Skip to main content

Posts

Showing posts with the label परिवार

माता-पिता: जायदाद नहीं, ज़िम्मेदारी हैं।

  माता-पिता: जायदाद नहीं, ज़िम्मेदारी हैं।  ~ आनंद किशोर मेहता इस भौतिकतावादी युग में हमने रिश्तों को भी तौलना सीख लिया है — संपत्ति के तराजू में। माँ-बाप अब ‘विरासत’ का हिस्सा बनते जा रहे हैं, ‘संस्कार’ का नहीं। हमने देखा है — बड़े-बड़े परिवार अदालतों में खड़े हैं, केवल इसलिए कि उन्हें कुछ ज़मीन या पैसा और मिल जाए। पर वही लोग जब माँ-बाप को अस्पताल ले जाने की बारी आती है, तो एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं। यह विडंबना नहीं, समाज की आत्मिक दरिद्रता का प्रतीक है। जायदाद के लिए लड़ाई क्यों? क्योंकि हमें मिलना है। क्योंकि हमें रखना है। क्योंकि हमें बढ़ाना है। पर माँ-बाप की सेवा के लिए कौन लड़ता है? यहाँ किसी को कुछ मिलता नहीं — यहाँ तो केवल दिया जाता है। समय, ध्यान, धैर्य, प्रेम, त्याग और करुणा। और शायद इसी कारण... आज की दुनिया में ये गुण दुर्लभ हो गए हैं। माँ-बाप की जिम्मेदारी कोई भार नहीं जिम्मेदारी बोझ तब बनती है, जब हम उसे "मजबूरी" समझते हैं। पर जिसने माँ-बाप के आँचल की छाया में निस्वार्थ प्रेम को महसूस किया है, जिसने बापू के काँपते हाथों से भी...

भाग पांचवां: परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष

परिवार की खामोश पुकार: सेवा, समर्पण और सत्य का संघर्ष ।  ~ आनंद किशोर मेहता INTRODUCTION यह लेख-संग्रह उन अनकहे अनुभवों को उजागर करता है, जो परिवारों में सेवा, समर्पण और आंतरिक संघर्ष से जुड़े होते हैं। कुछ सदस्य निस्वार्थ भाव से अपने बुजुर्गों या परिजनों की सेवा करते हैं, बिना किसी प्रशंसा की अपेक्षा किए, जबकि दूर रहने वाले सदस्य केवल मीठी बातों और थोड़ी सी उपस्थिति से दिल जीतने की कोशिश करते हैं। यह संग्रह इस असंतुलन को चुनौती देता है, जहां सच्ची सेवा और प्रेम को सम्मान मिलना चाहिए, न कि केवल शब्दों और दिखावे को। लेखों में यह भी बताया गया है कि सच्ची सेवा तब होती है जब कोई व्यक्ति बिना किसी पहचान की लालसा के, अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है। यह संग्रह हमें यह सिखाता है कि असली सम्मान कर्मों में होता है, न कि केवल शब्दों में। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. 1. सच्ची सेवा: जहाँ प्रशंसा नहीं, धैर्य ही पुरस्कार है   घर पर रहकर जो सदस्य तन, मन और धन से निस्वार्थ भाव से बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं, वे वास्तव में चुपचाप एक तपस्या निभा रहे हैं। वे न प्रशंसा की अपे...

माता-पिता और संतान का सच्चा कर्तव्य

माता-पिता और संतान का सच्चा कर्तव्य ~ आनंद किशोर मेहता माता-पिता और संतान का संबंध केवल प्रेम और भावनाओं का नहीं, बल्कि कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का भी होता है। अगर कोई माता-पिता सिर्फ उपहार देकर या मीठी बातें कहकर अपने फर्ज से बचना चाहें, या संतान केवल दिखावे के प्रेम से माता-पिता को खुश करने की कोशिश करे, तो यह उनके वास्तविक कर्तव्य से विमुख होना है। माता-पिता का कर्तव्य संस्कार और मार्गदर्शन – बच्चों को नैतिकता, अनुशासन और आत्मनिर्भरता सिखाना। समय और सहयोग – केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहयोग देना। स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता – बच्चों को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार करना। संतान का कर्तव्य सम्मान और सेवा – माता-पिता के प्रति सच्चा आदर और उनकी देखभाल करना। समय देना – व्यस्तता के बावजूद माता-पिता के साथ समय बिताना। भावनात्मक और आर्थिक संबल – उम्र बढ़ने पर उन्हें सुरक्षा और सहारा देना। भावार्थ माता-पिता और संतान दोनों को एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। केवल उपहारों और दिखावे से नहीं, बल्कि सच्चे प्रेम, सेवा...