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Showing posts with the label Spiritual Awakening

When Consciousness Purifies Intelligence: A Journey Beyond the Mind

When Consciousness Purifies Intelligence: A Journey Beyond the Mind   --Anand Kishor Mehta Intelligence is, by nature, a function of the mind — it gathers, compares, stores, and analyzes information. It is sharp, logical, and analytical. But consciousness does not belong to the mind — it is the luminous presence behind the mind , a silent witness that does not react but reveals . In the early stages of life, we rely on intelligence to understand the world. It is shaped by education, experience, and memory. But as long as intelligence remains untouched by consciousness , it becomes a mechanical process — like a powerful computer disconnected from the soul. However, when consciousness begins to awaken , a miraculous transformation occurs. Intelligence slowly begins to drop its ego, pride in logic, and attachment to knowledge . It becomes humble , refined , and devoted — and starts to serve a higher spiritual purpose . Intelligence is Limited — Consciousness is Infinite...

The True Beauty: A Holistic Perspective | Real Beauty Beyond Appearance

इंसान की खूबसूरती: एक समग्र दृष्टिकोण     ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका "क्या आपने कभी सोचा है कि सुंदरता का वास्तविक स्वरूप क्या है? क्या यह केवल बाहरी रूप में सीमित है, या इसका संबंध हमारी आत्मा और कर्मों से भी है?" "सौंदर्य देखने वाले की आँखों में होता है।" — ऑस्कर वाइल्ड जब हम "खूबसूरती" शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में सबसे पहले चेहरे की बनावट, त्वचा की चमक, या शारीरिक आकर्षण की छवि उभरती है। लेकिन क्या सुंदरता केवल बाहरी होती है, या यह इंसान के मन, आत्मा और आचरण में भी झलकती है? प्राचीन ग्रंथों, दर्शन, विज्ञान और समाजशास्त्र में इस प्रश्न पर गहन मंथन हुआ है। यह लेख सामाजिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इंसान की वास्तविक सुंदरता का विश्लेषण करेगा और यह समझने का प्रयास करेगा कि सच्ची खूबसूरती कहाँ निहित है। 1. सामाजिक दृष्टिकोण से खूबसूरती समाज में सुंदरता की परिभाषा समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार बदलती रहती है। प्राचीन समाजों में सौंदर्य की अवधारणा भारतीय संस्कृति में गुण, बुद्धिमत्ता, परोपकार और नैतिकता को स...

Know Yourself: The Key to Awareness and Liberation

खुद को जानना क्यों जरूरी है? INTRODUCTION   मनुष्य के जीवन में सबसे गूढ़ प्रश्नों में से एक यह है— "खुद को जानना क्यों जरूरी है?" यदि यह संसार ईश्वर की रचना है, तो क्या उन्होंने पहले से हमारी नियति तय नहीं कर दी? फिर हमें स्वयं को जानने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? क्या हमारा जीवन केवल भाग्य के प्रवाह में बहने के लिए है, या हमें अपने अस्तित्व और आत्मा को समझने का उत्तरदायित्व मिला है? यह प्रश्न केवल दर्शन, विज्ञान और अध्यात्म तक सीमित नहीं, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से भी सीधे जुड़ा हुआ है। सही मायनों में, खुद को जानना आत्म-जागरण और जीवन के वास्तविक उद्देश्य की खोज है। यह केवल एक दार्शनिक विचार नहीं, बल्कि एक गहन अनुभव है, जो जीवन को पूर्णता प्रदान करता है। 1. खुद को जानने का अर्थ क्या है? "खुद को जानना" केवल अपनी बाहरी पहचान तक सीमित नहीं, बल्कि इसका अर्थ अपने वास्तविक स्वरूप, भावनाओं, विचारों, इच्छाओं और आत्मा के स्वरूप को समझना है। जब तक हम अपने भीतर की गहराइयों को नहीं पहचानते, तब तक हम दूसरों की अपेक्षाओं और बाहरी प्रभावों के अनुसार ज...

स्व-परिचय और परम वास्तविकता: चेतना की परम यात्रा।

स्व-परिचय और परम वास्तविकता: चेतना की परम यात्रा स्व-परिचय का अर्थ केवल स्वयं को जानना नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के मूल को अनुभव करना है। लेकिन वास्तव में स्वयं को "जानने" का क्या अर्थ है? यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उतना ही गहरा और रहस्यमयी है। यह एक दिव्य विरोधाभास है— हर रहस्य उजागर है, फिर भी कुछ भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं। शक्ति विद्यमान है, फिर भी वह अदृश्य और अज्ञेय बनी रहती है। परम चेतना सर्वत्र है, फिर भी वह निराकार और अनिर्वचनीय है। शून्यता और पूर्ण विश्वास, दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं। समस्त ज्ञान सुलभ है, फिर भी वास्तविक अनुभूति सीमित प्रतीत होती है। अहंकार का आभास होता है, फिर भी उसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं। "मैं संपूर्ण ब्रह्मांड हूँ," फिर भी "मैं" का कोई स्वतंत्र स्वरूप नहीं। अतः, परम सत्ता के समक्ष, मेरा व्यक्तिगत अस्तित्व केवल एक भ्रम मात्र है। परम वास्तविकता की अनुभूति सत्य स्व-परिचय संपूर्ण समर्पण और आत्म-विसर्जन में निहित है, जहाँ वास्तविकता और अस्तित्व एकाकार हो जाते हैं। जीवन की प्रत्येक घटना, प्रत्य...

"एक विश्व, एक परिवार: प्रेम और मानवता का संदेश" 2025

" एक विश्व, एक परिवार: प्रेम और मानवता का संदेश" ___ लेखक: आनंद किशोर मेहता मैं इस पृथ्वी को केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि एक जीवित और धड़कते परिवार के रूप में देखता हूँ। यहाँ जन्म लेने वाले सभी लोग—धर्म, जाति, भाषा, रंग या राष्ट्र की सीमाओं से परे—एक ही ब्रह्म के अंश हैं। हम सब एक ही ऊर्जा, एक ही चेतना से जुड़े हुए हैं। यह सत्य हम तब भूल जाते हैं जब हमारी सोच केवल सीमाओं, मान्यताओं और अहं की दीवारों में सिमट जाती है। कल्पना कीजिए —एक ऐसा संसार जहाँ हर व्यक्ति दूसरे को अपना भाई माने, हर बच्चा हर माँ का हो, और हर प्राणी को जीने का उतना ही अधिकार मिले जितना स्वयं को देते हैं। अगर हम प्रेम, सहानुभूति और सम्मान से जीना सीख लें, तो यह धरती स्वर्ग से कम नहीं होगी। मानवता के निर्माण की नींव—आठ दिव्य मूल्य 1. ईश्वर पर अटूट विश्वास जब हमारा संबंध ईश्वर से जुड़ता है, तब हमारे भीतर करुणा, धैर्य और शांति का स्रोत प्रस्फुटित होता है। ईश्वर के प्रति यह आस्था हमें हर परिस्थिति में स्थिर रखती है और हमारे भीतर गहरे उद्देश्य की लौ जगाती है। 2. हर प्राणी के प्रति प्रेम और सम्मान ह...

नवीन सभ्यता का अभ्युदय: एक वैश्विक परिवार की ओर:

"नवीन सभ्यता का अभ्युदय: एक वैश्विक परिवार की ओर"          लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका: संसार केवल भौतिक प्रगति से सभ्य नहीं बनता, बल्कि सच्ची सभ्यता का निर्माण मानवीय मूल्यों, आध्यात्मिक चेतना, और सह-अस्तित्व की भावना पर आधारित होता है। जब समस्त मानवजाति एक परिवार के रूप में उभरेगी, तभी एक उन्नत, समरस और दिव्य समाज की स्थापना संभव होगी। इसके लिए हमें केवल बाह्य विकास नहीं, बल्कि आंतरिक विकास की दिशा में भी अग्रसर होना होगा। 1. ईश्वर की पितृत्व भावना और मानव जाति की भ्रातृत्व भावना: सभ्य समाज की नींव तभी सशक्त होगी जब हम यह स्वीकार करेंगे कि ईश्वर संपूर्ण सृष्टि के पिता हैं और समस्त मानवता परस्पर भ्रातृत्व के अटूट बंधन में बंधी हुई है। जब प्रत्येक व्यक्ति इस भावना को अपने जीवन में आत्मसात करेगा, तब जाति, धर्म, भाषा और भौगोलिक सीमाओं के कृत्रिम बंधन स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। यह भाव हमें केवल विचारों तक सीमित नहीं रखना, बल्कि अपने आचरण में उतारना होगा। जब हर व्यक्ति दूसरों को अपने परिवार का सदस्य समझेगा, तब समाज में प्रेम, करुणा, सहयोग और सह-अस्तित्...