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Showing posts with the label मानसिक विकास

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय

बुद्धि और विवेक को निखारने के 9 संतुलित और सार्थक उपाय  ~ आनंद किशोर मेहता 1. पढ़ने की आदत को आनंदमय बनाएं पढ़ना केवल सूचनाएँ लेने के लिए नहीं, बल्कि सोचने और समझने की एक सुंदर प्रक्रिया है। जब हम भावपूर्वक और रुचि से पढ़ते हैं, तो न केवल जानकारी बढ़ती है, बल्कि मन की स्पष्टता और भाषा की सुंदरता भी निखरती है। 2. ऐसे लोगों का संग चुनें जो सोच को विस्तार दें हमेशा समान सोच वाले नहीं, बल्कि सकारात्मक और विवेकी लोगों के बीच समय बिताएं। उनकी बातें और दृष्टिकोण आपकी सोच में संतुलन और परिपक्वता ला सकते हैं। 3. सीखने को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बनाएं चाहे उम्र कोई भी हो, नई चीज़ें सीखने का उत्साह कभी कम न करें। रोज़मर्रा के जीवन में भी छोटे-छोटे अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, बशर्ते दृष्टि जागरूक हो। 4. कल्पना को दिशा दें, सीमा नहीं कल्पना केवल उड़ान नहीं है, यह सोच की गहराई है। कल्पनाशक्ति का उपयोग करें समस्याओं के समाधान खोजने, नई संभावनाएँ देखने और भीतर की रचनात्मकता को जाग्रत करने के लिए। 5. आत्मचिंतन करें, लेकिन आलोचना नहीं जो सीखा है उस पर शांत होकर विचार करें — वह आ...

सरल स्वभाव को कमजोरी न समझें

सरल स्वभाव को कमजोरी न समझें  आज के समय में अक्सर यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति विनम्र, शांत और सरल होता है, उसे लोग कमजोर समझने की भूल कर बैठते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि सरलता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक गहरा संस्कार है — आत्मबल, संयम और विवेक का प्रतीक। सरल व्यक्ति किसी से डरकर शांत नहीं रहता, वह अपने भीतर के संतुलन और सशक्त संस्कारों के कारण शांति को चुनता है । वह प्रतिक्रिया देने के बजाय प्रत्युत्तर में प्रेम और धैर्य का मार्ग अपनाता है । यह मार्ग आसान नहीं होता, लेकिन यही उसे दूसरों से विशेष बनाता है। याद रखिए, जो सरल है, वही सबसे मजबूत है। क्योंकि उसे दिखावा नहीं करना पड़ता, वह जो है, वही सामने होता है। इसलिए किसी सरल व्यक्ति को कभी कम न आँकें, क्योंकि जब समय आता है, तो वही सबसे बड़ी मिसाल बनता है। सरलता मेरा अभिमान है (कविता) न समझो मुझको कमजोर कभी, ये चुप्पी मेरी पहचान है। संस्कारों में पला बढ़ा मैं, सरलता ही मेरी शान है। न उत्तर दूँ हर कटु वचन का, न रोष दिखाऊँ बात-बात पर, धैर्य है मेरा आभूषण, और शांति है मेरी पतवार पर। तू ललकारे, मैं ...

बच्चों पर होमवर्क और स्कूली शिक्षा का बोझ

बच्चों पर होमवर्क और स्कूली शिक्षा का बोझ  ~ आनंद किशोर मेहता आज की शिक्षा प्रणाली बच्चों के संपूर्ण विकास के बजाय उन पर पढ़ाई और होमवर्क का भारी बोझ डाल रही है। स्कूल से लौटने के बाद भी बच्चे असाइनमेंट और रटने में उलझे रहते हैं, जिससे उनका खेल-कूद, रचनात्मकता और पारिवारिक समय प्रभावित होता है। समस्या के मुख्य कारण अत्यधिक होमवर्क – पढ़ाई का बोझ इतना बढ़ गया है कि बच्चों को आराम का समय ही नहीं मिलता। रचनात्मकता और खेल की कमी – खेल और अन्य गतिविधियों को पढ़ाई से कम महत्वपूर्ण समझा जाता है, जबकि वे मानसिक और शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी हैं। मानसिक तनाव – पढ़ाई के दबाव से बच्चे चिड़चिड़े और तनावग्रस्त होने लगे हैं। समाधान सीमित और उपयोगी होमवर्क दिया जाए ताकि बच्चे अन्य गतिविधियों में भी भाग ले सकें। खेल-कूद और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया जाए ताकि शिक्षा बोझ न लगे। स्मार्ट लर्निंग और रुचिकर शिक्षण पद्धतियाँ अपनाई जाएँ जिससे बच्चे पढ़ाई का आनंद ले सकें। माता-पिता और शिक्षक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें ताकि वे तनावमुक्त और खुशहाल रह सकें। निष्...

बच्चों की ड्राइंग: उनकी कल्पना और अभिव्यक्ति की उड़ान

बच्चों की ड्राइंग: उनकी कल्पना और अभिव्यक्ति की उड़ान " हर बच्चा अपनी कल्पना की उड़ान में एक कलाकार होता है – बस उसे रंग भरने की आज़ादी चाहिए।" बच्चों की ड्राइंग केवल रंगों और रेखाओं का मेल नहीं होती, बल्कि यह उनकी कल्पनाशक्ति, भावनाओं और सोचने की प्रक्रिया को व्यक्त करने का सबसे सरल और सुंदर माध्यम है। जब बच्चे कागज पर रंग भरते हैं, तो वे अपनी दुनिया को अपने तरीके से उकेरते हैं—कभी वे परियों के देश की यात्रा करते हैं, तो कभी अपने परिवार की तस्वीर बनाकर प्यार जताते हैं। 1. बच्चों की ड्राइंग: रचनात्मकता का द्वार हर बच्चा अपनी दुनिया को अनोखे ढंग से देखता और व्यक्त करता है। ड्राइंग के ज़रिए वे अपनी कल्पनाओं को आकार देते हैं—कभी वे बादलों में उड़ता घर बनाते हैं, तो कभी हंसते हुए पेड़ और बात करते सूरज को चित्रित करते हैं। यह उनकी स्वतंत्र सोच और रचनात्मक विकास का प्रतीक है। "बच्चों की कल्पना अनमोल है, बस उन्हें रंगों से खेलने दो।" 2. भावनाओं की अभिव्यक्ति बच्चे जब बोलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पाते, तो वे उन्हें चित्रों में उकेरते हैं। अगर ...

MIND AND CONSCIOUSNESS: (The Journey from Ordinary to Ultimate Greatness)

मन का त्रिस्तरीय विकास: साधारण से परम श्रेष्ठता तक की यात्रा   AUTHOR: ANAND KISHOR MEHTA  (The Threefold Evolution of Mind: From Ordinary to Ultimate Greatness) मानव मन की गहराइयों को समझने के लिए हमें न्यूरोसाइंस, दर्शन, समाजशास्त्र और आध्यात्मिकता के विभिन्न दृष्टिकोणों को खंगालना होगा। यह लेख आपको अपनी मानसिक अवस्थाओं को पहचानने, सुधारने और उन्हें श्रेष्ठता की ओर ले जाने में सहायता करेगा। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: न्यूरोसाइंस के अनुसार मन की अवस्थाएँ (1) साधारण मन (Ordinary Mind) इस अवस्था में व्यक्ति तर्क-वितर्क, प्रतिस्पर्धा और बाहरी उपलब्धियों में उलझा रहता है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की कोशिश करता है, तो उसका प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का निर्णय-निर्माण केंद्र) सक्रिय हो जाता है। इस अवस्था में बीटा तरंगें हावी रहती हैं, जो अत्यधिक सोच, मानसिक तनाव और चिंता को जन्म देती हैं। यह अवस्था समाज में सत्ता, प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाने की प्रवृत्ति से जुड़ी होती है। (2) महान मन (Great Mind) जब कोई व्यक्ति मौन धारण करता...