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मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि

मन के घाव: मौन से उभरती जीवन की औषधि भूमिका: धरती पर चाहे जितनी भी गहरी दरारें पड़ें, समय के साथ वहाँ हरियाली लौट आती है। फटे हुए कपड़े भी कुशल हाथों से फिर से जोड़े जा सकते हैं। चोटिल तन को औषधियाँ और समय भर सकते हैं। किन्तु जब मन टूटता है — तो उसके घाव अदृश्य होते हैं, और उसका उपचार बाहर नहीं, भीतर से ही संभव होता है। मन के टूटने पर कोई शब्द काम नहीं आते। न कोई औषधि, न कोई सलाह। केवल मौन, प्रेम और धैर्य — यही वे अदृश्य औषधियाँ हैं जो धीरे-धीरे बिखरे हुए मन को फिर से संजो सकती हैं। मुख्य विचार: जब धरती फटती है, तो बादल उसे संजीवनी देते हैं। कपड़ा फटने पर डोरी उसे जोड़ देती है। तन घायल हो, तो औषधियाँ सहारा बन जाती हैं। परन्तु मन के टूटने पर — ना कोई बादल बरसता है, ना कोई डोरी उसे सिलती है, ना कोई औषधि उसे भर पाती है। मन के घाव चुपचाप भीतर रिसते रहते हैं। चेहरे पर मुस्कान बनी रहती है, पर आत्मा भीतर कहीं रोती रहती है। इसलिए मन के आघात को केवल वही समझ सकता है जिसने स्वयं अपने भीतर ऐसी चुप्पी को महसूस किया हो। मौन और प्रेम की अदृश्य औषधि: मन के घावों का उपचार किस...