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स्वाभिमान (Self-Respect)— आंतरिक शक्ति का मूल स्तंभ —

स्वाभिमान (Self-Respect)  — आंतरिक शक्ति का मूल स्तंभ — स्वाभिमान का अर्थ स्वाभिमान वह गहरी आत्म-मान्यता और गरिमा की भावना है, जो तब जन्म लेती है जब हम अपने मूल्यों, विश्वासों और ईमानदारी के अनुसार जीवन जीते हैं। यह दूसरों की प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इस पर आधारित होता है कि हम स्वयं को कैसे देखते और कैसे समझते हैं। स्वाभिमान के प्रमुख तत्व 1. आत्म-स्वीकृति • अपनी शक्तियों और कमजोरियों को बिना कठोर आलोचना के स्वीकार करना। • अपने अस्तित्व और बीते निर्णयों से संतुष्ट रहना। 2. व्यक्तिगत सीमाएँ (Boundaries) • जहाँ आवश्यक हो “न” कह पाने का साहस। • मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक सीमाओं की रक्षा करना। 3. गरिमामय आचरण • ईमानदारी और न्याय के साथ कार्य करना — चाहे कोई देखे या न देखे। • अपने अंतरात्मा के अनुरूप निर्णय लेना। 4. आत्म-संतुष्टि • दूसरों की प्रशंसा या मान्यता पर निर्भर न रहना। • अपनी अंतरात्मा और विवेक पर विश्वास रखना। 5. आलोचना का संतुलित सामना • बिना टूटे सुनना और समझना। • सीख लेना — परंतु आत्म-मूल्य को न खोना। स्वाभिमान क्यों महत्वपूर्ण है? •...

कविता श्रृंखला: अनकहे एहसास: दिल की बात

कविता श्रृंखला:  अनकहे एहसास: दिल की बात  मैं दिया हूँ!  मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से है, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ है। – गुलज़ार कविता: मैं दिया हूँ ~ आनंद किशोर मेहता मैं दिया हूँ... मुझे बस अंधेरे से शिकायत है, हवा से नहीं। वो तो बस चलती है… कभी मेरे खिलाफ, कभी मेरे साथ। मैं चुप हूँ, पर बुझा नहीं, क्योंकि मेरा काम जलना है। ताकि किसी राह में भटके हुए को रौशनी मिल सके। मुझे दिखावा नहीं आता, ना ही शोर मचाना। मैं जलता हूँ भीतर से — सच, प्रेम और सब्र के संग। हवा सोचती है, कि वो मुझे गिरा सकती है। पर उसे क्या पता — मैं हर बार राख से भी फिर से जल उठता हूँ। मैं दिया हूँ… नम्र हूँ, शांत हूँ, मगर कमजोर नहीं। मैं अंधेरे का दुश्मन हूँ, इसलिए उजाले का दोस्त बना हूँ। तू चाहे जितनी बार आज़मा ले, मैं फिर भी वही रहूँगा — धीरे-धीरे जलता, पर हर दिल को छूता। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. "दीया कभी अंधेरे से डरता नहीं,… वो तो उसी के बीच खुद को साबित करता है।" "हवा से शिकवा नहीं,… क्योंकि उसे नहीं पता — कि मेरी लौ मेरी श्रद...

सरल स्वभाव को कमजोरी न समझें

सरल स्वभाव को कमजोरी न समझें  आज के समय में अक्सर यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति विनम्र, शांत और सरल होता है, उसे लोग कमजोर समझने की भूल कर बैठते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि सरलता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक गहरा संस्कार है — आत्मबल, संयम और विवेक का प्रतीक। सरल व्यक्ति किसी से डरकर शांत नहीं रहता, वह अपने भीतर के संतुलन और सशक्त संस्कारों के कारण शांति को चुनता है । वह प्रतिक्रिया देने के बजाय प्रत्युत्तर में प्रेम और धैर्य का मार्ग अपनाता है । यह मार्ग आसान नहीं होता, लेकिन यही उसे दूसरों से विशेष बनाता है। याद रखिए, जो सरल है, वही सबसे मजबूत है। क्योंकि उसे दिखावा नहीं करना पड़ता, वह जो है, वही सामने होता है। इसलिए किसी सरल व्यक्ति को कभी कम न आँकें, क्योंकि जब समय आता है, तो वही सबसे बड़ी मिसाल बनता है। सरलता मेरा अभिमान है (कविता) न समझो मुझको कमजोर कभी, ये चुप्पी मेरी पहचान है। संस्कारों में पला बढ़ा मैं, सरलता ही मेरी शान है। न उत्तर दूँ हर कटु वचन का, न रोष दिखाऊँ बात-बात पर, धैर्य है मेरा आभूषण, और शांति है मेरी पतवार पर। तू ललकारे, मैं ...

किरदार: जो शब्दों से नहीं, कर्मों से बनता है

किरदार: जो शब्दों से नहीं, कर्मों से बनता है।  ~ आनंद किशोर मेहता किसी इंसान के बारे में सबसे बड़ी पहचान उसका किरदार होता है — वो जो दिखावे से नहीं, बल्कि उसकी सोच, वफादारी, और आत्मसम्मान से गढ़ा जाता है। किरदार को न तो किसी तराज़ू से तौला जा सकता है और न ही किसी पद, पैसे या प्रभाव से खरीदा जा सकता है। यह तो वर्षों के सच, संघर्ष और सेवा से आकार लेता है। मैंने जीवन में हमेशा यह महसूस किया है कि जो साथ देता है, वह केवल समय काटने के लिए नहीं देता, बल्कि उस साथ को धर्म की तरह निभाता है । जब किसी के लिए खड़ा होता हूँ, तो अंत तक खड़ा रहता हूँ — चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। क्योंकि यह केवल भावनात्मक जुड़ाव नहीं, बल्कि मेरे किरदार की गवाही है। आज जब समाज में गिरगिट जैसे रंग बदलने वाले चेहरे हर मोड़ पर मिलते हैं, तो मेरा मन और अधिक दृढ़ होता है कि मैं वैसा हरगिज न बनूँ। सच्चाई, निष्ठा और आत्मबल से भरा जीवन भले ही कठिन हो, लेकिन वह स्वाभिमान के साथ जिया गया जीवन होता है ।  ग़द्दारी करना आसान हो सकता है, पर वफ़ा निभाना ही सच्ची बहादुरी है । और यही मेरा चुनाव रहा है — हर रिश्ते, हर ज़...

भाग पहला: जीवन का सच्चा स्वर — भावनाएँ, ज़िम्मेदारियाँ और आत्मिक रिश्तों के रंग

भाग पहला :  जीवन का सच्चा स्वर — भावनाएँ, ज़िम्मेदारियाँ और आत्मिक रिश्तों के रंग ~ आनंद किशोर मेहता "जो दिल से जीते हैं, वे दर्द में भी मुस्कुराते हैं — क्योंकि उनका जीवन दूसरों के लिए एक संदेश होता है, और मौन में भी एक प्रेरणा।" 1. स्वतंत्रता और जिम्मेदारी: एक सच्चा संतुलन Freedom and Responsibility: A True Balance "स्वतंत्रता का अर्थ केवल चुनाव का अधिकार नहीं, बल्कि उसके परिणामों की जिम्मेदारी भी है।" "Freedom doesn't just mean the right to choose, but also the responsibility to face the consequences." मनुष्य जीवन की सबसे सुंदर विशेषता है — स्वतंत्रता। यह हमें यह अधिकार देती है कि हम अपने रास्ते, अपने विचार और अपने निर्णय स्वयं चुन सकें। लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हर स्वतंत्रता के साथ एक गहरी जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है। जब हम किसी राह को चुनते हैं — चाहे वह करियर की हो, जीवनसाथी की हो, या किसी आदर्श की — तो उस चुनाव से जुड़ी हर परिस्थिति को भी हमें स्वीकार करना होता है। केवल अच्छे परिणामों का हिस्सा बनना ही नहीं, बल्कि कठिनाइयों, संघर...

जब रिश्तों में डर समा जाए: दूरी बनाना कोई गुनाह नहीं

जब रिश्तों में डर समा जाए: दूरी बनाना कोई गुनाह नहीं ~ आनंद किशोर मेहता रिश्ते केवल शब्दों से नहीं, बल्कि व्यवहार और भावनाओं से बनते हैं। जब कोई यह कहता है — "मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ," तो यह वादा सिर्फ एक भावनात्मक संवाद नहीं होता, बल्कि एक गहरी जिम्मेदारी बन जाता है। मैंने भी एक ऐसा अनुभव जिया, जब किसी ने प्रेम और उत्साह के साथ मेरे जीवन में प्रवेश किया। उसके शब्द मधुर थे — साथ, साया, विश्वास, हमेशा… सब कुछ बेहद आत्मीय लगा। परंतु समय के साथ उन शब्दों के पीछे की सच्चाई सामने आने लगी। जो साया पहले सुखद प्रतीत होता था, वही धीरे-धीरे अंधकार फैलाने लगा। और फिर एक दिन उसने कह दिया — "तुझे जान से मार दूँगा।" यह वाक्य केवल एक आक्रोश नहीं था — यह मेरी आत्मा को झकझोर देने वाला गहरा आघात था। लोग पूछते हैं, “क्यों दूरी बना ली?” उत्तर सरल है, परंतु गंभीर — "मैंने दूरी इसलिए बनाई क्योंकि मुझे स्वयं को बचाना था।" यह दूरी घृणा से नहीं, आत्म-संरक्षण से थी। कभी-कभी सबसे सच्चा प्रेम वही होता है जो स्वयं को टूटने से बचा ले। "खुद को बचाना कोई स्वार्थ नहीं — यह आत्...

कविता- मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ

मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ । ~ आनंद किशोर मेहता मैं कुछ भी नहीं… फिर भी कुछ कहना चाहता हूँ ~ आनंद किशोर मेहता 1. मैं कोई ध्वनि नहीं, सिर्फ एक कंपन हूँ… जो हृदय की गहराई में कभी आह बनकर उतरता है, तो कभी प्रार्थना बनकर बहता है। मैं कोई सूरज नहीं, सिर्फ दीये की लौ हूँ, जो जलती है दूसरों के लिए और खुद की बात कभी नहीं करती। मैं कोई उपदेशक नहीं, बस एक पथिक हूँ… जिसने चलकर जाना कि रास्ता बताने से बेहतर है — चुपचाप चलना। मैंने कभी किसी से नहीं कहा — "मेरी सुनो…" पर शायद मेरी चुप्पी भी कभी-कभी आग्रह बन गई। मैंने कभी सेवा की उम्मीद में कुछ नहीं किया, फिर भी मन में कहीं छिपा रहा — कि शायद कोई देखे, कोई समझे… पर आज जानता हूँ — जो देता है, वह मैं नहीं — मैं तो बस उसी की एक प्रार्थनामयी अंश हूँ… अब मैं बस मौन से सीखता हूँ, और विनम्रता से जीता हूँ, क्योंकि जो झुक जाए — वही सबसे ऊँचा हो जाता है। मैं कोई सत्य नहीं हूँ, सिर्फ उसकी खोज में हर दिन गलता हुआ प्रश्न हूँ… और यदि कभी मेरी कोई बात तुम्हें बाँधती लगे — तो उसे मेरा कहना न समझो, ...