न्यूरोसाइंस में यह प्रमाणित किया गया है कि ध्यान की गहरी अवस्था में गामा वेव्स (Ga...

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा  इस सृष्टि की रचना केवल जन्म और मृत्यु के चक्र को दोहराने के लिए नहीं हुई है। इसका अंतिम उद्देश्य हर जीव को जागरूक करना और उसे परम आनंद के स्रोत तक पहुँचाना है। हालांकि, यह यात्रा सरल और सीधी नहीं है। यह दो मार्गों के बीच संतुलन स्थापित करने की यात्रा है: जब भक्त बेफिक्र हो जाता है और ईश्वर चिंतित हो जाते हैं सच्चा भक्त जब पूर्ण समर्पण कर लेता है, तो वह संसार की सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। उसे यह विश्वास हो जाता है कि "मेरे जीवन की हर जिम्मेदारी परमसत्ता की है, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं।" यह विश्वास अच्छा है, लेकिन यदि यह भक्ति निष्क्रियता में बदल जाए, तो यह सृष्टि के नियमों के खिलाफ हो जाता है। परमसत्ता को तब चिंता होती है। जैसे माता-पिता अपने उस बच्चे के लिए चिंतित हो जाते हैं, जो हर चीज़ उनके भरोसे छोड़कर खुद कोई प्रयास नहीं करता, वैसे ही ईश्वर भी सोचते हैं, "यह भक्त तो पूरी तरह निश्चिंत हो गया है, लेकिन इसे अब कर्मयोग का बोध कराना होगा।" इसी कारण, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल भक्...

स्व-परिचय और परम वास्तविकता: चेतना की परम यात्रा।

स्व-परिचय और परम वास्तविकता: चेतना की परम यात्रा स्व-परिचय का अर्थ केवल स्वयं को जानना नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के मूल को अनुभव करना है। लेकिन वास्तव में स्वयं को "जानने" का क्या अर्थ है? यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उतना ही गहरा और रहस्यमयी है। यह एक दिव्य विरोधाभास है— हर रहस्य उजागर है, फिर भी कुछ भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं। शक्ति विद्यमान है, फिर भी वह अदृश्य और अज्ञेय बनी रहती है। परम चेतना सर्वत्र है, फिर भी वह निराकार और अनिर्वचनीय है। शून्यता और पूर्ण विश्वास, दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं। समस्त ज्ञान सुलभ है, फिर भी वास्तविक अनुभूति सीमित प्रतीत होती है। अहंकार का आभास होता है, फिर भी उसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं। "मैं संपूर्ण ब्रह्मांड हूँ," फिर भी "मैं" का कोई स्वतंत्र स्वरूप नहीं। अतः, परम सत्ता के समक्ष, मेरा व्यक्तिगत अस्तित्व केवल एक भ्रम मात्र है। परम वास्तविकता की अनुभूति सत्य स्व-परिचय संपूर्ण समर्पण और आत्म-विसर्जन में निहित है, जहाँ वास्तविकता और अस्तित्व एकाकार हो जाते हैं। जीवन की प्रत्येक घटना, प्रत्य...