बचपन की मस्ती: निष्कपट आनंद का संसार ~ आनंद किशोर मेहता परिचय बचपन का अर्थ ही मस्ती, उन्मुक्त हँसी, चंचलता और बेफिक्री है। यह जीवन का वह अनमोल समय होता है, जब न कोई चिंता होती है और न ही कोई बोझ। बच्चों की मस्ती केवल खेल-कूद तक सीमित नहीं होती, बल्कि उनके हर हाव-भाव, उनकी हर शरारत, उनकी हर छोटी-बड़ी खुशी में यह झलकती है। बचपन की मस्ती हवा के झोंके जैसी होती है – आज़ाद, निश्छल और सुखद। बच्चों की मस्ती के रूप 1. खेलों में मस्ती बच्चों के लिए खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि उनकी खुशी और सीखने का साधन भी होते हैं। वे लुका-छिपी खेलते हैं, मिट्टी में खेलते हैं, कभी बारिश में भीगते हैं, तो कभी पतंग उड़ाते हैं। मिट्टी में खेलते बच्चों के गंदे हाथ, दरअसल जिंदगी के सबसे पवित्र रंग होते हैं। इन खेलों में वे पूरी तरह खो जाते हैं और यही उनका स्वाभाविक आनंद होता है। 2. दोस्ती में मस्ती बच्चों की दोस्ती बिल्कुल सच्ची और निःस्वार्थ होती है। वे बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे से जुड़ते हैं और मिलकर हँसते-खेलते हैं। कभी-कभी झगड़ते भी हैं, लेकिन पल भर में फिर से दोस्त बन जाते हैं। उन...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.