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कविता - नारी: शक्ति की अविरल धारा

नारी: शक्ति की अविरल धारा  नारी है सृजन की देवी, संवेदना की वो रेखा, हर पीड़ा को खुद में रखकर, दुनिया को देती रेखा। वो माँ भी है, ममता भी है, वो बेटी में आशा बनती, कभी बहन, कभी अर्धांगिनी, हर रूप में पूजा करती। चुपचाप सहन कर लेती है, हर आँधी, हर तूफ़ान, पर जब उठती है आँधियों सी, बन जाती है महाकाल समान। उसके आँचल में चाँद बसे, उसकी गोदी में सपने, संघर्षों से जो डर न सके, वो नारी है अपने आप में। नम्रता में उसकी ताकत है, मौन में उसका ज्ञान, वो झुकती है केवल प्रेम से, अन्याय पर करती विराम। चलो प्रण करें हम सब मिलकर, नारी को दें वो स्थान, जहाँ न हो भेद, न हो भय, बस हो सम्मान और मान। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved.