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भोग और योग: जीवन की पूर्णता का रहस्य

भोग और योग: जीवन की पूर्णता का रहस्य ~ आनंद किशोर मेहता मनुष्य दो ध्रुवों के बीच जीता है—भोग और योग। भोग जीवन के अनुभवों को समेटने की कला है, तो योग इन अनुभवों से शांति और संतुलन प्राप्त करने की विधि। लेकिन क्या इनमें से कोई एक ही सही मार्ग है? नहीं। सही सुख न केवल भोग में है, न केवल योग में—बल्कि इन दोनों के संतुलन में है । भोग: जीवन की सुगंध, लेकिन अधूरी भोग हमें आनंदित करता है। यह हमें अनुभवों से समृद्ध करता है, रिश्तों से जोड़ता है, उपलब्धियों की ऊँचाई तक ले जाता है। यह दुनिया की सबसे आकर्षक शक्ति है, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं है। क्योंकि हर इच्छा पूरी होते ही एक नई प्यास जन्म लेती है । सुख की खोज अनंत हो जाती है, और हम एक ऐसी दौड़ में शामिल हो जाते हैं, जिसका कोई अंत नहीं। जो कल आनंद देता था, वह आज साधारण लगता है। भोग बुरा नहीं है, लेकिन यदि हम इसे ही अंतिम सत्य मान लें, तो यह हमें थका देता है । "भोग जीवन को रंग देता है, योग उसे अर्थ देता है।" योग: भीतर की शांति का स्पर्श जब जीवन के भोग हमें अधूरेपन का अहसास कराने लगते हैं, तब योग की यात्रा शुर...