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बड़प्पन का आधार: उम्र नहीं, संस्कार और सेवा का भाव

Greatness is Based on Virtues and Service, Not Age – True Meaning of Being Elder बड़प्पन का आधार: उम्र नहीं, संस्कार और सेवा का भाव ~ आनंद किशोर मेहता भूमिका "क्या बड़ा भाई हमेशा जन्मक्रम से ही बड़ा होता है, या फिर संस्कारों और सेवा से?" परिवार केवल खून के रिश्तों से नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और संस्कारों से बंधा होता है। माता-पिता संपूर्ण परिवार को एक दिशा देने का कार्य करते हैं, लेकिन भाई-बहनों का रिश्ता केवल खेल-कूद और स्नेह तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें एक गहरी जिम्मेदारी भी छिपी होती है। परंपरागत रूप से, बड़े भाई को परिवार का मार्गदर्शक, रक्षक और सहारा माना जाता है। लेकिन क्या केवल जन्मक्रम के कारण कोई बड़ा बन सकता है? सच्चे अर्थों में बड़ा वही होता है, जो सेवा, त्याग और संस्कारों में अग्रणी हो। यदि छोटा भाई इन गुणों में बड़ा भाई से आगे है, तो वही "बड़ा" कहलाने के योग्य है। यह लेख इस महत्वपूर्ण विषय को स्पष्ट करेगा कि किसी व्यक्ति का "बड़ा" या "छोटा" होना केवल उम्र से नहीं, बल्कि उसके कर्तव्यों, सेवा और संस्कारों से तय हो...

अनादर का उत्तर: कब मौन, कब मुखर?

अनादर का उत्तर: कब मौन, कब  मुखर ? परिचय जीवन में हम सभी को कभी न कभी अपमान, तिरस्कार या अनुचित व्यवहार सहना पड़ता है। ऐसे में प्रश्न उठता है—क्या हमें चुप रहकर स्थिति को टाल देना चाहिए, या फिर गरिमा की रक्षा के लिए दृढ़ता से उत्तर देना आवश्यक है? सही उत्तर परिस्थिति पर निर्भर करता है। कुछ स्थितियों में मौन और दूरी सबसे प्रभावी उत्तर होते हैं, जबकि कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं, जहाँ साहसिक और बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर देना आवश्यक हो जाता है। इस लेख में हम समझेंगे कि कब चुप रहना सही है और कब मुखर होकर उत्तर देना आवश्यक हो जाता है। 1. जब मौन और दूरी ही सबसे अच्छा उत्तर हो 1.1. नकारात्मकता के चक्र से बचें जब कोई व्यक्ति केवल अपमान करने या उकसाने के लिए कुछ कहता है, तो उसका उद्देश्य आपको प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करना होता है। यदि आप प्रतिक्रिया देने के बजाय शांत रहते हैं, तो उसकी रणनीति स्वतः निष्फल हो जाती है, और आपकी मानसिक शांति बनी रहती है। 1.2. स्टोइक दर्शन: संयम की शक्ति स्टोइक दार्शनिक मार्कस ऑरेलियस कहते हैं: "यदि कोई तुम्हें अपमानित करे और तुम शांत र...

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था

प्रज्ञावानता की गूढ़ परिभाषा: तर्क, मौन और उसकी परे की अवस्था The Profound Definition of Wisdom: Logic, Silence, and Beyond लेखक: आनंद किशोर मेहता | Author: Anand Kishor Mehta © Copyright 2025 - आनंद किशोर मेहता "मनुष्य का वास्तविक उत्थान उसके विचारों की ऊँचाई से तय होता है, न कि उसकी आवाज़ की ऊँचाई से।" मानव सभ्यता के विकास में तर्क, संवाद और विचार-विमर्श की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। विज्ञान हमें बताता है कि हमारा मस्तिष्क एक अत्यधिक जटिल संरचना है, जो हमें सोचने, समझने और निष्कर्ष निकालने की शक्ति प्रदान करता है। वहीं, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, मन की शुद्धता और आंतरिक शांति को ही सच्ची बुद्धिमत्ता और प्रज्ञावानता का आधार माना जाता है। आज के युग में जब तर्क-वितर्क, संवाद और विवाद हर ओर हावी हो रहे हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह समझें कि प्रज्ञावानता केवल वाणी या ज्ञान की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी अवस्था है, जहाँ व्यक्ति तर्क और मौन दोनों के पार पहुँच जाता है। आइए इस यात्रा को तीन प्रमुख चरणों में समझते हैं— 1. तर्कशीलता: विचारों क...