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किरदार: जो शब्दों से नहीं, कर्मों से बनता है

किरदार: जो शब्दों से नहीं, कर्मों से बनता है।  ~ आनंद किशोर मेहता किसी इंसान के बारे में सबसे बड़ी पहचान उसका किरदार होता है — वो जो दिखावे से नहीं, बल्कि उसकी सोच, वफादारी, और आत्मसम्मान से गढ़ा जाता है। किरदार को न तो किसी तराज़ू से तौला जा सकता है और न ही किसी पद, पैसे या प्रभाव से खरीदा जा सकता है। यह तो वर्षों के सच, संघर्ष और सेवा से आकार लेता है। मैंने जीवन में हमेशा यह महसूस किया है कि जो साथ देता है, वह केवल समय काटने के लिए नहीं देता, बल्कि उस साथ को धर्म की तरह निभाता है । जब किसी के लिए खड़ा होता हूँ, तो अंत तक खड़ा रहता हूँ — चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। क्योंकि यह केवल भावनात्मक जुड़ाव नहीं, बल्कि मेरे किरदार की गवाही है। आज जब समाज में गिरगिट जैसे रंग बदलने वाले चेहरे हर मोड़ पर मिलते हैं, तो मेरा मन और अधिक दृढ़ होता है कि मैं वैसा हरगिज न बनूँ। सच्चाई, निष्ठा और आत्मबल से भरा जीवन भले ही कठिन हो, लेकिन वह स्वाभिमान के साथ जिया गया जीवन होता है ।  ग़द्दारी करना आसान हो सकता है, पर वफ़ा निभाना ही सच्ची बहादुरी है । और यही मेरा चुनाव रहा है — हर रिश्ते, हर ज़...