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(भाग पहला) दयालबाग: सेवा, प्रेम और चेतना का जीवंत उपवन

(भाग पहला)  1. दयालबाग: सेवा, प्रेम और चेतना का जीवंत उपवन  ~ आनंद किशोर मेहता दयालबाग — यह कोई सामान्य भू-खंड नहीं, बल्कि दिव्यता, चेतना और प्रेम का जीवंत संगम है। एक ऐसी पावन धरा, जिसे “The Garden of the Merciful” कहा गया, जहाँ मानव जीवन को अपने सर्वोच्च उद्देश्य तक पहुँचाने की प्रेरणा मिलती है। यह उपवन राधास्वामी मत की मधुर गूंज, संतों की चरण-धूलि और सेवा की परंपरा से सिंचित है। प्रेम और सेवा का ध्येयस्थल सर साहब जी महाराज द्वारा स्नेह से बसाया गया यह क्षेत्र, मात्र एक बस्ती नहीं, बल्कि सहयोग, भक्ति और समर्पण की एक आदर्श परंपरा है। यहाँ के हर मार्ग, हर गली और हर गतिविधि में एक ही भाव झलकता है — “प्रेमियों का सहयोग और मालिक की रज़ा।” यहाँ का हर कण पुकारता है — “हम एक हैं।” इस भूमि पर सेवा केवल कर्म नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है। यहाँ तन, मन और धन का अर्पण केवल एक लक्ष्य के लिए होता है — समस्त प्राणियों का कल्याण। सादगी में छिपा जीवन का सौंदर्य दयालबाग की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सादगी है। यहाँ दिखावा नहीं, श्रद्धा है। यहाँ का अनुशासन, श्रम और सहयोग एक ऐसी धारा बनाते हैं, जो आ...

सच्चा सम्मान वहाँ नहीं, जहाँ दिखता है — वहाँ है, जहाँ कर्म बोलता है।

सच्चा सम्मान वहाँ नहीं, जहाँ दिखता है — वहाँ है, जहाँ कर्म बोलता है ~ आनंद किशोर मेहता 1. दिखावे का भ्रम और खोखला सम्मान कई लोग समाज में ऊँचा दिखने की लालसा में दूसरों की बेवजह सेवा करते हैं — बस इसलिए कि कोई उन्हें "महान" कह दे। वे खुद के आत्मसम्मान को गिरवी रखकर झूठी तारीफों का पीछा करते हैं। पर क्या कभी सोचा है? जो सम्मान दूसरे की कृपा से मिलता है, वो आपकी आत्मा को कभी तृप्त नहीं करता। "दूसरों की नजरों में ऊँचा बनने से पहले, अपने मन में ऊँचाई पैदा करो।" "Before trying to rise in others' eyes, elevate yourself in your own mind." 2. अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ना – आत्मघात है जब हम अपने घर, परिवार, और सेंटर की जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, तो हम सिर्फ अपने ही नहीं, अपनों के भविष्य से भी खेल रहे होते हैं। सेवा वहीं करें, जहाँ उससे किसी जीवन में वास्तविक बदलाव आए। "जहाँ दिल से सेवा होती है, वहीं से दुनिया बदलती है।" "Where service flows from the heart, true change begins." 3. अपना सतसंग सेंटर: सेवा का...

सहयोग संगठन और सफलता 20.02.2025

सहयोग, संगठन और सफलता लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका: सफलता केवल व्यक्तिगत प्रयासों से नहीं मिलती, बल्कि यह सहयोग, संगठन और सामूहिक संकल्प की दिव्य शक्ति से जन्म लेती है। जब हृदय समर्पित होता है, मन एकता से ओत-प्रोत होता है, और कर्म में समन्वय होता है, तब असंभव भी संभव हो जाता है। संगठित प्रयास न केवल लक्ष्य को साकार करते हैं, बल्कि मानवता के उत्थान का भी मार्ग प्रशस्त करते हैं। किसी भी संस्था या सतसंग जगत में सहयोग और संगठन की भूमिका आधारशिला की तरह होती है, जो आत्मिक उन्नति के साथ-साथ नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करता है। सहयोग: एक दिव्य शक्ति सहयोग मात्र सहायता का नाम नहीं है, बल्कि यह उच्चतम भावनाओं से परिपूर्ण एक पवित्र प्रक्रिया है। यह परस्पर विश्वास, एकता और प्रेम को जन्म देता है। जब हम निःस्वार्थ भाव, दीनता और समर्पण से सहयोग करते हैं, तो ईश्वरीय अनुकंपा स्वतः ही हमारी ओर प्रवाहित होती है। सहयोग से प्राप्त अनमोल लाभ: असंभव प्रतीत होने वाले कार्य भी सहजता से पूर्ण हो जाते हैं। नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है। समस्याओं का समाधान करने की शक्ति विकसित होती...