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Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation

Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation गुस्सा और मतभेद: बादल की गरज की तरह, प्रेम और स्नेह: सूरज की किरणों की तरह ~ आनंद किशोर मेहता जीवन में भावनाओं का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। कभी गुस्सा (Anger) आता है, कभी मतभेद (Disagreement) होते हैं, तो कभी प्रेम (Love) और स्नेह (Affection) हमें जोड़ते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि हम अपनी भावनाओं को किस तरह संतुलित (Emotional Balance) करते हैं? गुस्सा और मतभेद बादल की गरज (Thunder of Clouds) की तरह होने चाहिए—जो क्षणिक रूप से शोर करें, लेकिन जल्द ही समाप्त हो जाएँ। वहीं, प्रेम और स्नेह सूरज की किरणों (Sun Rays) की तरह होने चाहिए—जो मौन रहें, लेकिन निरंतर जीवन को ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करें। गुस्सा और मतभेद: क्षणिक आवेग (Temporary Impulse), स्थायी नहीं जब आकाश में बादल गरजते हैं, तो वे क्षणिक रूप से वातावरण में हलचल (Disturbance) मचाते हैं, लेकिन वे हमेशा के लिए नहीं टिकते। अगर वे ठहर जाएँ, तो अंधकार (Darkness) और असंतुलन (Imbalance) पैदा कर सकते हैं। उसी तरह, गुस्सा और मतभेद भी अस्थायी (Temporary) होने चाहिए। यदि वे...

Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation

खुद को जानना क्यों जरूरी है? INTRODUCTION   मनुष्य के जीवन में सबसे गूढ़ प्रश्नों में से एक यह है— "खुद को जानना क्यों जरूरी है?" यदि यह संसार ईश्वर की रचना है, तो क्या उन्होंने पहले से हमारी नियति तय नहीं कर दी? फिर हमें स्वयं को जानने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? क्या हमारा जीवन केवल भाग्य के प्रवाह में बहने के लिए है, या हमें अपने अस्तित्व और आत्मा को समझने का उत्तरदायित्व मिला है? यह प्रश्न केवल दर्शन, विज्ञान और अध्यात्म तक सीमित नहीं, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से भी सीधे जुड़ा हुआ है। सही मायनों में, खुद को जानना आत्म-जागरण और जीवन के वास्तविक उद्देश्य की खोज है। यह केवल एक दार्शनिक विचार नहीं, बल्कि एक गहन अनुभव है, जो जीवन को पूर्णता प्रदान करता है। 1. खुद को जानने का अर्थ क्या है? "खुद को जानना" केवल अपनी बाहरी पहचान तक सीमित नहीं, बल्कि इसका अर्थ अपने वास्तविक स्वरूप, भावनाओं, विचारों, इच्छाओं और आत्मा के स्वरूप को समझना है। जब तक हम अपने भीतर की गहराइयों को नहीं पहचानते, तब तक हम दूसरों की अपेक्षाओं और बाहरी प्रभावों के अनुसार ज...

Life: A Free Flow or an Illusion of Bondage?

जीवन: स्वतंत्र प्रवाह या बंधनों का भ्रम? ✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका जीवन अपने आप में एक स्वतंत्र प्रवाह है। यह किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति से स्थायी रूप से बंधा नहीं होता, फिर भी हम स्वयं को बंधनों में जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। यह बंधन हमारे मन की रचना है, जो हमारी उम्मीदों, भावनाओं, आशाओं और भरोसे के कारण बनते हैं। अगर हम इस वास्तविकता को समझ लें कि जीवन स्वयं में स्वतंत्र है, तो हम मन की सीमाओं से बाहर निकलकर एक मुक्त, शांत और संतुलित जीवन जी सकते हैं। इस लेख में हम वैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों से यह समझने का प्रयास करेंगे कि जीवन वास्तव में बंधनों में है या यह केवल हमारी धारणाओं का भ्रम है। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जीवन ऊर्जा का प्रवाह है विज्ञान के अनुसार, जीवन कोई स्थिर इकाई नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रवाह है। भौतिकी के ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार, ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है—यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। यही सिद्धांत जीवन पर भी लागू होता है। हमारे रिश्ते, हमारी भावनाएं और हमारी...

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चेतना: एक मौलिक और स्वतंत्र विश्लेषण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चेतना: एक मौलिक और स्वतंत्र विश्लेषण  भूमिका चेतना (Consciousness) विज्ञान की सबसे जटिल और रहस्यमयी पहेलियों में से एक है। यह केवल मस्तिष्क की गतिविधियों का परिणाम है, या यह भौतिक दुनिया से परे भी कोई अस्तित्व रखती है? यदि चेतना एक ही है, तो अलग-अलग व्यक्तियों के अनुभव कैसे अलग होते हैं? यह लेख स्पष्ट, आकर्षक और सरल भाषा में चेतना के न्यूरोसाइंस, क्वांटम भौतिकी, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से जुड़े सिद्धांतों का विश्लेषण करेगा। 1. चेतना और मस्तिष्क: न्यूरोसाइंस क्या कहता है? (A) मस्तिष्क और न्यूरॉन्स की भूमिका मस्तिष्क लगभग 86 अरब न्यूरॉन्स से बना है, जो विद्युत-रासायनिक संकेतों के माध्यम से संवाद करते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मस्तिष्क क्षेत्र पहचाने हैं: सेरेब्रल कॉर्टेक्स: सोचने, तर्क करने और आत्मचेतना के लिए। थैलेमस: सूचना प्रसंस्करण और जागरूकता का केंद्र। प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स: निर्णय लेने और व्यक्तित्व निर्माण में सहायक। (B) अलग-अलग अनुभव क्यों होते हैं? हर व्यक्ति का मस्तिष्क अलग तरीके से काम करता है। न्यूरॉन्स का जुड...

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा

भक्ति, कर्तव्य और सृष्टि का अंतिम लक्ष्य: परम आनंद की यात्रा  इस सृष्टि की रचना केवल जन्म और मृत्यु के चक्र को दोहराने के लिए नहीं हुई है। इसका अंतिम उद्देश्य हर जीव को जागरूक करना और उसे परम आनंद के स्रोत तक पहुँचाना है। हालांकि, यह यात्रा सरल और सीधी नहीं है। यह दो मार्गों के बीच संतुलन स्थापित करने की यात्रा है: जब भक्त बेफिक्र हो जाता है और ईश्वर चिंतित हो जाते हैं सच्चा भक्त जब पूर्ण समर्पण कर लेता है, तो वह संसार की सभी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। उसे यह विश्वास हो जाता है कि "मेरे जीवन की हर जिम्मेदारी परमसत्ता की है, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं।" यह विश्वास अच्छा है, लेकिन यदि यह भक्ति निष्क्रियता में बदल जाए, तो यह सृष्टि के नियमों के खिलाफ हो जाता है। परमसत्ता को तब चिंता होती है। जैसे माता-पिता अपने उस बच्चे के लिए चिंतित हो जाते हैं, जो हर चीज़ उनके भरोसे छोड़कर खुद कोई प्रयास नहीं करता, वैसे ही ईश्वर भी सोचते हैं, "यह भक्त तो पूरी तरह निश्चिंत हो गया है, लेकिन इसे अब कर्मयोग का बोध कराना होगा।" इसी कारण, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को केवल भक्...

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था The Profound Definition of Wisdom: Logic, Silence, and Beyond लेखक: आनंद किशोर मेहता | Author: Anand Kishor Mehta © Copyright 2025 - आनंद किशोर मेहता "मनुष्य का वास्तविक उत्थान उसके विचारों की ऊँचाई से तय होता है, न कि उसकी आवाज़ की ऊँचाई से।" मानव सभ्यता के विकास में तर्क, संवाद और विचार-विमर्श की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। विज्ञान हमें बताता है कि हमारा मस्तिष्क एक अत्यधिक जटिल संरचना है, जो हमें सोचने, समझने और निष्कर्ष निकालने की शक्ति प्रदान करता है। वहीं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, मन की शुद्धता और आंतरिक शांति को ही सच्ची बुद्धिमत्ता और प्रज्ञावानता का आधार माना जाता है। आज के युग में जब तर्क-वितर्क, संवाद और विवाद हर ओर हावी हो रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह समझें कि प्रज्ञावानता केवल वाणी या ज्ञान की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी अवस्था है, जहाँ व्यक्ति तर्क और मौन दोनों के पार पहुँच जाता है। आइए इस यात्रा को तीन प्रमुख चरणों में समझते हैं— 1. तर्कशीलता: विचारों क...