Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Spirituality

होली: रंगों से परे प्रेम, चेतना और आत्मिक जागरण का उत्सव

होली: रंगों से परे प्रेम, चेतना और आत्मिक जागरण का उत्सव ~ आनंद किशोर मेहता होली मात्र रंगों का त्योहार नहीं, यह सूर्त के रंगों में रंगने और प्रेम की ज्योति जलाने का पर्व है। यह वह क्षण है जब जीवन के समस्त भेदभाव मिट जाते हैं, और हम सभी एक दिव्य चेतना में एकाकार हो जाते हैं। यह केवल बाहरी उत्सव नहीं, बल्कि हमारे भीतर छिपे आनंद, प्रेम और आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रस्फुटन का अवसर है। होली का आध्यात्मिक संदेश जब तक हम केवल बाहरी रंगों में उलझे रहेंगे, तब तक होली का सच्चा आनंद अधूरा रहेगा। यह पर्व हमें निमंत्रण देता है कि हम अपने भीतर झाँकें, अहंकार की अग्नि में अपनी बुराइयों को जलाएँ और प्रेम, करुणा और दिव्यता के रंगों में स्वयं को सराबोर करें। आध्यात्मिक होली के प्रमुख पहलू: ✅ भीतर की नकारात्मकता को जलाना – जैसे होलिका दहन में बुराई का अंत होता है, वैसे ही हमें अपने भीतर के क्रोध, ईर्ष्या, मोह और अहंकार को जलाना चाहिए। ✅ सच्चे आनंद की अनुभूति – बाहरी रंग क्षणिक हैं, लेकिन प्रेम, करुणा और आत्मिक शांति के रंग चिरस्थायी हैं। ✅ मोह-माया से मुक्ति – सांसारिक भटकाव से मुक्त ह...

Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation

Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation गुस्सा और मतभेद: बादल की गरज की तरह, प्रेम और स्नेह: सूरज की किरणों की तरह ~ आनंद किशोर मेहता जीवन में भावनाओं का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। कभी गुस्सा (Anger) आता है, कभी मतभेद (Disagreement) होते हैं, तो कभी प्रेम (Love) और स्नेह (Affection) हमें जोड़ते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि हम अपनी भावनाओं को किस तरह संतुलित (Emotional Balance) करते हैं? गुस्सा और मतभेद बादल की गरज (Thunder of Clouds) की तरह होने चाहिए—जो क्षणिक रूप से शोर करें, लेकिन जल्द ही समाप्त हो जाएँ। वहीं, प्रेम और स्नेह सूरज की किरणों (Sun Rays) की तरह होने चाहिए—जो मौन रहें, लेकिन निरंतर जीवन को ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करें। गुस्सा और मतभेद: क्षणिक आवेग (Temporary Impulse), स्थायी नहीं जब आकाश में बादल गरजते हैं, तो वे क्षणिक रूप से वातावरण में हलचल (Disturbance) मचाते हैं, लेकिन वे हमेशा के लिए नहीं टिकते। अगर वे ठहर जाएँ, तो अंधकार (Darkness) और असंतुलन (Imbalance) पैदा कर सकते हैं। उसी तरह, गुस्सा और मतभेद भी अस्थायी (Temporary) होने चाहिए। यदि वे...

Beyond Problems: A Balanced Perspective

समस्याओं से आगे: एक नए दृष्टिकोण की ओर परिचय हर व्यक्ति के जीवन में समस्याएँ आती हैं—कभी आर्थिक संकट, कभी रिश्तों में उलझन, कभी करियर की चिंता, तो कभी मानसिक तनाव। हम सभी चाहते हैं कि हमारा जीवन सुखमय हो, लेकिन क्या ऐसा संभव है कि जीवन में कभी कोई समस्या न आए? उत्तर स्पष्ट है— नहीं । समस्याएँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हम इनके प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं? उत्तर है— हाँ । यदि हम सही दृष्टिकोण अपनाएँ और अपने मन को जागरूक करें, तो हम किसी भी परिस्थिति में शांति और संतुलन बनाए रख सकते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे हम समस्याओं से परे जाकर एक जागरूक और संतुलित जीवन जी सकते हैं। 1. समस्याएँ क्यों आती हैं? समस्याएँ दो प्रकार की होती हैं: (i) बाहरी समस्याएँ (External Problems) ये वे समस्याएँ हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, जैसे: ✔ आर्थिक कठिनाइयाँ (नौकरी छूटना, व्यापार में घाटा) ✔ पारिवारिक समस्याएँ (रिश्तों में मनमुटाव, तलाक, झगड़े) ✔ स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें ✔ प्राकृतिक आपदाएँ या कानूनी परेशानियाँ इन समस्याओं को पूरी तरह टालना असंभव है,...

Where There is Love, There is Nothing Else.

जहाँ प्रेम है, वहाँ कुछ और नहीं - आनंद किशोर मेहता INTRODUCTION   "प्रेम केवल एक भावना नहीं, यह चेतना की वह दिव्य ऊर्जा है, जो हर बंधन को तोड़ती है, हर सीमा से परे जाती है और आत्मा को मुक्त करती है। जहाँ प्रेम है, वहाँ अहंकार नहीं, स्वार्थ नहीं—बस अनंत प्रकाश है।" प्रेम—एक ऐसा शब्द, जो सुनते ही हृदय में एक मधुर स्पंदन उत्पन्न करता है। लेकिन क्या प्रेम केवल आकर्षण, लगाव या संबंधों तक सीमित है? नहीं, प्रेम इससे कहीं अधिक गहरा, शक्तिशाली और अनंत है। यह मात्र एक अनुभूति नहीं, बल्कि एक ऊर्जा शक्ति है, जो हमें स्वार्थ, मोह और सांसारिक सीमाओं से मुक्त कर वास्तविक स्वतंत्रता की ओर ले जाती है। जब प्रेम अपने शुद्धतम स्वरूप में होता है, तब वहाँ कोई अपेक्षा नहीं, कोई स्वामित्व नहीं—बस प्रेम ही प्रेम होता है। जब प्रेम सीमाओं को लांघता है, तब यह केवल किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व से एक हो जाता है। तब प्रेम केवल एक अनुभूति नहीं, बल्कि स्वयं चेतना का स्वरूप बन जाता है। प्रेम: स्वतंत्रता है, बंधन नहीं खलील जिब्रान कहते हैं— "यदि तुम प्रेम करते हो, ...

Life: A Free Flow or an Illusion of Bondage?

जीवन: स्वतंत्र प्रवाह या बंधनों का भ्रम? ✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका जीवन अपने आप में एक स्वतंत्र प्रवाह है। यह किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति से स्थायी रूप से बंधा नहीं होता, फिर भी हम स्वयं को बंधनों में जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। यह बंधन हमारे मन की रचना है, जो हमारी उम्मीदों, भावनाओं, आशाओं और भरोसे के कारण बनते हैं। अगर हम इस वास्तविकता को समझ लें कि जीवन स्वयं में स्वतंत्र है, तो हम मन की सीमाओं से बाहर निकलकर एक मुक्त, शांत और संतुलित जीवन जी सकते हैं। इस लेख में हम वैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों से यह समझने का प्रयास करेंगे कि जीवन वास्तव में बंधनों में है या यह केवल हमारी धारणाओं का भ्रम है। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जीवन ऊर्जा का प्रवाह है विज्ञान के अनुसार, जीवन कोई स्थिर इकाई नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रवाह है। भौतिकी के ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार, ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है—यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। यही सिद्धांत जीवन पर भी लागू होता है। हमारे रिश्ते, हमारी भावनाएं और हमारी...

कॉस्मिक वाइब्रेशन: चेतना के अनसुने रहस्य

कॉस्मिक वाइब्रेशन: चेतना के अनसुने रहस्य।  भूमिका हमारे चारों ओर जो कुछ भी है, वह ऊर्जा और तरंगों का खेल है। विज्ञान इसे फ्रीक्वेंसी और वाइब्रेशन के रूप में देखता है, और आध्यात्मिक परंपराएँ इसे नाद (ध्वनि) और ज्योति (प्रकाश) के रूप में अनुभव करती हैं। जब कोई साधक अपनी आंतरिक यात्रा में गहराई से उतरता है, तो उसे एक रहस्यमयी ध्वनि और दिव्य प्रकाश का अनुभव होता है, जिसे बाहरी इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता। यह अनुभव जीवन को पूरी तरह से बदल देता है और चेतना के एक नए आयाम में प्रवेश कराता है। प्राचीन और आधुनिक दृष्टिकोण प्राचीन ग्रंथों में इसे "अनहद नाद" और "अखंड ज्योति" कहा गया है। संत कबीर, गुरु नानक, और योगियों ने इसे ध्यान की परम अवस्था माना है। वेदों में इसे शब्द ब्रह्म कहा गया, जिसका अर्थ है—एक दिव्य ध्वनि जो समस्त ब्रह्मांड में अनंत रूप से गूंज रही है। आधुनिक विज्ञान भी इस ओर संकेत कर रहा है। क्वांटम फिजिक्स बताती है कि पूरा ब्रह्मांड कंपन (Vibration) और ऊर्जा से बना है। न्यूरोसाइंस में यह प्रमाणित किया गया है कि ध्यान की गहरी अवस्था में गामा वेव्स (Ga...

शुद्ध दृष्टि, निर्मल हृदय: जीवन की दिव्यता का अनुभव

✦ शुद्ध दृष्टि, निर्मल हृदय ✦ लेखक: आनंद किशोर मेहता (सर्वाधिकार सुरक्षित - Copyright © Anand Kishor Mehta) शुद्ध दृष्टि, निर्मल हृदय: जीवन की दिव्यता का अनुभव कभी-कभी जीवन में ऐसा प्रतीत होता है कि हर क्षण हल्का-हल्का सुरूर छाया हुआ है। यह कोई बाहरी नशा नहीं, बल्कि भीतर से उपजी गहरी अनुभूति है। जब हमारी दृष्टि शुद्ध और हृदय निर्मल हो जाता है, तो संसार का अनुभव पूरी तरह बदल जाता है। यह वही अवस्था है, जब जीवन में सहज आनंद, प्रेम और दिव्यता का संचार होता है। यह अनुभव किसी बाहरी परिस्थिति पर निर्भर नहीं करता, बल्कि हमारी आंतरिक स्थिति से जन्म लेता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण: चेतना, मस्तिष्क और अनुभूति मनुष्य का अनुभव पूरी तरह से उसकी चेतना और मस्तिष्क की गतिविधियों पर निर्भर करता है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, जब हमारा मस्तिष्क गामा वेव्स (Gamma Waves) उत्पन्न करता है, तब हम गहरे ध्यान और आनंद की अवस्था में होते हैं। यही वह स्थिति है, जब हमें जीवन के हर छोटे-बड़े अनुभव में गहराई और सौंदर्य महसूस होने लगता है। जब हम प्रेम, करुणा और संतोष जैसी भावनाओं को अपनाते हैं, तो मस्तिष्क में ऑक्सीटो...

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा  इस सृष्टि की रचना केवल जन्म और मृत्यु के चक्र को दोहराने के लिए नहीं हुई है। इसका अंतिम उद्देश्य हर जीव को जागरूक करना और उसे परम आनंद के स्रोत तक पहुँचाना है। हालांकि, यह यात्रा सरल और सीधी नहीं है। यह दो मार्गों के बीच संतुलन स्थापित करने की यात्रा है: जब भक्त बेफिक्र हो जाता है और ईश्वर चिंतित हो जाते हैं सच्चा भक्त जब पूर्ण समर्पण कर लेता है, तो वह संसार की सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। उसे यह विश्वास हो जाता है कि "मेरे जीवन की हर जिम्मेदारी परमसत्ता की है, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं।" यह विश्वास अच्छा है, लेकिन यदि यह भक्ति निष्क्रियता में बदल जाए, तो यह सृष्टि के नियमों के खिलाफ हो जाता है। परमसत्ता को तब चिंता होती है। जैसे माता-पिता अपने उस बच्चे के लिए चिंतित हो जाते हैं, जो हर चीज़ उनके भरोसे छोड़कर खुद कोई प्रयास नहीं करता, वैसे ही ईश्वर भी सोचते हैं, "यह भक्त तो पूरी तरह निश्चिंत हो गया है, लेकिन इसे अब कर्मयोग का बोध कराना होगा।" इसी कारण, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल भक्...

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था The Profound Definition of Wisdom: Logic, Silence, and Beyond लेखक: आनंद किशोर मेहता | Author: Anand Kishor Mehta © Copyright 2025 - आनंद किशोर मेहता "मनुष्य का वास्तविक उत्थान उसके विचारों की ऊँचाई से तय होता है, न कि उसकी आवाज़ की ऊँचाई से।" मानव सभ्यता के विकास में तर्क, संवाद और विचार-विमर्श की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। विज्ञान हमें बताता है कि हमारा मस्तिष्क एक अत्यधिक जटिल संरचना है, जो हमें सोचने, समझने और निष्कर्ष निकालने की शक्ति प्रदान करता है। वहीं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, मन की शुद्धता और आंतरिक शांति को ही सच्ची बुद्धिमत्ता और प्रज्ञावानता का आधार माना जाता है। आज के युग में जब तर्क-वितर्क, संवाद और विवाद हर ओर हावी हो रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह समझें कि प्रज्ञावानता केवल वाणी या ज्ञान की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी अवस्था है, जहाँ व्यक्ति तर्क और मौन दोनों के पार पहुँच जाता है। आइए इस यात्रा को तीन प्रमुख चरणों में समझते हैं— 1. तर्कशीलता: विचारों क...

मन और चेतना: वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टि

मन और चेतना: वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टि  ✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता मनुष्य का मन एक गहरी और जटिल शक्ति है, जो हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को संचालित करता है। यह मन ही है जो हमें सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता देता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मन को चेतना के आधार पर कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है? दरअसल, मन को समझने के दो प्रमुख दृष्टिकोण हैं— आध्यात्मिक और वैज्ञानिक । इन दोनों के अनुसार, मन को मुख्य रूप से तीन या चार स्तरों में बांटा जा सकता है। आइए, इसे सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं। 1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: मन की चार अवस्थाएँ आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो मन केवल एक नहीं, बल्कि चार अलग-अलग स्तरों पर कार्य करता है। भारतीय योग और वेदांत दर्शन के अनुसार, मन को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है: (i) जाग्रत अवस्था (सचेतन मन) यह हमारी सामान्य चेतना की अवस्था है। जब हम जागते हैं, रोज़मर्रा के कार्य करते हैं, सोचते और निर्णय लेते हैं, तब हमारा सचेतन मन (Conscious Mind) सक्रिय रहता है। यह इंद्रियों से जुड़ा होता है और बा...

मानवता और प्रकृति: एक दिव्य संबंध और हमारा पवित्र कर्तव्य:

मानवता और प्रकृति: एक दिव्य संबंध और हमारा पवित्र कर्तव्य:                लेखक: आनंद किशोर मेहता मानवता और प्रकृति के बीच एक गहरा और दिव्य संबंध है, जो हमारे अस्तित्व और संतुलन के लिए अनिवार्य है। प्रकृति, वह जीवनदायिनी शक्ति है, जो हमें शुद्ध वायु, जल, और हरियाली प्रदान करती है—ये सभी तत्व हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। यह एक अद्भुत संयोग है कि हम इस धरती पर रहते हैं, जो हमें बिना शर्त प्रेम और समृद्धि देती है, और इसका उपहार हमारी जिम्मेदारी भी बनाता है कि हम इसे संरक्षित करें। प्रकृति से हमारा कर्तव्य इसलिए है, क्योंकि हम इसका हिस्सा हैं और इसके बिना हमारा अस्तित्व असंभव है। यह साझेदारी केवल एकतरफा उपयोग की नहीं, बल्कि एक सजीव संबंध है, जिसमें हमें न केवल संसाधनों का उपयोग करना है, बल्कि उनका संरक्षण भी करना है। अगर हम उससे लेते हैं, तो यह हमारा पवित्र कर्तव्य बनता है कि हम उसे कुछ विशेष दें। यही हमें मानवता की सेवा और विनम्रता की ओर मार्गदर्शन करता है। प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी निभाने के ...

"लोग हमें वैल्यू कैसे देंगे?"

 "लोग हमें वैल्यू कैसे देंगे?"   खुद को सम्मान दें, तभी दुनिया आपको वैल्यू देगी:  लेखक: आनंद किशोर मेहता लोग आपको तब वास्तविक मूल्य देंगे जब आप खुद को सम्मान देंगे और अपने कार्यों से ऐसा प्रभाव बनाएँगे कि वे आपकी कद्र करने पर मजबूर हो जाएँ। यह न केवल एक साधारण सिद्धांत है, बल्कि जीवन में सच्चे मूल्य को प्राप्त करने का गहरा मार्ग है। इस यात्रा में कुछ महत्वपूर्ण बातें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए: स्वयं को मूल्य देना (Self-Respect): जब आप खुद को महत्व देंगे, तो दुनिया भी आपको उसी दृष्टि से देखेगी। अपनी सोच, क्षमताओं और कार्यों को सशक्त बनाएं। अपनी सीमाओं को समझें और उन्हें सम्मानित करने का अवसर दूसरों को दें। ज्ञान और कौशल में उत्कृष्टता: जिस क्षेत्र में आप कार्य कर रहे हैं, वहां पूर्णता का प्रयास करें। लगातार सीखें, अपने कौशल को निखारें और खुद को एक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित करें। जब लोग आपके ज्ञान और कौशल से प्रभावित होते हैं, तो आपका मूल्य स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है। आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास: किसी पर निर्भर नहीं, बल्कि अपने भीतर की शक्ति से आगे ...