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Showing posts with the label प्रेम

THOUGHTS 18 MAY 2025

THOUGHTS:-   ना मुझे काना-फूसी भाती है, ना जी-हुजूरी रास आती है; मैं तो बस प्रेम का राही हूँ — जिसकी हर एक चाल, प्रेम ने सुलझाई है। — आनंद किशोर मेहता झूठ के सहारे बड़ी-बड़ी बातें की जा सकती हैं, लेकिन मानवता की ऊँचाई केवल सच से ही हासिल होती है। — आनंद किशोर मेहता मानवता कोई वेश नहीं, जिसे ज़रूरत के हिसाब से बदला जा सके — यह तो आत्मा की असली परछाई है। — आनंद किशोर मेहता जहाँ स्वार्थ बोलते हैं, वहाँ वास्तविकता खामोश हो जाती है — क्योंकि वह दिखावे की मोहताज नहीं होती। — आनंद किशोर मेहता रिश्ते बनते हैं शब्दों से, लेकिन टिकते हैं कर्तव्यों से। — आनंद किशोर मेहता जो पीठ पीछे भी वैसा ही रहे, वही सच्ची मानवता है — बाकी सब अभिनय है। — आनंद किशोर मेहता स्वयं का मूल्य न जानने वाला, दूसरों के मूल्य को क्या समझेगा? जो अपने ही अस्तित्व को न पहचान सका, वो भला औरों की अहमियत क्या जाने? — आनंद किशोर मेहता जिसने खुद की अहमियत को पहचान लिया, वही दूसरों की असल कदर करना जानता है – क्योंकि सम्मान देना, पहले स्वयं से शुरू होता है। — आनंद किशोर मेहता जो अपने ही मन की चालबाज़ियों, भ...

प्रेम से पुकारा… ज़ेब्रा ने दी सलामी

प्रेम से पुकारा… ज़ेब्रा ने दी सलामी (एक सच्ची घटना जो दिल को छू गई)  लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता कभी-कभी जीवन के छोटे-छोटे क्षण ही सबसे बड़ी भावनाएँ जगा देते हैं। हाल ही में पटना के चिड़ियाघर की एक यात्रा ने मुझे और मेरे परिवार को कुछ ऐसा महसूस कराया, जिसे शब्दों में बाँधना आसान नहीं। ज़ेब्रा… हाँ, वही सीधी धारियों वाला पशु — वो हमारे दिल में कुछ छोड़ गया। एक शांत, हरियाली से घिरे मैदान के उस पार, वह ज़ेब्रा एक पेड़ की ओट में बिल्कुल मौन बैठा था। मैंने कई बार उसे पुकारा, आवाज़ लगाई… पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। फिर मुझे लगा कि अगर दिल से पुकारा जाए — तो शायद ये मौन भी जवाब दे दे। “प्रेम से पुकारो… शायद वो जिसे तुमने खोया समझा, पास आ जाए।” और ऐसा ही हुआ। जब दिल की सच्चाई से उसे पुकारा, तो वह दौड़ता हुआ मेरी ओर आया… और आकर एक पल के लिए ठहर गया। फिर उसने गर्दन उठाकर बिल्कुल वैसे खड़ा होकर पॉज़ (Salute) किया — जैसे मानो कोई सैनिक श्रद्धा से अभिवादन कर रहा हो। यह क्षण मात्र एक दृश्य नहीं था — यह एक जवाब था… उस प्रेम का, जो शब्दों से नहीं, हृदय से निकला था। Though...

कविता: दयालबाग: The Garden of the Merciful

दयालबाग: The Garden of the Merciful (दयालबाग: दयाल का दिव्य उपवन) दयालबाग — एक पावन धरा, जिसे सर साहब महाराज ने स्नेह से बसाया। नाम रखा — Garden of the Merciful , जहाँ प्रेम, सेवा, भक्ति हैं जीवन के मूल तत्व। रा-धा-ध:--स्व-आ-मी — वह परम पावन नाम, जिसकी गूंज से जाग उठे हर एक कण। प्रेमीजन के हृदय में अटल विश्वास, हर दिशा में बहता चेतना का निर्मल प्रकाश। यह सेवा भूमि करती मन को पावन, जहाँ रूह को मिलती परम शांति की राह। हर कर्म में झलकती मालिक की रजा, हर पल सूर्त जुड़ी मालिक के पवित्र चरणों में। दयालबाग — सहयोग का अनुपम संकल्प, जहाँ संगठन से फूटे चेतना का दिव्य प्रकाश। प्रेम की लहरें छू लें हर एक दिशा, यही है कुल मालिक का आध्यात्मिक संदेश। यह दरबार नहीं, निज उद्धार का है रास्ता, जहाँ आत्मा पाती निज घर का उपहार। मिशन है केवल — सब जीवों का कल्याण, मालिक तक पहुँचे हर रूह का अरमान। मुबारक हो ये राह हर जीवात्मा को, जो निस्वार्थ भाव से बढ़े उनके चरणों की ओर। हम बनें निज प्यारे सेवक — यही अटल प्रण, तन-मन-धन अर्पित करें मानवता की सेवा। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All ...

दिल की खामोशी और जीवन की सच्चाई

दिल की खामोशी और जीवन की सच्चाई (A Soul-Touching Reflection) कभी-कभी जीवन के शोर में सबसे स्पष्ट आवाज़... खामोशी होती है। वो खामोशी जो शब्दों से परे होती है – जो सीधे अंतरात्मा से बात करती है। जब सब कुछ पास होकर भी अधूरा लगे, तो समझो रूह किसी और ऊँचाई को छूना चाहती है। "जब दिल खामोश हो जाए, तो समझो वह सबसे गहरा सच बोल रहा है।" हम रोज़ हँसते हैं, बोलते हैं, मिलते हैं... पर क्या कभी अपने भीतर झाँक कर देखा है? वहाँ एक मासूम दिल बैठा है, जिसने बचपन से अब तक सिर्फ एक ही चीज़ चाही है – सच्चा प्रेम। ना वह दिखावे का प्रेम, ना शर्तों में बँधा हुआ प्रेम, बल्कि एक निर्विकार, निर्मल, रूहानी प्रेम , जो बिना कुछ माँगे, बस बाँटना जानता है। "सच्चा प्रेम वह है जो छूता भी नहीं, लेकिन फिर भी दिल को बदल देता है।" हम अपने संघर्षों में इतने उलझ गए हैं कि जीवन की असल सुंदरता छूट गई — किसी की आँखों में सुकून देना, किसी के आँसू पोंछ देना, और बिना बोले किसी का हाथ थाम लेना। "जिसने दूसरों के दर्द को बिना कहे समझा, वही इंसानियत की ऊँचाई पर है।" ...

बच्चों के साथ अटूट प्रेम: सफलता और सुख का आधार

बच्चों के साथ अटूट प्रेम: सफलता और सुख का आधार ~ आनंद किशोर मेहता परिचय बचपन जीवन का सबसे कोमल और संवेदनशील चरण होता है। जिस प्रकार एक बीज को उपयुक्त मिट्टी, जल और प्रकाश मिलने पर वह एक विशाल, फलदायी वृक्ष में परिवर्तित हो जाता है, उसी प्रकार बच्चों का सर्वांगीण विकास भी प्रेम, स्नेह और सतत मार्गदर्शन पर निर्भर करता है। सच्चा प्रेम केवल एक भावना नहीं, बल्कि बच्चों की आत्मा को संवारने वाली सबसे शक्तिशाली ऊर्जा है। यह न केवल उन्हें आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है, बल्कि उनके मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास की भी आधारशिला रखता है। अटूट प्रेम: बच्चों के विकास की जड़ें बच्चों के प्रति अटूट प्रेम का अर्थ केवल उन्हें स्नेह देना नहीं, बल्कि उनके चहुंमुखी विकास के लिए एक सुरक्षित, प्रेरणादायक और पोषण देने वाला वातावरण प्रदान करना है। यह प्रेम उनके व्यक्तित्व को आकार देता है, आत्मविश्वास से भरता है और जीवन के हर मोड़ पर उन्हें सशक्त बनाता है। 1. आत्मनिर्भरता और निर्णय लेने की क्षमता जब बच्चे प्रेम और विश्वास से घिरे होते हैं, तो उनमें आत...

मानव जीवन, उत्तम परवरिश और सच्चे प्रेम की अनमोल यात्रा

  मानव जीवन, उत्तम परवरिश और सच्चे प्रेम की अनमोल यात्रा भूमिका मनुष्य के जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? क्या केवल जन्म लेकर सांस लेना और फिर एक दिन इस संसार से विदा हो जाना ही जीवन है? नहीं, जीवन इससे कहीं अधिक गहरा और अर्थपूर्ण है। यह एक यात्रा है—आत्मबोध, कर्तव्य, प्रेम और परवरिश की यात्रा। मनुष्य अपने विचारों से निर्मित होता है। उसकी परवरिश उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है, और सच्चा प्रेम उसकी आत्मा को शुद्ध और सशक्त बनाता है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम अपने जीवन को समझें, अपने कर्तव्यों का पालन करें और सच्चे प्रेम को पहचानें। यही जीवन की पूर्णता है। मानव जीवन: उद्देश्य की खोज मनुष्य का जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मबोध, सेवा, और कर्तव्यनिष्ठा से परिपूर्ण होना चाहिए। जीवन का असली उद्देश्य यह जानना है कि हम क्यों आए हैं और हमें क्या करना चाहिए। जीवन के तीन महत्वपूर्ण आयाम भौतिक पक्ष – यह हमारे रोजमर्रा के कार्यों, आजीविका, सुख-सुविधाओं और सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता है। मानसिक और बौद्धिक पक्ष – इसमें हमारे विचार,...

शब्दों की गूँज: जहाँ प्रेम मौन में भी बोलता है

शब्दों की गूँज: जहाँ प्रेम मौन में भी बोलता है   क्या शब्दों की कोई सीमा होती है? क्या प्रेम केवल व्यक्त करने से ही समझा जाता है? या फिर मौन में भी इसकी अनुगूँज सुनाई देती है? शब्द, केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवंत ऊर्जा हैं। विज्ञान कहता है कि प्रत्येक ध्वनि एक तरंग उत्पन्न करती है, जो ब्रह्मांड में अनंत काल तक प्रवाहित होती रहती है। साहित्य यह सिद्ध करता है कि प्रेम से रचे गए शब्द अमर हो जाते हैं। और समाजशास्त्र यह बताता है कि प्रेमपूर्ण शब्द न केवल संबंधों को संवारते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और समग्र जीवन को भी संतुलित करते हैं। तो फिर, क्या प्रेम मौन में भी बोल सकता है? आइए, इस विचार को विज्ञान, साहित्य और समाज के तर्कों के साथ समझते हैं। शब्दों की वैज्ञानिक ऊर्जा भौतिकी कहती है कि हर ध्वनि की अपनी एक शक्ति होती है। जापानी वैज्ञानिक मासारू इमोटो के शोध में पाया गया कि जब जल को सकारात्मक और प्रेमपूर्ण शब्द सुनाए गए, तो उसकी संरचना सुंदर हो गई, जबकि नकारात्मक शब्दों से उसमें विकृति आ गई। अब चूँकि हमारा शरीर 70% जल से बना है, तो यह स्पष्ट है कि प्रेम से भरे ...