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तुम्हारी कहानी, तुम्हें ही पता है

तुम्हारी कहानी, तुम्हें ही पता है जीवन के हर मोड़ पर, लोगों की राय मिलना स्वाभाविक है। कभी कोई तारीफ़ करेगा, तो कोई आलोचना। कोई तुम्हारे निर्णय को सराहेगा, तो कोई उसे ग़लत ठहराएगा। लेकिन क्या कोई तुम्हारी आँखों से दुनिया देख सकता है? क्या कोई तुम्हारे मन के दर्द, संघर्ष और स्थितियों को उतनी ही गहराई से समझ सकता है जितनी तुमने उन्हें जिया है? सच तो यह है कि लोग वही देखते हैं जो बाहर दिखता है, पर जो भीतर चलता है – वो सिर्फ़ तुम्हें पता है। तुम्हारे आर्थिक हालात, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, मानसिक द्वंद्व, सपनों की लड़ाई और आत्मबल की परीक्षा – ये सब तुम्हारा व्यक्तिगत सत्य है, जिसे दूसरों की नज़रों से आँका नहीं जा सकता। अगर तुम हर किसी की बातों को महत्व देने लगो, तो अपने आप से दूर हो जाओगे। हर कोई तुम्हारा मार्गदर्शक नहीं होता – कई बार लोग तुम्हें अपनी अधूरी समझ से तोलते हैं। वे तुम्हारी उस 'कहानी' के सिर्फ एक-दो 'पृष्ठ' पढ़कर पूरा 'निष्कर्ष' सुना देते हैं। पर जीवन कोई खुली किताब नहीं, यह तो भावनाओं, अनुभवों और परिस्थितियों से बुनी गई आत्मगाथा है – जिसे सिर्फ़...