भावनाओं की गहराई और संस्कारों की भूमिका लेखक: ~ आनंद किशोर मेहता जियो तो ऐसे जियो: अनुभव, सेवा और संवेदनाओं से संवरता जीवन बचपन की एक मासूम चाह हर बच्चा चाहता है कि उसके माता-पिता, उसका परिवार और समाज उसे "अच्छा" कहें। उसे प्यार करें, उसकी तारीफ़ करें और सम्मान दें। यह केवल एक चाह नहीं, बल्कि उसकी पहचान और आत्मविश्वास का आधार बनती है। अच्छे संस्कार, हर हाल में साथ निभाते हैं—बचपन से बुढ़ापे तक। बचपन से मन में यह भाव बैठ जाता है कि "मैं अच्छा हूँ तभी मुझे प्यार मिलेगा।" यही सोच उसके कर्मों का मार्गदर्शन करती है। जब सराहना नहीं मिलती लेकिन जब कोई बच्चा या युवा नेक कर्म करता है, फिर भी अगर उसे सराहना नहीं मिलती, तो उसके भीतर धीरे-धीरे पीड़ा भरने लगती है। वह सोचता है—"शायद मैं अच्छा नहीं हूँ!" यह भाव आत्म-संशय को जन्म देता है। प्रेम की भूख जब पूरी नहीं होती, तब इंसान धीरे-धीरे भीतर से टूटने लगता है। ऐसी अवस्था में वह अपनों को ही दोषी मानने लगता है। उसका व्यवहार कठोर होने लगता है, और वह भीतर ही भीतर तन्हा हो जाता है। रिश्तों में दरार और दूरी धी...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.