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बुध की भूमि गया: जहाँ चेतना आज भी साँस लेती है

बुध की भूमि गया: जहाँ चेतना आज भी साँस लेती है  ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना "हम उस बुध की भूमि से आते हैं..." यह कोई साधारण वाक्य नहीं, बल्कि एक चेतना की घोषणा है। यह उस भूमि की पहचान है, जिसने संसार को बुद्धत्व का मार्ग दिखाया — वह पवित्र स्थल जहाँ मानवता ने निःशब्दता में आत्मज्ञान की पुकार सुनी। गया — एक नगर नहीं, एक जागृति है, एक प्रकाशस्तंभ है, एक जीवित प्रतीक है। 1. गया: जहाँ बुद्धि से आगे बढ़कर बुद्धत्व ने जन्म लिया गया की भूमि पर, वर्षों की तपस्या के बाद सिद्धार्थ गौतम को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई। यह वह क्षण था जब एक साधारण मनुष्य, आत्मज्ञान की अग्नि में तपकर, बुद्ध बन गया। इस धरती ने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व को चेतना, करुणा और समत्व का संदेश दिया। बोधिवृक्ष की छाया में जन्मा वह सत्य — आज भी हवा में गूंजता है, मिट्टी में बसता है, और आत्मा को जगाता है। 2. "बुध की भूमि गया" — भावार्थ और प्रतीक "बुध की भूमि गया" — यह एक वाक्य नहीं, एक बहुस्तरीय प्रतीक है। बौद्धिक दृष्टि से: यह वह भूमि है जहाँ बुद्धत्व जागा। भावनात्मक ...