पूर्ण विश्वास और समर्पण: सूरत की दिव्य यात्रा
~ आनंद किशोर मेहता
विश्वास और समर्पण का गूढ़ अर्थ
सच्चा विश्वास केवल शब्दों में नहीं होता, बल्कि यह एक गहरी आंतरिक अनुभूति है, जो आत्मा को शांति, संतुलन और दिव्यता प्रदान करता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार को पूर्णतः विसर्जित कर देता है और संपूर्ण समर्पण करता है, तब वह अपने भीतर एक दिव्य द्वार खोलता है, जो केवल परमसत्ता की कृपा से संभव होता है। इस अवस्था में, व्यक्ति स्वयं को नहीं, बल्कि ईश्वरीय चेतना को जीने लगता है, और यही उसका वास्तविक जीवन बनता है।
पीड़ा को प्रेमपूर्वक स्वीकारना: समर्पण का सर्वोच्च भाव
जब विश्वास इतना अटल और गहन हो जाता है कि व्यक्ति प्रत्येक दुख और संघर्ष को प्रेमपूर्वक स्वीकार करने लगता है, तब वह द्वैत से परे चला जाता है। सुख और दुख का भेद मिट जाता है, और हर अनुभव केवल परमसत्ता के प्रति समर्पित हो जाता है। ऐसी स्थिति में, हर चुनौती एक आशीर्वाद प्रतीत होती है, और व्यक्ति को हर क्षण दैवीय प्रेरणा एवं शक्ति प्राप्त होती है।
अहंकार का विसर्जन: आत्मा का दिव्य पुनर्जन्म
अहंकार ही वह पर्दा है, जो आत्मा को उसके शुद्धतम स्वरूप से अलग करता है। जब व्यक्ति विनम्रता और दीनता को अपनाता है, तो वह जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश करता है। वह स्वयं को नहीं, बल्कि परम प्रेम को अनुभव करता है। यह मिलन केवल आनंद, शांति और प्रकाश से भरा होता है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को परम चेतना के साथ एकाकार पाता है और हर कर्म को ईश्वरीय अनुग्रह से प्रेरित होकर करता है।
सच्चा विश्वास: मुक्ति का द्वार
अटूट विश्वास व्यक्ति को हर परिस्थिति में स्थिर, शांत और आनंदमय बनाए रखता है। यह विश्वास उसे जीवन के उतार-चढ़ाव में भी विचलित नहीं होने देता, क्योंकि वह जानता है कि प्रत्येक क्षण केवल परमसत्ता की इच्छा से ही घटित हो रहा है। जब यह विश्वास संपूर्ण रूप से दृढ़ हो जाता है, तब व्यक्ति को सच्चे सुख और मुक्ति का अनुभव होता है। यही आत्मा की दिव्य यात्रा का वास्तविक लक्ष्य है।
निष्कर्ष
आध्यात्मिक ग्रंथों और संतों की वाणी हमें यही सिखाती है कि जब व्यक्ति अपने संपूर्ण अस्तित्व को परम प्रेम के चरणों में समर्पित कर देता है, तब उसे न केवल पीड़ा, भय और भ्रम से मुक्ति मिलती है, बल्कि वह शाश्वत आनंद और शांति का अनुभव करता है।
"जिसने स्वयं को खो दिया, उसने ही स्वयं को पाया—क्योंकि उसके भीतर केवल मालिक ही शेष रह गया।"
संक्षिप्त विचार:
✅ "विश्वास और समर्पण से जीवन की दिव्यता प्रकट होती है।"
✅ "समर्पण ही आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करता है।"
✅ "अहंकार के विसर्जन में ही परमसत्ता का बोध है।"
✅ "हर चुनौती, परम अनुग्रह का रूप ले सकती है।"
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