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भाग पांचवां: परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष

परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष ।  ~ आनंद किशोर मेहता INTRODUCTION यह लेख-संग्रह उन अनकहे अनुभवों को उजागर करता है, जो परिवारों में सेवा, समर्पण और आंतरिक संघर्ष से जुड़े होते हैं। कुछ सदस्य निस्वार्थ भाव से अपने बुजुर्गों या परिजनों की सेवा करते हैं, बिना किसी प्रशंसा की अपेक्षा किए, जबकि दूर रहने वाले सदस्य केवल मीठी बातों और थोड़ी सी उपस्थिति से दिल जीतने की कोशिश करते हैं। यह संग्रह इस असंतुलन को चुनौती देता है, जहां सच्ची सेवा और प्रेम को सम्मान मिलना चाहिए, न कि केवल शब्दों और दिखावे को। लेखों में यह भी बताया गया है कि सच्ची सेवा तब होती है जब कोई व्यक्ति बिना किसी पहचान की लालसा के, अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है। यह संग्रह हमें यह सिखाता है कि असली सम्मान कर्मों में होता है, न कि केवल शब्दों में। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. 1. सच्ची सेवा: जहाँ प्रशंसा नहीं, धैर्य ही पुरस्कार है   घर पर रहकर जो सदस्य तन, मन और धन से निस्वार्थ भाव से बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं, वे वास्तव में चुपचाप एक तपस्या निभा रहे हैं। वे न प्रशंसा की अपे...

नारी: अमर शक्ति का अमृत स्रोत

1. नारी: अमर शक्ति का अमृत स्रोत  ~ आनंद किशोर मेहता प्रस्तावना: नारी केवल एक शरीर नहीं, बल्कि उस चेतना की मूर्त अभिव्यक्ति है, जो सृष्टि को सहेजती, सँवारती और संवारती है। समाज ने उसे कभी आंवले-सी कसैली, कभी अबला कहकर सीमित करने की कोशिश की, परंतु यदि हम एक क्षण ठहरकर उसके जीवन को देख पाएं, तो पाएंगे कि वह एक ऐसा स्रोत है – जहाँ प्रेम, शक्ति, धैर्य और करुणा अनवरत प्रवाहित होते हैं। यह लेख नारी के उसी स्वरूप को सामने लाने का एक विनम्र प्रयास है। नारी को आंवला क्यों कहा गया? जब भी किसी ने नारी की उपमा दी, अक्सर कहा – “वह आंवले जैसी होती है – कसैली, पर गुणों से भरपूर।” पर क्या यह उपमा उसके विराट स्वरूप को बाँध सकती है? नहीं! क्योंकि नारी केवल एक गुण नहीं, वह गुणों की जननी है। वह आंवला नहीं – वह अमृत है, जिससे सजीव संसार जीवन पाता है , संस्कार पाते हैं, और सृष्टि अपना संतुलन पाती है। नारी: दो नहीं, एक जीवन में दो ज़िम्मेदारियाँ जब पुरुष एक जिम्मेदारी उठाकर थक जाता है, नारी दो-दो दुनियाओं को थामे रखती है – एक घर की, एक बाहर की। वह थकती है, फिर भी मुस्कराती है। व...

कविता - नारी: शक्ति की अविरल धारा

नारी: शक्ति की अविरल धारा  नारी है सृजन की देवी, संवेदना की वो रेखा, हर पीड़ा को खुद में रखकर, दुनिया को देती रेखा। वो माँ भी है, ममता भी है, वो बेटी में आशा बनती, कभी बहन, कभी अर्धांगिनी, हर रूप में पूजा करती। चुपचाप सहन कर लेती है, हर आँधी, हर तूफ़ान, पर जब उठती है आँधियों सी, बन जाती है महाकाल समान। उसके आँचल में चाँद बसे, उसकी गोदी में सपने, संघर्षों से जो डर न सके, वो नारी है अपने आप में। नम्रता में उसकी ताकत है, मौन में उसका ज्ञान, वो झुकती है केवल प्रेम से, अन्याय पर करती विराम। चलो प्रण करें हम सब मिलकर, नारी को दें वो स्थान, जहाँ न हो भेद, न हो भय, बस हो सम्मान और मान। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.

अनदेखी रोशनियाँ: नारी, वृद्ध और बच्चे

अनदेखी रोशनियाँ: नारी, वृद्ध और बच्चे ~ आनंद किशोर मेहता हर शाम जब दीपक जलता है, तो अंधेरे भागते हैं, और चारों ओर उजाला फैल जाता है। पर क्या हम उन दीपों को देख पाते हैं जो हमारे ही बीच जल रहे हैं — मौन, उपेक्षित, और फिर भी रोशनी बाँटते हुए? हाँ, बात हो रही है — नारी, वृद्ध और बच्चों की। ये तीनों जीवन के ऐसे आयाम हैं, जो हमें नज़र तो आते हैं, पर उनकी अहमियत अक्सर धुंध में छिप जाती है। 1. नारी: मौन दीप, जो हर आंधी में जलता है  वो माँ है — जो खुद भूखी रहकर भी बच्चों को पेटभर खिलाती है। वो बहन है — जो त्याग में भी मुस्कुराहट खोजती है। वो पत्नी है — जो टूटकर भी सबको जोड़ती है। उसके हाथों में सृजन है, मन में शक्ति है, और आत्मा में सहनशीलता। पर उसके संघर्ष को हम अक्सर साधारण मान लेते हैं। वह घर की लक्ष्मी तो है, पर कभी-कभी घर की "मौन मजदूर" भी बन जाती है। लेकिन सच यह है — नारी अगर रोशनी न होती, तो जीवन अंधकार ही रह जाता। आज की नारी केवल घर की नहीं, समाज, विज्ञान, राजनीति और अध्यात्म की रोशनी भी बन चुकी है। हमें नारी को श्रद्धा से नहीं, सम्मान और ...

नारी: शक्ति, स्वतंत्रता और बदलाव की पहचान

नारी: शक्ति, स्वतंत्रता और बदलाव की पहचान  लेखक: आनन्द किशोर मेहता  नारी केवल सृष्टि की आधारशिला नहीं, बल्कि समाज की आत्मा और उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। वह जीवन को जन्म देती है, उसे संवारती है और अपने आत्मबल से असंभव को भी संभव कर दिखाती है। इतिहास गवाह है कि जब भी उसे अवसर मिला, उसने समाज, संस्कृति और सभ्यता को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। लेकिन आज भी कई स्थानों पर उसे समान अधिकारों और अवसरों से वंचित रखा जाता है। यह केवल नारी के साथ अन्याय नहीं, बल्कि पूरे समाज की प्रगति में बाधा है। अब समय आ गया है कि नारी को उसके हक, सम्मान और स्वतंत्रता के साथ आगे बढ़ने का पूरा अवसर दिया जाए, ताकि वह अपनी पूर्ण क्षमता से समाज को सशक्त बना सके। नारी है सृजन की धारा, नई आशाओं की उजियारा। हर चुनौती को पार करेगी, जग को नई दिशा देगी। नारी सशक्तिकरण: एक नई सोच, एक नई क्रांति नारी सशक्तिकरण का अर्थ केवल अधिकार देना नहीं, बल्कि उसे निर्णय लेने की स्वतंत्रता, आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक समानता प्रदान करना भी है। जब नारी स्वतंत्र होकर अपने जीवन का मार्ग तय करती है, तो वह केवल अपने लि...