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मौन सेवा

मौन सेवा                                                        आनंद किशोर मेहता सेवा वो — जो चुपचाप हो जाए, बिन बोले भी, कुछ बात हो जाए। न माँग हो, न कोई दिखावा, दिल से निकले — बस दुआ का साया। जहाँ न हाथ जुड़ें, न शब्द बहें, फिर भी दिल के दीप जलें। कोई थक कर जब चुप हो जाए, तो बस साथ चलो — वही साथ निभाए। न कर सको कुछ — तो ग़म न दो, अपनी वजह से कोई जख़्म न दो। हर पल किसी का सहारा बनो, कभी साया, कभी किनारा बनो। जो मौन में भी सुकून दे जाए, वही सेवा मालिक को भाए। जहाँ होने भर से शांति जगे, वहीं रूह को राहत लगे। न कुछ पाओ, न कुछ जताओ, बस चुपचाप किसी का बोझ उठाओ। जहाँ न दिखावा, न नाम रहे, बस करुणा ही हर काम रहे। इसी में इबादत का रंग खिले, इसी में बंदा रब से मिले। संक्षिप्त भावार्थ यह कविता बताती है कि सच्ची सेवा दिखावे या शब्दों से नहीं, मौन, करुणा और निस्वार्थ भाव से होती है। जब हम कुछ न कर सकें, तब भी किसी को दुख न देना ही सेवा का...