सच्चा सम्मान वहाँ नहीं, जहाँ दिखता है — वहाँ है, जहाँ कर्म बोलता है ~ आनंद किशोर मेहता 1. दिखावे का भ्रम और खोखला सम्मान कई लोग समाज में ऊँचा दिखने की लालसा में दूसरों की बेवजह सेवा करते हैं — बस इसलिए कि कोई उन्हें "महान" कह दे। वे खुद के आत्मसम्मान को गिरवी रखकर झूठी तारीफों का पीछा करते हैं। पर क्या कभी सोचा है? जो सम्मान दूसरे की कृपा से मिलता है, वो आपकी आत्मा को कभी तृप्त नहीं करता। "दूसरों की नजरों में ऊँचा बनने से पहले, अपने मन में ऊँचाई पैदा करो।" "Before trying to rise in others' eyes, elevate yourself in your own mind." 2. अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ना – आत्मघात है जब हम अपने घर, परिवार, और सेंटर की जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, तो हम सिर्फ अपने ही नहीं, अपनों के भविष्य से भी खेल रहे होते हैं। सेवा वहीं करें, जहाँ उससे किसी जीवन में वास्तविक बदलाव आए। "जहाँ दिल से सेवा होती है, वहीं से दुनिया बदलती है।" "Where service flows from the heart, true change begins." 3. अपना सतसंग सेंटर: सेवा का...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.