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शिष्य रत्न कनिष्क कुमार: एक दीपक जो स्वयं प्रकाश बन रहा है

शिष्य रत्न कनिष्क कुमार: एक दीपक जो स्वयं प्रकाश बन रहा है। महत्वपूर्ण सूचना: यह लेख किसी सरकारी या मान्यता प्राप्त विद्यालय का प्रतिनिधित्व नहीं करता। यह एक व्यक्तिगत, सेवाभावी शिक्षण प्रयास पर आधारित अनुभव है, जिसका उद्देश्य केवल प्रेरणा और सेवा की भावना को साझा करना है। इसमें प्रस्तुत विचार लेखक के निजी अनुभव पर आधारित हैं। मेरे विद्यालय का एक ऐसा रत्न, जिसे मैं पूरे गर्व और सम्मान से  "शिष्य रत्न कनिष्क कुमार"  कहता हूँ। यह बालक आज भी मेरे विद्यालय में  कक्षा पाँचवीं  का छात्र है, लेकिन उसकी सोच, कर्म और सेवा भावना उसे बहुत आगे ले जा चुकी है। जब यह बच्चा नर्सरी में आया था, तब उसके साथ लगभग 15 बच्चे थे। LKG और UKG तक यह संख्या सामान्य बनी रही। फिर धीरे-धीरे कक्षा बढ़ने के साथ संख्या घटती गई—कक्षा 1, 2, 3 और फिर 4 में मात्र चार बच्चे उसके साथ थे। और अब जब वह कक्षा पाँच में है, तो वह  अकेला  छात्र है। लेकिन वह अकेलापन उसकी कमजोरी नहीं बना—बल्कि  उसकी पहचान और शक्ति  बन गया। "जो अकेले चलना सीख जाता है, वही आगे चलकर रास्ता भी दिखात...