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क्या आपने कभी…?

क्या आपने कभी…?  -- आनन्द किशोर मेहता  कुछ सवाल शब्दों में नहीं, आत्मा में जन्म लेते हैं। वे जीवन से नहीं, संवेदनाओं से जुड़े होते हैं। आज मैं ऐसे ही कुछ सवाल आपके सामने रखना चाहता हूँ — न किसी आरोप के रूप में, न किसी ज्ञान के रूप में — बल्कि एक इंसान की पुकार के रूप में। क्या आपने कभी किसी और के दर्द में खुद को टूटते देखा है? न वह आपका रिश्तेदार था, न आपका कोई अपना। फिर भी उसकी आँखों में आँसू देखकर आपके भीतर कुछ पिघल गया। एक मासूम बच्चे की भूख, एक वृद्ध की खामोश आंखें, या किसी मां की बेबस पुकार — क्या कभी कुछ ऐसा था, जिसने आपके दिल को भीतर से हिला दिया? क्या आपने कभी किसी की ख़ुशी के लिए रातों को जागकर दुआ की है? आपको उससे कुछ नहीं चाहिए था। सिर्फ़ इतना चाहिए था कि उसका जीवन थोड़ा मुस्कुरा ले, उसके जीवन में उजाला आ जाए। आपने अपने आंसुओं में उसके सुख की प्रार्थना की — और वह जान भी न सका कि कोई, कहीं, उसकी ख़ुशी के लिए रोया था। क्या आपने कभी किसी को आगे बढ़ाने के लिए खुद पीछे हटने का निर्णय लिया है? कभी किसी को उड़ान देने के लिए अपने पंख काट लिए हों? आपने उसकी क्षमताओं...