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कविता श्रृंखला: अनकहे एहसास: दिल की बात

कविता श्रृंखला:  अनकहे एहसास: दिल की बात  मैं दिया हूँ!  मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से है, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ है। – गुलज़ार कविता: मैं दिया हूँ ~ आनंद किशोर मेहता मैं दिया हूँ... मुझे बस अंधेरे से शिकायत है, हवा से नहीं। वो तो बस चलती है… कभी मेरे खिलाफ, कभी मेरे साथ। मैं चुप हूँ, पर बुझा नहीं, क्योंकि मेरा काम जलना है। ताकि किसी राह में भटके हुए को रौशनी मिल सके। मुझे दिखावा नहीं आता, ना ही शोर मचाना। मैं जलता हूँ भीतर से — सच, प्रेम और सब्र के संग। हवा सोचती है, कि वो मुझे गिरा सकती है। पर उसे क्या पता — मैं हर बार राख से भी फिर से जल उठता हूँ। मैं दिया हूँ… नम्र हूँ, शांत हूँ, मगर कमजोर नहीं। मैं अंधेरे का दुश्मन हूँ, इसलिए उजाले का दोस्त बना हूँ। तू चाहे जितनी बार आज़मा ले, मैं फिर भी वही रहूँगा — धीरे-धीरे जलता, पर हर दिल को छूता। © 2025 ~ आनंद किशोर मेहता. All Rights Reserved. "दीया कभी अंधेरे से डरता नहीं,… वो तो उसी के बीच खुद को साबित करता है।" "हवा से शिकवा नहीं,… क्योंकि उसे नहीं पता — कि मेरी लौ मेरी श्रद...