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निःस्वार्थता और समर्पण: सच्ची शांति की राह

निःस्वार्थता और समर्पण: सच्ची शांति की राह ~ आनंद किशोर मेहता जीवन केवल एक संयोग नहीं, बल्कि एक साधना है—जिसका चरम लक्ष्य है आंतरिक शांति, स्थायी संतोष और व्यापक उद्देश्य में स्वयं को विलीन कर देना। यह यात्रा तब आरंभ होती है जब मनुष्य अपने ‘स्व’ की सीमाओं को पहचानता है और अहंकार, वासनाओं व निजी आकांक्षाओं की दीवारें तोड़कर व्यापक चेतना से जुड़ता है। निःस्वार्थता और समर्पण वही सेतु हैं, जो हमें स्वार्थपूर्ण अस्तित्व से उठाकर उच्चतर जीवन-दृष्टि की ओर ले जाते हैं—जहाँ न कोई आग्रह रहता है, न कोई अपेक्षा। यह मार्ग किसी धर्म, पंथ या वाद से नहीं बंधा—यह तो प्रेम की भूमि, सेवा की राह और विनम्रता की वाणी है। सेवा का सौंदर्य: जहाँ ‘मैं’ नहीं, केवल ‘तू’ होता है जब कोई मनुष्य सेवा को जीवन का उद्देश्य बना लेता है, तब वह दुनिया की प्रतिक्रिया से निर्भीक हो जाता है। न उसे प्रशंसा लुभाती है, न आलोचना विचलित करती है। उसका कर्म निष्कलुष, निस्वार्थ और निर्मल हो जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने अस्तित्व मात्र से सुकून और प्रेरणा फैलाता है। "जहाँ कर्म सेवा बन जाए, वहाँ जीवन परम सत्य से एकरूप हो जाता ह...