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Showing posts with the label समर्पण

सेवा की रहमत: जब 'मैं' मिट गया

सेवा की रहमत: जब 'मैं' मिट गया । © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. कभी-कभी जीवन की राह में एक ऐसा मोड़ आता है, जहाँ कोई आवाज़ नहीं होती — पर भीतर एक गूंज उठती है। एक सोच जागती है… और उसी क्षण सब कुछ बदल जाता है। मैं उस क्षण की बात कर रहा हूँ, जब अहंकार की दीवारें खुद-ब-खुद ढहने लगती हैं, और “मैं” — जो अब तक हर सोच, हर भाव, हर कर्म का केंद्र था — धीरे-धीरे पिघलने लगता है। जब 'मैं' खो गया, तो कोई राह न रही, कोई मंज़िल न रही। पर वहीं से एक नई यात्रा शुरू हुई — रूह की यात्रा, जिसमें मौन बोलने लगा, और ख़ामोशी में सेवा का अर्थ समझ में आने लगा। सेवा तब तक बोझ लगती है, जब तक वह किसी पुण्य या फल की आशा से जुड़ी हो। पर जब ‘मैं’ मिटता है, तब सेवा एक रहमत बन जाती है — ऐसी रहमत जो आत्मा को हल्का करती है, और कर्म को इबादत में बदल देती है। मैंने जाना, सेवा तब सबसे पवित्र होती है, जब उसे करने वाला मौजूद ही न हो — केवल भाव बचे, समर्पण बचा, और रूह की ख़ामोशी बचे। अब न कोई नाम चाहता हूँ, न कोई पद, न कोई पहचान। बस एक सौगात चाहिए — कि किसी की आँख में...

भाग पांचवां: परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष

परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष ।  ~ आनंद किशोर मेहता INTRODUCTION यह लेख-संग्रह उन अनकहे अनुभवों को उजागर करता है, जो परिवारों में सेवा, समर्पण और आंतरिक संघर्ष से जुड़े होते हैं। कुछ सदस्य निस्वार्थ भाव से अपने बुजुर्गों या परिजनों की सेवा करते हैं, बिना किसी प्रशंसा की अपेक्षा किए, जबकि दूर रहने वाले सदस्य केवल मीठी बातों और थोड़ी सी उपस्थिति से दिल जीतने की कोशिश करते हैं। यह संग्रह इस असंतुलन को चुनौती देता है, जहां सच्ची सेवा और प्रेम को सम्मान मिलना चाहिए, न कि केवल शब्दों और दिखावे को। लेखों में यह भी बताया गया है कि सच्ची सेवा तब होती है जब कोई व्यक्ति बिना किसी पहचान की लालसा के, अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है। यह संग्रह हमें यह सिखाता है कि असली सम्मान कर्मों में होता है, न कि केवल शब्दों में। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. 1. सच्ची सेवा: जहाँ प्रशंसा नहीं, धैर्य ही पुरस्कार है   घर पर रहकर जो सदस्य तन, मन और धन से निस्वार्थ भाव से बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं, वे वास्तव में चुपचाप एक तपस्या निभा रहे हैं। वे न प्रशंसा की अपे...

भाग चौथा--- शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा --

भाग चौथा---  1. शब्दों से परे: भावनात्मक स्वतंत्रता की शांत यात्रा  -- ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका: हमारे भीतर की भावनाएँ हमेशा हमारे साथ रहती हैं — कभी प्रेम, कभी शोक, कभी प्रसन्नता, कभी तनाव। ये भावनाएँ हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को आकार देती हैं और हमें प्रेरित करती हैं। सामान्य रूप से, हम इन भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता महसूस करते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि यह हमारी मदद करेगा या हमें दूसरों से समझ मिल जाएगी। परंतु, क्या हर भावना को बाहर लाना ज़रूरी है? क्या हमें हर स्थिति में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए? इस लेख में हम उस अदृश्य यात्रा की चर्चा करेंगे, जहाँ व्यक्ति अपनी भावनाओं को न तो शब्दों में बांधता है, न साझा करता है, फिर भी वह पूरी तरह से संतुलित और शांति से भरा होता है। यह ऐसी यात्रा है, जहाँ व्यक्ति मौन में अपने अस्तित्व को समझता है और अपनी आंतरिक शांति को बनाए रखता है। यह भावनाओं की परिपक्वता का प्रतीक है, जहाँ हमें बाहरी पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती, और भीतर का स्वर हमें हमारे अस्तित्व की गहरी समझ देता है। यह लेख उन लोगों के लिए है जो अपन...

पूर्ण विश्वास और समर्पण: सूरत की दिव्य यात्रा

पूर्ण विश्वास और समर्पण: सूरत की दिव्य यात्रा   ~ आनंद किशोर मेहता विश्वास और समर्पण का गूढ़ अर्थ सच्चा विश्वास केवल शब्दों में नहीं होता, बल्कि यह एक गहरी आंतरिक अनुभूति है, जो आत्मा को शांति, संतुलन और दिव्यता प्रदान करता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार को पूर्णतः विसर्जित कर देता है और संपूर्ण समर्पण करता है, तब वह अपने भीतर एक दिव्य द्वार खोलता है, जो केवल परमसत्ता की कृपा से संभव होता है। इस अवस्था में, व्यक्ति स्वयं को नहीं, बल्कि ईश्वरीय चेतना को जीने लगता है, और यही उसका वास्तविक जीवन बनता है। पीड़ा को प्रेमपूर्वक स्वीकारना: समर्पण का सर्वोच्च भाव जब विश्वास इतना अटल और गहन हो जाता है कि व्यक्ति प्रत्येक दुख और संघर्ष को प्रेमपूर्वक स्वीकार करने लगता है, तब वह द्वैत से परे चला जाता है। सुख और दुख का भेद मिट जाता है, और हर अनुभव केवल परमसत्ता के प्रति समर्पित हो जाता है। ऐसी स्थिति में, हर चुनौती एक आशीर्वाद प्रतीत होती है, और व्यक्ति को हर क्षण दैवीय प्रेरणा एवं शक्ति प्राप्त होती है। अहंकार का विसर्जन: आत्मा का दिव्य पुनर्जन्म अहंकार ही वह पर्दा है, जो आत्मा को...

SEVA: A VISION 2025

SEVA: A VISION Author: Anand Kishor Mehta Service: The Key to Spiritual Peace Service and positivity converge into a divine force that not only energizes society but also fills an individual with spiritual richness and inner peace. This writing is not merely a collection of words; it reflects the profound experiences of life and a true dedication. Persona: Inspiration and Light The author is not just a name but a living embodiment of service, love, and positivity. His thoughts and writings leave a deep impact on society, guiding lives towards new directions. His simplicity, humility, and devotion touch hearts deeply. His writings are not merely expressions of ideas; they are sentiments that infuse readers with positive energy and inspiration. Service and Dedication He has made selfless service the cornerstone of his life. He believes that service is not just an act of duty but a spiritual practice that allows one to experience supreme joy. When we engage in any work with lo...

संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा (एक काव्य-संग्रह)

📖 संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा (एक काव्य-संग्रह) "संस्कार, प्रेम और अनुशासन की ऊर्जा से जीवन को नवचेतना देने वाला सृजनात्मक काव्य-संग्रह!" 🌿 रा धा / ध : स्व आ मी 🌿 ("शब्दों की इस दिव्य आभा में खोकर, प्रेम, सेवा और कर्तव्य की गहराइयों को महसूस करें।") 🌿 आभार एवं समर्पण 🌿 यह काव्य-संग्रह "संस्कारों की ज्योतिर्मय धारा" सम्पूर्ण श्रद्धा, प्रेम और समर्पण के साथ परमपिता रा धा/ध: स्व आ मी दाता दयाल के पावन चरणों में समर्पित है। उनकी अनंत कृपा, मार्गदर्शन और दिव्य आशीर्वाद से ही यह सृजन संभव हुआ। विशेष आभार ➤ सतसंगी परिवार – जिनकी संगति, प्रेरणा और आशीर्वाद इस काव्य यात्रा की संजीवनी बनी। ➤ हमारे विद्यालय के नन्हे दीपक – जिनके संस्कार, जिज्ञासा और पवित्र हृदय इस सेवा को और अधिक सार्थक बनाते हैं। ➤ अर्धांगिनी संजू रानी एवं शांतिमय संतति  – जिनका प्रेम, धैर्य और अटूट विश्वास मेरी निरंतर प्रेरणा का स्रोत रहा। 🌸 यह काव्य-संग्रह मात्र शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि मालिक की असीम दया-मेहर और सभी के स्नेह का प्रकाश है। 🌸 सप्रेम रा धा / ध : स्व आ मी एवं कोटिशः...