राजाबरारी आदिवासी विद्यालय: शिक्षा, सेवा और स्वावलंबन का आदर्श मॉडल ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना भारत जैसे विशाल देश में जहाँ शिक्षा का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, वहीं कुछ क्षेत्र आज भी इस अधिकार से वंचित हैं। विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक उपेक्षा ने वर्षों से विकास के रास्ते को रोके रखा है। ऐसे में यदि कोई विद्यालय न केवल शिक्षा का दीपक जलाता है, बल्कि सेवा, आत्मनिर्भरता और समग्र विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है, तो वह केवल स्कूल नहीं, एक क्रांति का केंद्र बन जाता है। "राजाबरारी आदिवासी विद्यालय" , मध्य प्रदेश के हरदा जिले के सघन वन क्षेत्र में स्थित, एक ऐसा ही आदर्श उदाहरण है, जिसे दयालबाग शिक्षा संस्थान (Dayalbagh Educational Institute, Agra) की प्रेरणा, मार्गदर्शन और सेवा भावना के अंतर्गत संचालित किया जा रहा है। स्थापना की पृष्ठभूमि इस विद्यालय की शुरुआत 1936–37 में एक प्राथमिक विद्यालय के रूप में हुई थी। उस समय राजाबरारी एक घना वन क्षेत्र था, जहाँ आधुनिक सुविधाओं और शिक्षण संसाधनों की कल्पना भी नहीं की जा...
🚆 आगरा से राजाबरारी: रेल की रफ्तार, जंगल की खामोशी और रास्तों की कहानी ---- आनन्द किशोर मेहता यात्रा की रूपरेखा तिथि: 21 जून 2025 मार्ग: आगरा → ग्वालियर → झाँसी → इटारसी → टिमरनी → राजाबरारी कुल दूरी: लगभग 700 किमी समय: लगभग 9–10 घंटे (विविध पड़ावों और विश्राम सहित) सांध्य अंधकार में प्रारंभ — जब यात्रा सिर्फ शरीर की नहीं, चेतना की होती है रात्रि 7:45 पर जैसे ही ट्रेन आगरा स्टेशन से रवाना हुई, मन में एक शांत रोमांच भर उठा। शहर की चकाचौंध और हलचल पीछे छूटती जा रही थी और सामने थी एक नई, अनदेखी दुनिया की ओर यात्रा। प्लेटफॉर्म पर विदाई की व्यस्तता, धीमे-धीमे बढ़ती रेल की गति, और बाहर छा रहा अंधकार — सब मिलकर एक आत्मिक संगीत रच रहे थे। खिड़की से झांकती नज़रों के सामने दृश्य बदलते जा रहे थे — मानो हर फ्रेम में कोई कहानी गूँज रही हो। चंबल की वादियाँ — रात की खामोशी में गूंजता जीवन जब ट्रेन चंबल की गहराइयों से गुज़री, तब चारों ओर सन्नाटा था। केवल पटरियों की खड़खड़ाहट और ट्रेन की सीटी उस मौन को चीरती प्रतीत हो रही थी। पेड़ों के साए, अंधेरे में टिमटिमाते गाँव, और रहस्...