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जब अपने ही चुपचाप चक्रव्यूह रचते हैं…

जब अपने ही चुपचाप चक्रव्यूह रचते हैं… ~ आनंद किशोर मेहता अभिमन्यु का अंत भाले से नहीं, एक चुपचाप रचे गए चक्रव्यूह से हुआ था। उस चक्रव्यूह को किसी एक ने नहीं, बल्कि उन सब ने मिलकर रचा था — जो उसके अपने थे। गुरु, चाचा, कुल-परिजन — जिनके लिए वह लड़ रहा था, उन्हीं के बीच वह घिर गया। कभी-कभी जीवन भी ऐसी ही रणभूमि बन जाता है… जहाँ शत्रु नहीं, बल्कि अपनों की चुप्पी और पीठ पीछे बंधी रणनीति ही सबसे तीखा वार करती है। मेरा अपना चुप्पी से बुना चक्रव्यूह मैंने जीवन में एक ऐसा समय देखा… जहाँ मैं किसी द्वंद्व के विरुद्ध नहीं, बल्कि एक अदृश्य चक्रव्यूह के बीच खड़ा था — जो शब्दों से नहीं, मौन से बना था। आश्चर्य यह नहीं था कि कौन सामने खड़ा है, दर्द तो इस बात का था कि हर दिशा से वही चेहरे दिखे, जिन्हें मैंने अपना कहा था। कंधे जो साथ होने चाहिए थे, कहीं सहमे हुए थे — या फिर किसी और तरफ जुड़ चुके थे। 'अपराध' — बस सत्य के साथ खड़ा होना मुझसे पूछा गया बिना ही मेरे निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए गए। मैंने न किसी को दोषी ठहराया, न कोई आरोप लगाया — बस अपने अंतःकरण की आवाज़ को...

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई

फूल और कांटे की खेती: कर्म और परिणाम की सच्चाई The Cultivation of Flowers and Thorns: The Truth of Karma and Consequence कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ बेहद साधारण प्रतीकों में छिपी होती हैं। एक गाँव में दो किसान थे। दोनों मेहनती, दोनों ईमानदार और दोनों ने अपने-अपने खेतों में खूब परिश्रम किया। एक ने फूलों की खेती की और दूसरे ने कांटों की। दोनों ने समय दिया, बीज बोए, खाद डाली, सिंचाई की — हर आवश्यक प्रयास किए, जैसे कोई भी सजग इंसान अपने कर्मों और जीवन में करता है। मौसम बदला, समय गुज़रा और अब फसल सामने थी। एक ओर रंग-बिरंगे, सुगंधित फूलों से लहलहाता खेत और दूसरी ओर तीखे, रुखे और चुभने वाले कांटों से भरा मैदान। तभी कांटे उगाने वाले किसान ने फूलों वाले किसान से पूछा — "भाई, ये बता, तेरे खेत में इतने सुंदर फूल कैसे उग आए? हम दोनों ने तो साथ-साथ मेहनत की थी! फिर मेरे खेत में तो सिर्फ कांटे ही क्यों आए?" इस पर फूलों वाला किसान मुस्कराया और बोला — "भाई, बात मेहनत की नहीं, बीज की है। तूने कांटों के बीज बोए थे, तो अब फूलों की उम्मीद क्यों रखता है?" ये बात उस किसान...

सत्य और प्रकाश का संघर्ष: क्यों अंधकार रूठ जाता है?

सत्य और प्रकाश का संघर्ष: क्यों अंधकार रूठ जाता है? ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका "सत्य और प्रकाश का मार्ग चुनना जितना सरल दिखता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है। जैसे ही व्यक्ति ज्ञान और सच्चाई की ओर बढ़ता है, अंधकार उसे रोकने का हर संभव प्रयास करता है।" अंधकार केवल रोशनी की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि एक मानसिक और आत्मिक स्थिति भी है। जब कोई व्यक्ति सत्य, ज्ञान और नैतिकता की ओर अग्रसर होता है, तो वे शक्तियाँ जो अंधकार में जीने की अभ्यस्त हैं, इसका विरोध करने लगती हैं। सत्य का प्रकटीकरण अज्ञान और स्वार्थ पर आघात करता है, इसलिए विरोध स्वाभाविक है। अंधकार का स्वभाव: क्यों वह रूठता है? अंधकार का स्वभाव अपने अस्तित्व को बचाने का है। जब कोई प्रकाश जलाता है, तो अंधकार को हटना ही पड़ता है, और यह उसे स्वीकार नहीं होता। परिवर्तन का भय – सत्य परिवर्तन लाता है, और लोग परिवर्तन से डरते हैं क्योंकि यह उनकी जड़ता को तोड़ता है। स्वार्थ और अहंकार – जो अंधकार से लाभ उठाते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह उनके स्वार्थ पर चोट करता है। मोह और अज्ञान – अंधकार में र...