जीवन: स्वतंत्र प्रवाह या बंधनों का भ्रम? ✍ लेखक: आनंद किशोर मेहता भूमिका जीवन अपने आप में एक स्वतंत्र प्रवाह है। यह किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति से स्थायी रूप से बंधा नहीं होता, फिर भी हम स्वयं को बंधनों में जकड़ा हुआ महसूस करते हैं। यह बंधन हमारे मन की रचना है, जो हमारी उम्मीदों, भावनाओं, आशाओं और भरोसे के कारण बनते हैं। अगर हम इस वास्तविकता को समझ लें कि जीवन स्वयं में स्वतंत्र है, तो हम मन की सीमाओं से बाहर निकलकर एक मुक्त, शांत और संतुलित जीवन जी सकते हैं। इस लेख में हम वैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों से यह समझने का प्रयास करेंगे कि जीवन वास्तव में बंधनों में है या यह केवल हमारी धारणाओं का भ्रम है। १. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जीवन ऊर्जा का प्रवाह है विज्ञान के अनुसार, जीवन कोई स्थिर इकाई नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रवाह है। भौतिकी के ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार, ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है—यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। यही सिद्धांत जीवन पर भी लागू होता है। हमारे रिश्ते, हमारी भावनाएं और हमारी...
Fatherhood of God & Brotherhood of Man.