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भाग चौथा--- शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा --

भाग चौथा---  1. शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा  -- ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका: हमारे भीतर की भावनाएँ हमेशा हमारे साथ रहती हैं — कभी प्रेम, कभी शोक, कभी प्रसन्नता, कभी तनाव। ये भावनाएँ हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को आकार देती हैं और हमें प्रेरित करती हैं। सामान्य रूप से, हम इन भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता महसूस करते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि यह हमारी मदद करेगा या हमें दूसरों से समझ मिल जाएगी। परंतु, क्या हर भावना को बाहर लाना ज़रूरी है? क्या हमें हर स्थिति में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए? इस लेख में हम उस अदृश्य यात्रा की चर्चा करेंगे, जहाँ व्यक्ति अपनी भावनाओं को न तो शब्दों में बांधता है, न साझा करता है, फिर भी वह पूरी तरह से संतुलित और शांति से भरा होता है। यह ऐसी यात्रा है, जहाँ व्यक्ति मौन में अपने अस्तित्व को समझता है और अपनी आंतरिक शांति को बनाए रखता है। यह भावनाओं की परिपक्वता का प्रतीक है, जहाँ हमें बाहरी पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती, और भीतर का स्वर हमें हमारे अस्तित्व की गहरी समझ देता है। यह लेख उन लोगों के लिए है जो अपन...