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Showing posts with the label प्रेरणादायक

माता-पिता: जायदाद नहीं, ज़िम्मेदारी हैं।

  माता-पिता: जायदाद नहीं, ज़िम्मेदारी हैं।  ~ आनंद किशोर मेहता इस भौतिकतावादी युग में हमने रिश्तों को भी तौलना सीख लिया है — संपत्ति के तराजू में। माँ-बाप अब ‘विरासत’ का हिस्सा बनते जा रहे हैं, ‘संस्कार’ का नहीं। हमने देखा है — बड़े-बड़े परिवार अदालतों में खड़े हैं, केवल इसलिए कि उन्हें कुछ ज़मीन या पैसा और मिल जाए। पर वही लोग जब माँ-बाप को अस्पताल ले जाने की बारी आती है, तो एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं। यह विडंबना नहीं, समाज की आत्मिक दरिद्रता का प्रतीक है। जायदाद के लिए लड़ाई क्यों? क्योंकि हमें मिलना है। क्योंकि हमें रखना है। क्योंकि हमें बढ़ाना है। पर माँ-बाप की सेवा के लिए कौन लड़ता है? यहाँ किसी को कुछ मिलता नहीं — यहाँ तो केवल दिया जाता है। समय, ध्यान, धैर्य, प्रेम, त्याग और करुणा। और शायद इसी कारण... आज की दुनिया में ये गुण दुर्लभ हो गए हैं। माँ-बाप की जिम्मेदारी कोई भार नहीं जिम्मेदारी बोझ तब बनती है, जब हम उसे "मजबूरी" समझते हैं। पर जिसने माँ-बाप के आँचल की छाया में निस्वार्थ प्रेम को महसूस किया है, जिसने बापू के काँपते हाथों से भी...

प्राचीन ज्ञान: आपकी ख़ुशी का रहस्य

प्राचीन ज्ञान: आपकी ख़ुशी का रहस्य ~ आनंद किशोर मेहता सच्ची ख़ुशी कहाँ है? क्या यह दौलत, प्रसिद्धि या भौतिक सुखों में है? प्राचीन ऋषियों, संतों और महापुरुषों ने इस प्रश्न का उत्तर हज़ारों वर्ष पहले दिया — और वह उत्तर आज भी उतना ही प्रासंगिक है। प्राचीन ज्ञान कहता है कि ख़ुशी बाहर नहीं, आपके भीतर है। जब मन शांत होता है, विचार पवित्र होते हैं, और जीवन का उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए होता है — तब आत्मा मुस्कुराने लगती है। वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है — "आत्मा की प्रसन्नता ही परम सुख है।" बुद्ध , महावीर , ईसा मसीह , और कबीर जैसे महापुरुषों ने भी यही सिखाया — “जिसने अपने भीतर झाँका, उसने अमूल्य ख़ज़ाना पाया।” प्राचीन ज्ञान की शिक्षाएँ: अहंकार छोड़ो, विनम्र बनो क्रोध पर नियंत्रण रखो, प्रेम से प्रतिक्रिया दो सत्य, करुणा और सेवा को जीवन का आधार बनाओ ध्यान और आत्मनिरीक्षण से अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो जब हम इन मूल्यों को अपनाते हैं, तो एक अद्भुत आंतरिक शांति और आनंद प्रकट होता है — जिस...

बालकनी की हरियाली: प्रकृति का सजीव प्रेमगीत

बालकनी की हरियाली: प्रकृति का सजीव प्रेमगीत   लेखक: आनंद किशोर मेहता        कॉपीराइट © 2025 आनंद किशोर मेहता प्रकृति की गोद में बैठकर मधुर हवा का स्पर्श और हरे-भरे पत्तों की हल्की सरसराहट, मानो कोई पुराना सुर झूमकर बज उठा हो। जब सूरज की कोमल किरणें पत्तों पर थिरकती हैं, जब ओस की बूँदें मोती बनकर चमकती हैं, और जब हल्की हवा पौधों को स्नेह से सहलाती है—तब लगता है जैसे प्रकृति खुद हमें अपने आँगन में बुला रही हो। हर बालकनी, चाहे छोटी हो या बड़ी, जब उसमें हरियाली की कोमल चादर बिछ जाती है, तो वह एक जादुई संसार में बदल जाती है। वहाँ हर पौधा अपनी एक अलग कविता कहता है, एक अलग कहानी बुनता है, और मन को मोह लेने वाला संगीत रचता है। आइए, ऐसे ही कुछ सजीव हरित सौंदर्य के रत्नों से परिचय करें, जो आपकी बालकनी को महकते स्वप्नलोक में बदल देंगे। १. जेड प्लांट: छोटी हरियाली में छुपा सौभाग्य  मोटी, मोमी और चमकदार हरी पत्तियों से लदा हुआ जेड प्लांट, मानो बालकनी में बैठा सौभाग्य का एक प्रतीक हो। इसकी छोटी-छोटी पत्तियाँ सूरज की रोशनी को थाम लेती हैं और हल्की हवा के साथ मुस्कुराती है...