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फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई The Cultivation of Flowers and Thorns: The Truth of Karma and Consequence कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ बेहद साधारण प्रतीकों में छिपी होती हैं। एक गाँव में दो किसान थे। दोनों मेहनती, दोनों ईमानदार और दोनों ने अपने-अपने खेतों में खूब परिश्रम किया। एक ने फूलों की खेती की और दूसरे ने कांटों की। दोनों ने समय दिया, बीज बोए, खाद डाली, सिंचाई की — हर आवश्यक प्रयास किए, जैसे कोई भी सजग इंसान अपने कर्मों और जीवन में करता है। मौसम बदला, समय गुज़रा और अब फसल सामने थी। एक ओर रंग-बिरंगे, सुगंधित फूलों से लहलहाता खेत और दूसरी ओर तीखे, रुखे और चुभने वाले कांटों से भरा मैदान। तभी कांटे उगाने वाले किसान ने फूलों वाले किसान से पूछा — "भाई, ये बता, तेरे खेत में इतने सुंदर फूल कैसे उग आए? हम दोनों ने तो साथ-साथ मेहनत की थी! फिर मेरे खेत में तो सिर्फ कांटे ही क्यों आए?" इस पर फूलों वाला किसान मुस्कराया और बोला — "भाई, बात मेहनत की नहीं, बीज की है। तूने कांटों के बीज बोए थे, तो अब फूलों की उम्मीद क्यों रखता है?" ये बात उस किसान...